November 13, 2025



वेदना कुशासन के क्षण, उत्सव का कैसे हो गया मन

वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली


जब देहरादून में रजत जयंती पर विशेष विधान सभा की खबर आई तो, सामाजिक विश्लेषक अनूप नौटियाल ने सवाल उठाया, कहा था कि, उतराखंड विशेष सत्र गैरसैण में होता और राष्ट्रपति वहां जाती तो ज्यादा अच्छा होता। उनका यह भी कहना था कि 2024 के साल विधान सभा कुल दस दिन ही चली थी। धराली जैसी आपदा के बीच हास परिहास के कार्यक्रम रजत जयंती शुरूआत में अच्छे नहीं है। किन्तु विधान सभा में विनोद चमोली ने सत्र के दूसरे दिन जब यह कहा कि, मूल निवासी की परिभाषा इतनी शिथिल कर दी गई है कि, कोई भी पंद्रह साल पहले यहां आया व्यक्ति मूल निवासी बन जाता है। पर्वत वासियों को आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा है। राज्य धर्मशाला बना दिया गया है, तो वे एक उत्तराखंडी की वही पीड़ा व्यक्त कर रहे थे, तो क्या गलत कर रहे थे ? वे पहाड़ मैदान की बात नही पूरे उतराखंड की बात कर रहे थे। उसमें पहाड़ भी हैं, मैदान भी हैं, तराई भी है, भाबर भी है। उनको जबाब दिया गया हम सब उत्तराखंडी हैं।


निस्संदेह उतराखंडी कहलाना गौरव का अलग बोध तो देता ही है। यदि ऐसा न होता तों क्यों उतरांचल के नाम से मिले राज्य को बनाने का हठ बरकरार रहता। और ऐसा होने में भी लगभग सात साल लगे। कौन कह रहा है कि उत्तराखंड में रहने वाला उतराखंडी नहीं है। चिंता तो इस पर थी कि, जो मूल निवासी नहीं थे, उनको मूल निवासी नियम शिथिल कर आप पंद्रह सालों में ही मूल निवासी बना रहे हो। ऐसा नहीं है कि मूल निवासी के मामले में ही यह हो रहा है। डोमिसाइल के मामले में भी शिथलीकरण हो रहा है। चिंता की बात न होती तो क्यों जोत सिंह बिष्ठ राजनेता, जयसिंह रावत, शीशपाल गुसाईं जैसे पत्रकार अपनी गणना अपने गांव मुहिम की आहवाहन क्यों करते। प्रवासियों से उनका अनुरोध है कि प्रवासी उतराखंडी अपने मूल गांवों में अपनी गणना करवायें। अपील में कहा गया है कि, 1970 की जनगणना के आधार पर 70 विधान सभा सीट का जो परिसीमन हुआ था, उसमें नौ पर्वतीय जिलों को चालीस और चार मैदानी जिलों को 30 सीट आंबटित की गई थी।


किन्तु 2001 की जनगणना के आधार पर दूसरे परिसीमन में पर्वतीय जिलों की सीटें घटकर 34 और मैदानी जिलों की बढ़कर 36 हो गई थी। अब आगामी 2027 के परिसीमन मे यदि यह जनसंख्या असंतुलन और गहराया तो, 9 पर्वतीय जिलों की घटकर 25 तथा 4 मैदानी जिलों की बढ़कर 45 तक पहुंच सकती है। या तो फिर मैदानी पहाड़ी की लड़ाई इस तरह भड़क सकती है कि नारा हो जाये कि, मैदानों से भी मूल पहाड़ी को जिताओं। पूरे पहाडी़ मूल को वरीयता की बात उठ ही जायेगी। विधान सभा ने ही नहीं नैनीताल हाईकोर्ट ने भी उन हालातों को दिखा दिया जो राज्य में पैदा हुईं हैं। हाईकोर्ट ने 3 नवम्बर को नैनीताल जिले में भाजपा के नेता मदन जोशी के खिलाफ तत्काल कार्यवाही करने को कहा, जिसने क्षेत्र में सम्प्रादायिक तनाव भड़काने की कोशिश की। मामला जिसमें एक लोडर के ड्राइवर को यह आरोप लगाकर मारना शुरू किया गया कि, वह गाय का मांश ले जा रहा था। जांच में वह मांस गाय का नहीं निकला था। ऐसी स्थितियां एक दिन तें नहीं आईं। कुछ को लगता है कि बड़े नेताओं के करीब हम ऐसा करने से ही जायेंगे। नेता क्या चाहते हैं उनके भाषणों से मालूम चल जाता है।

