November 23, 2024



दिव्यात्मा डा. कुंवर सिंह नेगी

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नरेन्द्र कठैत
 
कागज के बिंदू से भूगोल के सिंधू तक का महायात्री! गंगा से जुड़े हरेक पत्थर की अपनी अलग-अलग संघर्ष गाथाऐं हैं।

कह नहीं सकते कौन-कौन पत्थर कितने गिरे-पड़े। किस-किस पत्थर ने कहां-कहां कितने घाव सहे। भले ही! कुछ पत्थरों को हम जहां-तहां पड़े निर्जीव से देख लेते हैं। लेकिन आश्चर्य देखिए! कुछ समय बाद उनमें से भी कई वहां नहीं मिलते हैं। लगता है थोड़ा सुस्ताकर वे फिर महायात्रा पर चल पड़ते हैं। निःसंदेह ये ही पत्थर हमें जीवन पथ पर निरन्तर संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देते हैं। यही कारण है कि इंही पत्थरों के मध्य हम अपने पितरों को ढूंढते हैं। और इंही पत्थरों के बीच से हम अपने आराध्यों को भी तराशते हैं। ठीक यही स्थिति जीव जगत की भी है। भई! जन्मना हैं तो अवसान भी प्रकृति के अधीन ही है। किंतु नदी के पत्थरों की भांति कुछेक कर्मशील व्यक्तियों की जीवनगाथा जब एकाएक सुनने-जानने को मिलती है तो प्रथमतः वह असम्भव सी जान पड़ती है। लेकिन धीरे-धीरे जब आंखें खुलती हैं तो दांतो तले अंगुलियां दबानी ही पड़ती हैं। इंही कर्मशील व्यक्तियों में प्रदेश ही नहीं बल्कि देश-दुनिया की एक आभा रही- डा. कुंवर सिंह नेगी! इस नाम से जुड़े बड़े काम के दो बड़े साक्ष्य हैं! एक में लिखा है- ‘मैं भारत का राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी व्यक्तिगत गुणों के लिए आपके सम्मानार्थ, पदम श्री प्रदान करता हूं।’ -नई दिल्ली, दिनांक 28 मार्च 1983 दूसरे साक्ष्य में शब्द हैं ‘मैं भारत का राष्ट्रपति आर.के. वेंकटरामन, व्यक्तिगत गुणों के लिए आपके सम्मानार्थ पदम भूषण प्रदान करता हूं।’ -नई दिल्ली, दिनांक 24 मार्च 1992
 
कुंवर सिंह नेगी जी के अभूतपूर्व कार्यों का खाका खींचने से पूर्ण आइए पहले उनके मूल से ही शुरूआत करें। पौड़ी-कोटद्वार राष्ट्रीय मार्ग पर 15 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा कस्बा है- पैडुल! इसी के समीप ही है-गांव अयाल! भूले नहीं हैं कि इसी गांव की दो अन्य विभूतियां हमारे संज्ञान में हैं- गीतकार दिवंगत जीतसिंह नेगी तथा अद्भुत काव्य कृति ‘ये गुठ्यार’ के रचनाकार -रघुवीर सिंह ‘अयाल’! इंही विभूतियों के साथ-साथ स्वनाम धन्य कुवंर सिंह नेगी जी की भी अयाल गांव पैतृक भूमि रही है। मुख्य मार्ग से अयाल गांव के नीचे तक सम्पर्क सड़क। इसी सड़क से ऊपर गांव की ओर मुड़ती पगडंडी। थोड़ी सी खड़ी चढ़ाई और आठ-दस घरों के बाद एक तिमंजिला घर! उसी घर के आगे रूककर जन जीवन की टोह लेते हेतु आवाज देता हूं -नेगी जी हैं? दो प्रोढ़ महिलाएं दो भिन्न चौखटों से बाहर झांकती हैं। एक प्रश्न करती हैं- आप कौन? गढ़वाली में परिचय देने-लेने पर मालूम हुआ कि दोनों नेगी जी के अनुजों की पुत्र बधुएं हैं। थोड़े से जरूरी वार्तालाप के बाद मूल प्रश्न पर आया- क्या कुंवर जी का पैतृक घर यही है?
एक पुत्र वधू ने जवाब दिया -नहीं! यह घर तो नया बना है। आगे पूछा -पुराना घर कहां है? एक घर छोड़कर दूसरे घर की और इशारा करते हुए उसी बहू ने कहा- वो रहा! उस घर पर भी सरसरी निगाह डालकर फिर प्रश्न किया – तो क्या कुंवर जी उस घर में पैदा हुये थे? उस घर की हालात तो बहुत ही जर्जर है। वाक्य पूरा करते ही एक बहु के शब्द सुनाई दिये- अरे नहीं-नहीं! उससे भी पुराना एक और घर है। -वो कहां है? -वो देखो सामने! वो रहा…..!
 
