November 22, 2024



विदेशनीति के साथ पड़ोसनीति भी

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महावीर सिंह जगवान 


विश्व की महाशक्ति अमेरिका से जैसे ही चुनाव नतीजे आये सबको चौंकाते हुये, अरबपति कारोबारी रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प ने डेमोक्रैटिक पार्टी की शसक्त दावेदार हिलेरी क्लिंटन को पछाड़ते हुये पैंतालीसवें राष्ट्रपति के चुनाव मे रोमाचक जीत हासिल की।


डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका मे ही विवाद शुरू हुवा, पहले तो हिलेरी क्लिंटन के समर्थक ट्रम्प की जीत नहीं पचा पाये ऊपर से रूस की अमेरिकी चुनाव मे दखल की बातें भी बहस का कारण बनी, इन सभी संसयों को पीछे छोड़ते हुये ट्रम्प ससम्मान व्वाइट हाउस पहुँचे, दुनियाँ के कूटनीतिज्ञों मे बड़ी उत्सुकता थी, अय्यासी और बेबाक ट्रम्प क्या अमेरिका जैसी महाशक्ति की रक्षा कर पायेगा, सबसे पैनी निगाहें चीन के राष्ट्रपति शीजिनपिंग के थिंकटैंक की थी, चीन के लिये यहा बड़ा अवसर था, इसकी शुरूआत वह बराक ओबामा के कार्यकाल मे कर चुके थे, वह अमेरिका से आगे निकलने की महत्वाकाँक्षा रखते हैं, इसी रणनीति के तहत वह एशिया और अफ्रीकी देशों के साथ खाड़ी देशो तक दो रणनीतियों के तहत बढ रहा था, पहला समृद्ध देशों से ब्यवसायिक समझौते मे भारी बृद्धि दूसरा इस भू क्षेत्र के गरीब देशों को आर्थिक मदद। यहाँ तक अमेरिका की नाक मे दम करने वाले उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग को पूरी खुराक शीजिनपिंग से ही मिल रही थी।


रूस के ब्लामिदीर पुतिन भी बड़ी रणनीति के तहत अंदर खाने चीन के ही हमकदम बने हुये हैं। भारत के पड़ोसी विश्वसनीय मित्र राष्ट्र भी लड़खड़ाती आर्थिक नीति के कारण भारत के अपेक्षा चीन पर भरोसा बढा रहे हैं। निश्चित रूप से आप बारीकी से देंखे विश्व मे शीजिनपिंग के नेतृत्व मे चीन ही अपने आर्थिक और सामरिक शक्ति का वैश्विक विस्तार करते हुये स्पष्ट दिखता है, दूसरी ओर नम्बर वन की पाॅजिशन पर खड़ा अमेरिका वैश्विक परिदृष्य की अपेक्षा अपने आर्थिक और आन्तरिक सुरक्षा के साथ अपनी रणनीतियों पर फूक फूक कर बढ रहा है। शुरूआत मे डाॅनाल्ड ट्रम्प को जितने हल्के मे लिया जा रहा था उससे इक्कीस साबित करते हुये उन्होने अमेरिकन के हितों की रक्षा के लिये एच-1बी और एल-1बीजा की फीस और जटिलता बढाई, भले ही यह मामला डब्लूटीओ मे भी चल रहा है। दूसरी ओर उत्तर कोरिया के बेलगाम राष्ट्रपति किम जोंग को भी जोर का झटका बड़े आराम से दिया साथ ही कनाडा मे चल रहे जी-7देशों की बैठक मे भी अपनी बात बड़ी बेबाकी से रखकर धौंस और हितों की रक्षा सर्वोपरि प्रदर्शित कर चुके हैं। उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति जिस बेसब्री और लाचारी से ट्रम्प से दूसरी मुलाकात की कोशिष कर रहे हैं जो सिंगापुर मे तय है उसमे ट्रम्प का यह बयान “जापान के राष्ट्रपति शिंजो अबे और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून से के संयुक्त सराहनीय सहयोग की परिणति ही किम जोंग से मुलाकात संभव हो रही है “आप इस बात के अर्थ समझिये अमेरिका अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुये दक्षिण कोरिया और जापान के हितों की रक्षा करते हुये बढ रहा है जिससे स्पष्ट होता वैश्विक परिदृष्य मे अमेरिका आज भी अपने मित्र राष्ट्रों के हित धर्म निभा रहा है, ट्रम्प ने साबित कर दिया वह अमेरिका के राष्ट्रपति हैं और अमेरिका ने सबसे योग्य ब्यक्ति को चुना है जिस पर वह खरे उतरेंगे।