इसी विशेष रजत जयंती विधान सभा सत्र में मुख्य मंत्री जो इतना भर कह कर कड़ा संदेश दे सकते थे कि, राज्य में किसी को भी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण नहीं करने दिया जायेगा, इसके विपरीत बात उन्होने यहां तक बढ़ा दी नीली हरी चादरों से जमीन का अतिक्रमण नहीं होने देंगे। क्या इतना पर्याप्त नहीं था कि, सरकारी जमीनों पर कब्जा नहीं होने देंगे। इसी तरह
आधीनस्थ सेवाओं के परीक्षा में भी जब पिछले दिनों पेपर की तस्वीर बाहर एक केन्द्र से पहुंच गई थी। तब चूंकि मामला मुख्यतया एक मुस्लिम परीक्षार्थी को मदद पहुंचाने का था तो गरजा गया, नकल जिहाद नहीं होने देंगे। पर जिहाद शब्द तब तो नहीं उपयोग में लाया गया, जब हाकम सिंह व एक अंतरराज्यीय टीम ने व्यापक पैमाने पर अधीनस्थ सेवा के लाखों रूप्ये लेकर पेपर लीक करवाई थी। अभी भी तो ऐसे समाचार आ रहें हैं कि फर्जी नियुक्ति पत्र व शैक्षणिक पत्र दिये जा रहें हैं। जाली प्रमाण पत्रों से सरकारी नौकरियां हथियाई गईं।


ऐसी जुमले बाजी अक्सर होती है कि ईकोलौजी और ईकानौमी के संतुलन से राज्य आगे बढ़ रहा है। 5 नवम्बर को उत्तरकाशी के जिलाधिकारी व सिंचाई विभाग से भागीरथी ईको सेन्सीटीव जोन में अवैद्य होटलों और रिसोर्टों के निर्माण की सर्वेक्षण पूरे रिपोर्ट देने के निर्देश दिये गये थे, परन्तु जिसका अनुपालन नहीं हुआ था। यहां भी तो निश्चित रूप से अतिक्रमण के मामले थे।हालिया देहरादून की बाढ़ में सरकार के नाक व सतर्क विधायकों के नाक के नीचे नदी धारा मोड़कर रिसोर्ट बनाने का मामला सामने आया था जिससे बाढ़ क्षतियां बढी थी। 8 नवम्बर को ही 22 व 28 अगस्त में हुई धराली आपदा से प्रभावितों की सरकार द्वारा उपेक्षा व ठीक से राहत न दिये जाने पर प्रस्तुत एक जनहित याचिका के प्रत्युतर में, सरकार की रिपोर्ट से मुख्य न्यायाधीश वाली दो सदस्यीय पीठ संतुष्ट नहीं रही। एक सप्ताह बाद की अगली सुनवाई तय की गई है।

अंततः छात्र हित में रजत जयंती सप्ताह में ही मुख्य न्यायाधीश वाली नैनीताल हाईकोर्ट की बेंच ने लगभग तीन साल पुराने में 4 नवम्बर को उत्तराखंड से पूछा कि वह कैम्पस रैगिंग रोकने पर कब बिल ला रही है। मामला एक सरकारी मेडिकल कालेज से जुड़ा था। याचिका कर्ता के वकील ने बताया कि सरकार ने उसके पहले के आदेशों का पालन नहीं किया और भ्रामक शपथनामा दिया। इसी रजत जयंती सप्ताह में 13 करोड़ रू नकली ब्रैडेंड दवाइयोंं का कारोबार पकड़ा गया था। मुम्बई पुलिस ने करोड़ों के ड्रग्स के कारोबार को उत्तराखंड से संचालित होकर मुंबई तक पहुंचने पर राज्य में पहुंच कार्यवाही की। मुम्बई पुलिस की कार्यवाही के बाद उत्तराखंड पुलिस को इस अंतरराज्यीय गिरोह का पता चला। ऐसा ही नकली दवाइयों के मामलों में भी होता रहा। जब बाहर के राज्यों की पुलिस अपने यहां भारी मात्रा में ब्रांडेड नकली दवाइयों की खेप की ट्रेल पकडती हुई मुख्य सरगनों की तलाश में उत्तराखंड पहुंचती है, तब मालूम चलता है यह सब अंतरराज्यीय अपराध देहरादून के नाक के नीचे हो रहा था।
एक सुदूर राज्य के विश्व प्रसिध्द प्रतिष्ठित मंदिर में नकली घी निर्माण के उत्तराखंड श्रोत उसी राज्य की पुलिस पहुंची थी।
अब बच्चियों महिलाओं की असुरक्षा बात भी इसी रजत सप्ताह में आई है। राज्य की एक बच्ची के माता पिता ने कहा कि एक मनचले के करतूतों और भय से वे अपनी बच्ची को स्कून न भेजने के निर्णय लेने को बाध्य हो रहें हैं। इसी सप्ताह उत्तरकाशी मुनस्यारी में भालू के आक्रमण से महिलाओं की मौतों के भी समाचार आये हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी द्वारा महिला पत्रकार से अभद्रता के समाचार भी आये। मुख्य मंत्री सोचें कि वो इतने कमजोर कैसे हो गये हैं कि, वो जरूरत भर भी मंत्रा नहीं रख पा रहें हैं या भ्रष्ठ व अकर्मण्यों को नहीं हटा पा रहें हैं। ये कहां का भ्रष्ठाचार के प्रति जीरो टोलरेंस हैं। अपने मंत्रीमंडल के साथी प्रेमचंद्र अग्रवाल को भी उनके जनता के साथ सार्वजनिक रूप् से देखे गये, व्ष्वहार या बनने वाले एक रिसोर्ट में वनभूमि पर कब्जा, जिसकी एफ.आई.आर. सरकारी कर्मचारी ने ही लिखाई थी नहीं हटा पाये।