उत्सुकतावश उस ओर देखा! दूर उस पार सामने पहाड़ी की ढ़लान पर बंजर खेतों में एक खण्डहर और उसकी शेष दो दीवारें। उस धरोहर की उपेक्षा के सन्दर्भ में कई प्रश्न मन में एक साथ उभरे! आज भी वे प्रश्न मन मस्तिष्क में ज्यों के त्यों हैं। किंतु प्रश्नों की उलझनों पर यदि ध्यान न दें और आत्मीयों के कथन को मान लें तो दस्तावेजों के आधार पर 20 नवम्बर 1927 को आप अयाल गांव के उसी स्थान पर पैदा हुए। पिता श्री फतेह सिंह नेगी एंव माता श्रीमती सुरमा देवी के सात पुत्रों- गोविन्द सिंह, रणवीर सिंह, अर्जुन सिंह, किशन सिंह, राजे सिंह और रमेश सिह के मध्य सबसे बड़े! सोलह-सत्रह वर्ष की आयु तक उसी परिवेश की धूल मिट्टी में सनकर पले बढ़े! रोजी-रोटी की खोज में 1945 के आस-पास गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुये! किंतु बर्मा फ्रंट पर द्वितीय विश्व युद्ध लड़ने के बाद बंदूक-कारतूस त्यागकर गांव लौट आये! शायद मां सरस्वती ने आपके कदम आगे फौज की ओर नहीं कहीं और तय किये थे! कुछ दिन गांव में रुककर पुनः रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली की ओर चल दिये।
 
देव योग से दिल्ली में भी मिलिट्री के दायरे में ही ब्रेल प्रैस में कम्पोजिटर की नौकरी लग गये। ब्रेल कम्पोजिंग के कार्य में लगन बढ़ी तो मन लगाकर कार्य करने लगे। बाद में इसी हुनर के आधार पर एन. आइ. वी. एच. (राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान) की शासकीय सेवा में देहरादून पहुंचे। ज्ञात हुआ आगे शासकीय सेवा और आपके लक्ष्य के बीच कतिपय गतिरोध उत्पन्न हुये! वैसे भी मजबूत इरादों के आगे भी रास्ते आसान नहीं होते। किंतु आप अपने लक्ष्य से तनिक भी विचलित नहीं हुये! और अपने उसी लक्ष्य के बल पर आप शासकीय सेवा के साथ-साथ गुरूमुखी तथा कई अन्य भाषाओं की पुस्तकों को वृहद स्तर पर ब्रेलकृत करने निमित्त अपनी सहधर्मिणी दयावती जी के सहयोग से ‘महाराजा रणजीत सिंह इंटरनेशलन मिशन फार गुरूमुखी इन ब्रेल’ नामक एक प्रतिष्ठान को प्रकाश में लाने में भी सफल हुये। किंतु 1985 में शासकीय सेवा से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के पश्चात पूर्णतः ‘महाराजा रणजीत सिंह इंटरनेशलन मिशन फार गुरूमुखी इन ब्रेल’ के माध्यम से आप ब्रेल के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य करते चले गये।
आप गुरूमुखी के ज्ञाता ही नहीं अपितु हिन्दी साहित्यरत्न, साहित्यालंकार भी थे। साथ गुजराती, मराठी, बंगाली सहित कई अन्य भाषाओं के भी ज्ञाता रहे। ‘गुरूमुखी के ब्रेल टाइपराइटर’ , ब्रेल प्रिंटर आपके अनुसंधान के बाद ही सामने आये।
 