हमे यहाँ ट्रम्प के फैसले रणनीति मे अमेरिकी थिंक टैंक की मजबूती स्पष्ट झलकती है, राष्ट्रपति पद पर कोई भी कोई बैठे लेकिन अमेरिका का थिंक टैंक उस सदा सर्वोपरि बनाने के लिये कमर तोड़ मेहनत करता है, यह राष्ट्रों के आंतरिक संघीय ढाँचे की उत्पादकता और शसक्तिकरण का बड़ा उदाहरण है। दूसरी ओर हम चीन को देखते हैं शी जिनपिंग आजीवन राष्ट्रपति बन चुके हैं स्पष्ट है चीन का थिंक टैंक शीजिनपिंग की मुट्ठी मे है और वह अमेरिका की तरह राष्ट्र के लिये वफादार की अपेक्षा शी जिनपिंग के लिये वफादार है। शी जिनपिंग अपनी साम्राज्य विस्तार की कुटिल रणनीति को आर्थिकी का छद्म आवरण ओढकर बढ रहे हैं, वैश्विक परिदृष्य मे आर्थिक मोर्चे पर तंगी झेल रहे राष्ट्र चीन को जीवनदाता मानने की भूल कर अपनी जमीने तक लुटा रहे हैं, चीन आज जिसकी जो जरूरत उसकी पूर्ति कर उनकी आन्तरिक कमजोरी पर पकड़ बढा रहा जो भविष्य मे उन राष्ट्रों को आर्थिक गुलामी की ओर ही धकेलेगा।


बराक ओबामा के कार्यकाल मे मोदी ओबामा की जोड़ी ने भारत अमेरिकी रिश्तों को अधिक गर्माहट दी, अफगानिस्तान पर पकड़ बनाई और पाकिस्तान को अलग थलग करने की दिशा मे भी प्रगति दिखी, शुरूआत मे लगा पूरा विश्व भारत को नई संभावना की दृष्टि से देख रहा है, मोदी साहब की वैश्विक यात्राऔं से भी नई उम्मीद थी। हर भारतीय यह समझ रहा था भारत चीन और पाक से हटकर बढ रहा है लेकिन यह संभव न हो सका, शुरूआती मुलाकातों के कड़वे अनुभव ही मिले, यह सर्व विदित है मोदी साहब गुजरात के मुख्य मंत्री रहते हुये चीन के नजदीकी और निवेश को आकर्षित करते थे, आज फिर चीन को आशा की किरण के रूप मे देख रहे हैं पिछले दिनो वुहान शहर की औपचारिक बैठक शंघाई सहयोग संघठन (एस सी ओ) की सदस्यता तक पहुँच गई आज से डेढ दशक पहले जो नजरिया अमेरिका के प्रति भारतीय था और अमेरिका पाकिस्तान और भारत को एक तराजू मे तोलता था।

आज अमेरिका की जगह चीन ले रहा है वह भारत से कमतर पाकस्तान को नही मानता इसलिये एस सी ओ की सदस्यता भी एक साथ देकर स्पष्ट किया मेरा भरोसेमंद आज भी पाक ही है। हो सकता चीन के करीब पहुँचकर भारत कश्मीर मे पाक के छद्मयुद्ध से मुक्ति की संभावना देख रहा हो या भारत की आर्थिकी के सुधार मे चीन के योगदान की अपरिहार्यता। यह लाख टके का सवाल है, चीन का सहयोग सदैव आभासी और अनुत्पादकता के साथ कृटिल चालों से घिरा रहा है। क्या इसको मध्यनजर रखते हुये कदम बढाया जा रहा है। मोदी साहब के पास अमेरिका की तरह सहयोगी और मार्गनिर्देशक थिंक टैंक का टोटा है दूसरी ओर शी जिनपिंग की तरह असीमित शक्तियों का भारी अकाल, यह दोनो स्थितियाँ जरूर ललचा रही होंगी ऊपर से सत्ता मे वापसी की जद्दोजहद। और एक बात समझनी होगी आज लोकतंत्र मे जो सर्वोच्च सत्तायें हैं उन पर काबिज होने के लिये वैश्विक समर्थन की भी जरूरत आ पड़ी है। शुरूआत मे चीन कतई नहीं चाहता था मोदी साहब जैसा डायनामिक आदमी भारत का प्रधानमंत्री बने लेकिन अपनी चालों मे सफलता के बाद लगता है चीन अपनी मंशा बदल दे और मोदी साहब को फिर प्रधानमंत्री देखने की मंशा रखे।




यह सब एक परिकल्पना है, भारत के प्रधानमंत्री जी के पास चुनाव मे जाने के लिये मात्र दस महीने ही शेष बचे हैं, अब जादू की छड़ी के कमाल का इन्तजार भारत के लोंगो को करना होगा। भारत के लिये बड़ी चुनौती कृषि क्षेत्र संकट मे है, बीस राज्यों मे भाजपा की सरकार है अभी जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार और विकास के निर्माण कार्यों मे गुणवत्ता और देरी से चल रही परियोजनाऔं का भी संकट है, सार्वजनिक बैंक तरलता से जूझ रहे हैं, औद्योगिक और रोजगार सूचकांक घट रहे हैं, मोदी साहब के सभी विपक्षी एकजुट हो रहे हैं और एनडीए के साथी भी मोलभाव पर उतारू हैं। भारतीय सकारात्मक अधिक होते हैं इस सकारात्मकता का सदैव उन्हे लाभ मिला है, आशा है ही नहीं पूर्ण विश्वास है दुनिया मे भारत अग्रणी और समृद्ध राष्ट्र बनेगा।

लेखक चिन्तक और विचारक है.