मेरा मुल्क
पारेश्वर गौड़ मेरा मुल्क का लोग, लीसा पेड़ क्षन, (more…)
पारेश्वर गौड़ मेरा मुल्क का लोग, लीसा पेड़ क्षन, (more…)
डाॅ. अरुण कुकसाल उदरोळ, गढ़वाली ग्रामीण समाज के सामाजिक प्रतिबिम्बों की सफल अभिव्यक्ति है. (more…)
बहादुर बोरा कितने लोगों के कितने पहाड़ हैं ? एक पहाड़ कहीं उनका भी है. (more…)
आशीष मोहन नेगी कोऊ नृप हमें क्या हानि, आओ पास चिड़िया रानी. (more…)
जगमोहन आजाद जबकि देखा है मैंने उस पहाड़ी लड़की सुनीता को, अक्सर अकेले में बहाते आंसू. (more…)
चंद्रशेखर तिवारी कुमाऊं अंचल में हिंदी की खड़ी बोली में साहित्य की परंपरा लम्बे समय तक मौखिक रही। (more…)
महावीर रंवाल्टा मेरी बच्ची अगर तुम सुन सकती, तुम देख सकती, तब तुम पिता के आंसू पोछने जरुर आती. (more…)
बल्ली सिंह चीमा ले मशालें उठ गई हैं, बेटियां हिन्दुस्तान की (more…)
बी. मोहन नेगी हर्ष और उत्सव का प्रतीक बसन्त जीवन में प्रकट होता है। (more…)
Staff Reporter 'You may break; you may shatter the vase, if you will But the scent of the roses will cling...
दिव्या झिंकवान नेगी "गोरा" को जितनी बार पढ़ती हूँ उतनी ही बार यकीन होता है कि हम किसी भी जटिल...
अरुण कुकसाल किताब के खुलते ही हस्ताक्षर के साथ 12/12/94 की तिथि और कोटद्वार अंकित है। (more…)
मथुरा दत्त मठपाल पिछले पंद्रह – बीस वर्षों के अंतराल में गढ़वाली /कुमाउनी भाषाओँ के काव्य रचना कर्म में बड़ा...
हरि मोहन ‘मोहन’ डॉ उमेश चमोला के बाल कविता संग्रह “फूल” में २७ कवितायेँ हैं| (more…)
चंद्रशेखर तिवारी कुमाऊं अंचल में हिंदी की खड़ी बोली में साहित्य की परंपरा लम्बे समय तक मौखिक रही। (more…)
हेमा उनियाल जब हम उस परम शक्ति के करीब होते हैं तो उस धरा, प्रकृति के भी उतने ही अन्तरंग...
महावीर सिंह जगवाण दिखावट और बनावट की उलझनो ने मानव को वैचारिक रूप से ऐसे चौराहे पर खड़ा कर दिया...