आपके गुरूमुखी भाषा को ब्रेल में ढालने के कार्य को सबसे ज्यादा प्रशंसा मिली। क्योंकि आपने गुरूमुखी को ब्रेल लिपि में ढ़ालकर असंख्य दृष्टिहीनों को गुरूमुखी पढ़ने की वह सुविधा दी जिससे भारत ही नहीं अपितु देश विदेश के गुरूद्वारों में असंख्य दृष्टिहीन रागीयों, पाठियों, किरतनीयों, कथाकारों के लिए ब्रेल गुरूमुखी के पाठकर स्वरोजगार की नई शाखा खुली। ऐसा भी नहीं कि गुरूमुखी तक ही आपकी ब्रेल सीमित रही। बल्कि विभिन्न भाषाओं में ब्रेल के क्षेत्र में आपने अभूतपूर्व सेवा की। आपके ब्रेल सम्बन्धी विभिन्न भाषाई तथा बहु आयामी कार्यों की फेहरिस्त बढ़ती ही चली गई-। जैसे की- हिंदी भाषा में संशोधित तथा ब्रेलीकृत पुस्तकें तथा शोधपत्र- गोदान, निर्मला, बोल्गा से गंगा, दून के किनारे, आनंदमठ, डा.देव, शरत साहित्य, कुछ जाने योगा बातें, विश्व वर्मन, ग्रामोद्योग, वरदान, देवदास, नीरज के लोकप्रिय गीत, काला पानी, जय जवाहर, अंधायुग, ईश दूत गुरूनानक देव जी की सीख, वाणी श्री गुरू नानक देव जी, श्री गुरू गोविन्द सिंह जी, हरी सिंह नलवा, बंदा वैरागी, सरदार भगत सिंह, शेरे पंजाब, श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की महानता, भारतीय दृष्टिहीन और पत्रकारिता, स्वतंत्रता की रक्षा, कवरिंग फायर, प्राचीन लिपियां और देवनागरी लिपि, प्रतिक्षा, महाराजा श्री अग्रसेन, मैक्सिम गोर्की और प्रेमचंद एक युग,सत्यार्थ प्रकाश इत्यादि।
 
बंगाली भाषा में संशोधित तथा ब्रेलीकृत पुस्तकें- वर्ण परिचय एक से पांचवी, किश्लय कक्षा 6 से आठवीं, गुल्पगुच्छा ; लघु कहानियां (खण्ड एक से पांच)
उड़िया भाषा में- मोछबी भाई- प्राइमर
गुजराती भाषा में-चलनगाड़ी-प्राइमर, विद्यापीठ वचनमाला कक्षा एक से आठवीं
मराठी भाषा में- मराठी प्राइमर, मराठी रीडर कक्षा एक से आठवीं, सनतेज अभंग
पंजाबी भाषा में- पंजाबी प्राइमर, पंजाबी रीडर-कक्षा एक से दसवीं तक
सिख दर्शन पंजाबी ब्रेल में -वाणी श्री गुरू तेग बहादुर, नितरेम, पोथी भगत वाणी, सुखमनी साहिब, आसा दि वार, आनंद साहिब, जपू जी साहिब, जपू साहिब, बायोग्राफी आफ गुरू साहिबान, गुरू बाल गाथा।
 
सिख दर्शन हिंदी ब्रेल में- ईश गुरू नानक देव जी की सीख, वाणी श्री गुरू नानक देव जी, श्री गुरू गोविन्द सिंह जी, हरि सिंह नलवा, बंदा वैरागी, सरदार भगत सिंह, शेरे पंजाब, श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी की महानता, श्री गुरू नानक देव जी की दृष्टि में मानव धरम, श्री गुरू नानक देव जी का समाज उत्थान में योगदान, ले चल मेरे नानक उस पार, सच्चा सौदा-सच्चा गुरू-सच्चा उपदेश, युग पुरूष श्री गुरू गोविन्द सिंह जी का बहुमुखी व्यक्तित्व और साहित्य प्रेम , श्री गुरू अमरदास और मानवतावाद, गुरू नानक देव जी गोविंद रूप, शिष्य का परिस्कारः भाई बुद्ध जी, श्री गुरू हरीकिशन जी, श्री गुरू अर्जुन देव जी, पुरख प्रमाण, आओ चलें हेमकुंड, नेत्रहिनों का मसीहाः ज्ञानी लक्ष्मन सिंह गंधर्व-नेत्रहीन, श्री अमृतसर की रचना, गोविंद मिलन की ये तेरी बरिया।
 
