गंगा घाटी की सैर
कल्याण सिंह रावत ‘मैती’
देहरादून से गंगा घाटी उत्तरकाशी जाने का एक खूबसूरत मार्ग सुवाखोली से मोरान्या टाप होकर गुजरता है। इस टाप से 2 कि मी पीछे मोरान्या गाँव है।
इस गाँव के समीप बहुत सुन्दर कई कि मी तक फैला सुन्दर चारागाह है। चूँकि यहाँ के लोंगों का मुख्य ब्यवसाय पशुपालन है इसलिए यह चारागाह यहाँ के लोगों की घास की पूर्ति करता है। इस चारागाह पर देवदार प्रजाति के पौधों का वृक्षारोपण कर इसे जंगल का रूप दिया जा रहा है। कुछ वर्षो बाद यह चारागाह देवदार का जंगल बन जायेगा। यहाँ के लोग तब घास की समस्या से जूझेंगे। पशुओं को पालना कठिन हो जायेगा। मेरे ख्याल से इस चारागाह को और अधिक विकसित किये जाने के प्रयास होने चाहिए थे,ताकि ये लोग पशुपालन के प्रति और अधिक उत्साहित होते। जानवरों की खाद का प्रयोग करके ये खूब सब्जियां उगाते हैं और सीजन पर मोर्याना टॉप में खूब जैविक सब्जियां बेचते हैं। देवदार का वृक्षारोपण कही अन्यत्र भी किया जा सकता था। हमारे योजनाकारों को स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर योजनायें क्रिवान्वित करनी चाहिए।
अस्सी के दसक में राज कपूर की एक फिल्म काफी हिट हुई थी। नाम था राम तेरी गंगा मैली। इस फिल्म के कई शाट हर्षिल की खूबसूरत वादियों में फिल्माए गए थे। फिल्म की नायिका मन्दाकिनी इस घाटी की एक भोली भाली लड़की गंगा की किरदार में थी। फिल्म में हर्षिल के पोस्ट ऑफिस को बखूबी फिल्माया गया था। यही पोस्ट ऑफिस है जहाँ से फिल्म की प्रेम कहानी शुरू होती है। आज भी वह पोस्ट ऑफिस उसी दशा में है। जब भी कोई पर्यटक हर्षिल आता है तो इस एतिहासिक डाकखाने के साथ अपनी फोटो खिचवाना नहीं भूलता है।
हरसिल का नाम विल्सन के नाम के बगैर अधूरा है। सबसे पहले इस भागीरथी घाटी में लोगो को सेब का परिचय विल्सन ने कराया था। वह इंग्लैंड से सेब की पौध लाया था और उसी ने यहाँ के लोगों को सेब लगाने के लिए प्रेरित किया था। आज यह घाटी शानदार सेब उत्पादन के लिए मशहूर है। विल्सन आज इस दुनिया में नहीं है पर उसने यहाँ के लोगों की जिंदगी ही बदल दी। सेब ही यहाँ के लोगों की प्रमुख जीविका है। विल्सन की याद में हमने भी हरसिल के बन बिभाग के परिसर में दो सेब के पेड़ मैती आन्दोलन की ओर से रोपित किये। इसकी देखभाल की जिम्मेदारी वन विभाग के कर्मचारी श्री पी एस रावत को सौंपी गई है।
हर्षिल के सेब पर मंडरा रहा है जलुवायु परिवर्तन का खतरा। वर्फबारी न होने से चिलिंग प्रोसेस सही ढंग से नहीं हो पाती है जो सेब के पौधों में वृधी होर्मोंस के स्वभाव में परिवर्तन ल देता है,इसका असर फ्लावरिंग पर पड़ता है। जनवरी, फ़रवरी में जब जम के वर्फ पड़ती है तो यह वर्फ मार्च तक नही पिधलती है यही वर्फ धीरे धीरे जमीन के अन्दर रिसता हुवा फल बनने तक सेब को मिलता रहता है। सेब के फल लगने से लेकर पकने तक सेब को अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है जो धीरे धीरे पिघलता वर्फ उसकी पूर्ति करता है और फलस्वरूप काश्तकारो को अछी गुणवता का सेब प्राप्त होता है।
धराली के काश्तकारों ने बताया कि इस बार बर्फ पड़ते ही पिघल गयी। बगीचों में बर्फ नहीं रुकी । इस बार अभी तक कुल 20 इंच बर्फ गिरी जो दो तीन दिन में ही पिघल गयी। अभी तक सेब में फ्लावरिंग की शुरवात नहीं हुई है। सेब के साथ यहाँ के काश्तकार राजमा की भी फसल उगाते हैं। यहाँ की राजमा जग प्रशिध है ,पर सेब के पेड़ो के अधिक बिस्तार लेने से अब उन बगीचों में राजमा की फसल भी नहीं हो पा रही है। अब किसान दो तरफ़ा मार झेलने को तैयार है। धराली के एक बड़े सेव उत्पादक श्री रावत जी ने कहा कि पिछले साल केवल तीस पेटी सेब मिला जब की पहले अछी वर्फ बारी के चलते चार सौ पेटी सेब बन जाता था।
मौसम परिवर्तन का भागीरथी नदी और उस घाटी के उपजों पर पड़ रहे प्रभाव तथा जन जीवन के पर्यावरण के बारे में जानने के लिए 6 मार्च को जी न्यूज़ की टीम के साथ गंगोत्री जाने का मौका मिला। हमारे युवा वैज्ञानिक डॉ राणा भी साथ में थे जिन्हें गंगा तथा उसकी सहायक नदियों का सैंपल लेना था। तीन दिन तक हम भगीरथी घाटी में मौसम परिवर्तन का स्थानीय जन जीवन पर प्रभाव व गंगा के मिजाज को जानने की कोशिश करते रहे। इस मौसम में गंगोत्री तक कोलतार की तपती चमकती सड़कों पर गाड़ी का फर्राटें भर कर दोड़ना एक बिसमय कर देने वाला अनुभव था ।पहले इस अवधि में भैरों घाटी से आगे जाना मुश्किल होता था।चार से पांच फीट बर्फ सड़कों पर पसरी रहती थी। गंगोत्री धाम इस बक्त बर्फ से मुक्त था। गंगोत्री की उपरी चट्टानें धूप में गर्म होकर चमक रही थी। सूर्य कुंड में भागीरथी की जलधार अन्दर घुस कर स्पस्ट नहीं दिखाई दे रही थी। आस पास की ऊँची चोटियों पर बर्फ चमक रही थी। गंगोत्री का बाज़ार खामोश यात्री बिहीन मानवीय हलचल से मुक्त था। मंदिर के सामने बनी कुटिया में एक बाबा जी तथा उनके दो तीन सेवक जरूर गंगोत्री में मानव उपस्थिति बनाये हुए दिखाई दिए। बाबा जी का कहना था कि इस बार कुल मिलाकर 20 इंच बर्फ गिरी थी जो तेज गर्मी के चलते तुरंत पिघल गई है।
लेखक मैती आन्दोलन के जनक हैं.