विल्सन का बंगला
कल्याण सिंह रावत
उत्तरकाशी की भागीरथी घाटी में स्थित हरसिल में जब एक अंग्रेज आर्कटेक्ट घुमने आया तो यहाँ की प्राकृतिक छटा देख कर इतना मन्त्र मुग्ध हुवा कि उसने यहीं रहने का मन बना दिया।
उसने यहाँ के लोगो को जागरूक किया। उनके काम में हाथ बंटाने लगा। 1964 में उसने हरसिल में बहने वाली दो नदियों ककोडा और जलन्दरी के बीच वाले सुरम्य स्थान में एक खूब सूरत बंगला बनाया। इस बंगले को बनाने के लिए उसने गढ़वाल के प्रशिद्ध कलाकारों को बुलाया। वह खुद भी एक प्रख्यात बास्तु शिल्प का विशेसज्ञ था। देवदार की लकड़ी का प्रयोग कर उसने शानदार बंगला बनाया। इस बंगले में 24 कमरे थे। चारों और से परकोटा आकार देकर उसने इसे दो मंजिला बनाया सुन्दर नक्कासी वाला जंगला बनाया। लोग इसे विल्सन काटेज के नाम से पुकारने लगे। इसी बीच उसने सेब की पौध तैयार करके लोगों को सेब के पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। यहाँ के लोग तब राजमा तथा आलू की फसल उगाया करते थे। उसने राजमा के खेतों में सेब के पेड़ लगाने के ट्रेनिग यहाँ के लोगों को दी। धीरे धीरे उसने सेब का बिस्तार मुखवा, धराली, बगोरी, झाला, सुक्खी, जसपुर सहित पूरी भागीरथी घाटी में किया। उसने मुखवा की एक महिला से शादी भी की थी। जिससे उसके तीन बच्चे हुए थे। विल्सन की पत्नी की कब्र भी हरसिल में बनी हुई है। विल्सन के मरने के बाद इस खूबसूरत काटेज पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस का कब्ज़ा हुवा। 1997 में बुखारी की आग कमरे के अन्दर देवदार की लकड़ी ने पकड़ ली और देखते ही देखते काटेज धू धू कर जलने लगा। आग बुझाने के सही प्रयास नही हुए चूँकि सेना के जवानों ने यह कह कर हाथ झाड़ दिए कि यह अंग्रेजों की सम्पति है, जलने दो। 7 दिन तक यह काटेज जलता रहा। बाद में वन बिभाग ने उसके स्थान पर विल्सन काटेज बनाने का प्रयास तो किया पर वह उसकी नक़ल नहीं कर पाए जबकि उनके पास उस काटेज की फोटो तक उपलब्ध थी। विल्सन का काटेज दो मंजिला और जंगला वाला था। जैसा कि पुरानी फोटो में दिखाई दे रही है। काटेज इतना खूबसूरत था की उसकी नक़ल स्थानीय लोगो ने भी अपने मकान बनाने में की है। भागीरथी घाटी के गाँव में कई मकान विल्सन काटेज पैटर्न पर बने दिखाई देते हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बन बिभाग द्वारा बनाये गए बर्तमान काटेज को उसी नक़ल में बनाया जाना चाहिए था।चूँकि विल्सन की असली काटेज की फोटो वहां उपलब्ध है। विल्सन ने उत्तराखंड की प्राचीन भवन शिल्प कला की नक़ल उस काटेज पर दी थी, जब कि बर्तमान काटेज को बनाने में हम अपनी कला ही भूल गए।
फोटो सौजन्य – लेखक