जैन दर्शन हिंदी ब्रेल में- नमस्कार मंत्र, भगवान महावीर, जैन धर्म का वैज्ञानिक दृष्टिकोण, भगवान ऋषभ देव और जैन धरम, भगवान नेमीनाथ ओर उनके वैराग्य के कारण, भगवान पारश्वनाथ के सिद्धांतों से प्रभावित गांधी जी, जैन धरम अनिश्वरवादी नही है, जैन धरम में जीवात्मा, जैन धरम के स्वर्णयुग की भूमिका, राष्ट्रीय मुद्राः जैन तीर्थकरो का प्रतीक,जैन धरम का स्वरूप साम्प्रदायिक नहीं है, ऋषभ पुत्र भारत से भारतवर्ष।
 
इस्लाम दर्शन हिंदी ब्रेल में- ईश दूत हजरत मोहम्मद की वाणी, इस्लाम में मानव अधिकार, इस्लाम की नैतिकता, कुरान और मानव पर उसका प्रभाव, देश की तबाही से बचने का रास्ता, क्या कहते हैं वे हजरत मोहम्मद के बारे में, इस्लाम में इबारत की धारणा, मरने के बाद की जिंदगी, इस्लाम में ईश्वर की कल्पना, इस्लाम एक नजर में, क्या कहतें हैं वे इस्लाम के बारे में, क्या कहते हैं वे कुरान के बारे में।
बौद्ध दर्शन हिंदी ब्रेल में- भगवान बुद्ध की वाणी
इसाई दर्शन हिंदी ब्रेल में- ईश दूत प्रभु ईशा की वाणी
 
हिंदू दर्शन हिंदी ब्रेल में- श्री रामचरित्र मानस, हनुमान चालीसा, गांधी-गीता; अनाशक्ति योग, पुरन्दर दा के भजन, कामायनी, पंचतंत्र, हितोपनिषद ।
पवित्र किताब ‘पोथी भगत वाणी’ के ब्रेल संस्करण को 28 मई 1983 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम ज्ञानी जैल सिंह के कर कमलों से, ‘पोथी नितनेम’ के संस्करण को 1979 में डा. इन्द्रजीतसिंह जी (चेयरमेन पी.एण्ड बी. एंड द फाउंडर मेम्बर आफॅ मिशन) द्वारा, पवित्र किताब ‘नमस्कार मंत्र’ 12 फरवरी 1992 को कु. चन्द्रिका प्रेमजी-तत्कालीन सांसद एंव पवित्र पुस्तक ‘ बायोग्राफी आॅफ गुरू साहिबान’ का 24 अक्टूबर 1992 डा. इन्द्रजीतसिंह जी के सौजन्य से तथा पोथी ‘गुरू बाल गाथा’ 10 नवम्बर 2002 को महामहिम राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला द्वारा दृष्टिहीनों में निशुल्क वितरण हेतु लोकार्पित की गई।
 
