चंदन चौकी
चंद्रशेखर तिवारी
विवाह में कन्या चंदन चौकी में केश फैलाकर बैठी है।
वह अपने पिता से कहती है कि अब मैं अपने केशों को किस तरह से संभालू लगन की बेला निकट है। माँ हाथ में गडुवा लेकर खड़ी हैं। पिता जी धोती पहने हैं।वे इस तरह कांप रहे हैं जैसे हवा चलने से पत्तियां हिल रही हों। पिता कहते हैं अरे बेटी मैं थोड़ी कांप रहा हूँ यह तो कुश की डालियां कांप रही हैं। कुमाऊ की एक सांस्कृतिक झलक देखिये.
चंदन चौकी बैठी लड़ैती, केश दियो छिटकाये ए।
लाड़ी के बाबुल यूं उठि बोले, केश संभालो मेरी लाड़िली।
अब कैसे केश संभालू बबज्यू ,आई छू लगन की बेला ए।
हाथ गडुवा लै मायड़ी ठाड़ी बबज्यू पैरी धोतिया।
बबज्यू हमारे थर-थर कांपे, जैसे वायु से पात ए।
तुम मत कापों बबज्यू हमारे पहुंचे लगन की बेला ए।
हम नहीं कापें बेटी हमारी, कापें कुश की डालियां।
लाड़ी के चाचा यो उठि बोले केश संभालो मेरी लाड़िली।
अब कैसे केश संभालू चचा जी आई लगन की बेला।
फोटो सौजन्य – तिवारी जी