दृष्टिहीनों के लिए ही कई महत्वपूर्ण आलेख आपने ‘नयन रश्मि’ तथा ‘शिशुु आलोक’ में छापे। इंही समग्र उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 27 दिसम्बर 1996 को विश्व उन्नयन संसद द्वारा दिल्ली में 56 वें कन्वोकेशन के अवसर पर आप ‘डाक्टर आॅफ विकलांग कल्याण’ की मानद उपाधि से सम्मानित किये गये। साथ ही समय-समय आपको विभिन्न संगठनों द्वारा सरोपा तथा मानपत्र भेंट किये गये। आप अपनी मातृभूमि तथा मातृभाषा से भी बराबर जुड़े रहे। आपसे एक संक्षिप्त मुलाकात आज भी स्मृति में है। 2002 के आस-पास आकाशवाणी, पौड़ी के कार्यक्रम अधिशासी राजे सिंह नेगी जी ने मुझसे कहा- ‘कठैत ! आज मेरा बड़ा भाई मुझसे मिलने आ रहा है। तुम भी मिल लेना!’ आपके बड़े भाई अर्थात कुंवर सिंह नेगी! ! आप आये! प्रांगण में ही खड़े-खड़े आपने राजे जी से गढ़वाली में कहा – ‘अजक्याळ त्यरा बाल-बच्चा कख छन?’ राजे जी ने जवाब दिया-‘ रोहतक छन!’ उन्होेंने तपाक आगे जोड़ा- ‘रोहतक मा बि त रेड्यो स्टेशन च! ’ राजे जी का जवाब था- ‘मि यख गढ़़वळि मा कार्यक्रम चलौंणू अयूं ! ’ तुरन्त कुंवर जी कहते सुने गये- ‘य त भौत बढ़िया बात च रे! अब तू यिं बात पर ध्यान दे कि जै कामौ तैं तू अयूं छै वे पर पूरो मन लगै! ’अपने अनुज को मन लगाकर मातृभाषा की सेवा करने के लिए ये प्रेरणास्पद शब्द कहने वाले ये महर्षि भी अंत तक तन-मन लगाकर अपने लक्ष्य पर डटे रहे। लगभग 6 दशक लम्बी अवधि तक दृष्टिहीनों को समर्पित अपनी अभूतपूर्व सेवा देने के पश्चात आप 20 मार्च 2014 को देहरादून में इस भाव लोक से विदा हुये।
 
आपके देहावसान के पश्चात आपकी पुत्री श्रीमती रीना एंव दामाद राकेश भण्डारी ने ‘महाराजा रणजीत सिंह इंटरनेशलन मिशन फार गुरूमुखी इन ब्रेल’ नामक प्रतिष्ठान के तहत आपके समस्त संचित यंत्र, बौद्धिक खतो किताबत यथा पुस्तकें, शोधपत्र, ब्रेल टाइपराटर, ब्रेल प्रिंटर, 8 लाख लागत की जर्मन निर्मित ब्रेल मशीन ‘चीफ खालसा दिवान चैरिटेबल सोसायटी, अमृतसर’ को उचित शोध प्रबन्धन तथा रखरखाव हेतु उन्हें सौंप दिये। उचित तो यह भी था कि आपकी स्मृति के कुछेक अंश राज्य की धरोहर के रूप में भी जुड़ते। लेकिन इस ओर शायद किसी भी स्तर पर प्रयास ही नहीं किये गये। आलेख के इस अंश को पुनः लिखने में कदापि गुरेज नहीं कि अयाल गांव में आपकी स्मृति स्वरूप आज मात्र दो दीवारें शेष हैं। गांव के ही नई पीढ़ी के त्रिलोक, मनीष, कालीचरण, अमीषा भी आपके रचना संसार से अपरिचित हैं। इसके लिए हम ही दोषी हैं क्योंकि अपनी धरोहरों के प्रति हम ही उदासीन रहे हैं। किंतु पहाड़ और पहाड़ से बाहर आपका नाम मात्र नाम भर नहीं है, वह वस्तुतः एक कागज के बिंदू का भूगोल के सिंधू तक का सफर है।
 
आपने उत्तराखण्ड की कंदराओं से चलकर अपनी प्रखर मेधा के बल पर ब्रेल शिक्षा के क्षेत्र में ‘सर्व धर्म समभाव’ का जो परचम फैलाया उसके लिए आपकी यह मातृ भूमि भी गर्वित है! निसंदेह! जब तक आप हमारे बीच रहे, तब भी आप अति विशिष्ठों में विशेष रहे! आज भी आप श्रेष्ठ हैं। दिव्यात्मन! आप युग-युग तक अमर रहें!
 
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार व लोक भाषा विशेषज्ञ हैं.