परन्तु हर दूसरे – तीसरे महिने बाद ऐसी खबरें प्लांट हो जाती हैं कि, जल्दी ही मंत्री मण्डल विस्तार व कुछ की छुट्टी होगी। परन्तु होता तब यह है कि जिनको हटाये जाने का डर सताने लगता है, वे सबसे ज्यादा केन्द्रीय मंत्रियों व नेताओं से शिष्टाचार भेंट करने दिल्ली परिक्रमा पर निकल जाते हैं। चाहिये वो सबसे ज्यादा शिस्टाचार भेंट भ्रष्ट अकर्मण्य या भ्रष्ट मंत्री मंत्रियों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा न हटा पाना और मंत्रीमंडल का विस्तार न कर पाना, राजनैतिक व प्रशासकीय दृष्टि से कमजोर नेतृत्व का ही द्योत्तक ही नहीं है, बल्कि राज्य की बेहद दुर्गति का कारण भी है. किसको नहीं मालूम की राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं में, अस्पतालों में, शिक्षा में ,स्कूलों में और सहकारिता में कितनी खामियां है। स्कूल बंद हो रहें हें, शिक्षक नहीं बच्चे जर्जर भवनों में पढ़ रहें हैं, अस्पतालों में एम्बुलेंस नहीं उपलब्ध है। वे रेफरल केन्द्र बन गये हैं। सहकारी में भर्ती और धन घोटाला चर्चा में रहा है। और ये तीनों विभाग एक ही मंत्री के पास हैं। मुख्यमंत्री भी इतने विभागों के साथ बोझा में हैं।

।8 नवम्बर की ही रूद्रप्रयाग जिले की खबर है कि, प्रसव वेदना में पड़ी गर्भवती महिला को ले जाती ऐम्बुलेन्स रास्ते में ही खराब हो गई। दूसरी ऐम्बुलेन्स के पहुंचने के पहले ही खराब एम्बुलेंस में महिला ने शिशु जन्म दिया। ये कई घटनायें राज्य में होती रहीं हैं। ऐसा बस दुर्घटनाओं के समय भी हुआ है। रोज बयानबाजी होती है कि राज्य को इतने इतने से नई भर्ती से डाक्टरों की सौगात मिलेगी, पर वो सौगात कभी नहीं मिलती। बल्कि रोना तो उन सककारी मेडिकल कालेजों का भी है, जहां अस्पताल भी चलने हैं व मेडिकल की पढ़ाई होनी है। वहां डाक्टरों की बेहद कमी है। चौखटिया वालों की स्वास्थ्य की खराब हाल व अपने अपने अस्पताल की उच्चीकरण के लिये धरना प्रदर्शन इसका द्योतक है। साक्ष्य में प्रेस क्लब परिवार के समुह में उतराखंड ऐट 25 के ये उध्दहरण है कि, उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति चिंताजनक – सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डाक्टरों की कमी 94 प्रतिशत पहाड़ी जिलों में विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी – 70 प्रतिशत का आंकड़ा एक न्यूज पोर्टल में आया है।

सरकारी स्कूलों में ढहती शिक्षा व्यवस्था 25 साल में चार हजार स्कूल बंद हो गये हैं । इसी 7 नवम्बर को मेरी वरिष्ठ आन्दोलनकारी व पूर्व दर्जाधारी भाजपा नेता श्री रविन्द्र जुगराण से बात हुई। इसी लेख के परिपेक्ष में। मैंने उनसे पूछा कि जब इसी साल राष्ट्रीय खेल की मेजबानी करते हुये उत्तराखंड के रिकार्ड पदक मिले थे, तो आपने बयान दिया था कि, पदक पाने वालों में ऐसे लोग जो राज्य के डोमिसाइल भी नहीं हैं, उनको पदकों के साथ की राज्य द्वारा घोषित पारितोषिक धनराशि नहीं दिया जाना चाहिये। ऐसा क्यों? उनका कहना है कि राज्य को खुद ही सोचना चाहिये था कि, हम यदि अपने ही राज्य के बच्चों से इसमें शिरकत करवाते तो उनको अच्छा प्लेट फार्म मिलता, अच्छी कोचिंग मिलती। किन्तु यदि ऐसा न हुआ तो कम से कम राज्य का खेलों के निमित धन राज्य में तो रहे। यह तो ठीक भी नहीं था कि, बाहर वालों को अपना खिलाड़ी बता रहें हैं।
देवभूमि में मर्यादा बनाये रखने का भी दायित्व नहीं निभ रहा है।

केदारनाथ में कैसी कैसी रीलें बन चुकी है। श्री बदरीनाथ धाम में भी पारम्परिक पुजा अर्चन करने कराने वाले परिवार, जब – तब अंसंतोष जाहिर कर ही देते हैं। जगदगुरू शंकराचार्य ज्योतीरमठ स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने भी 22 , 23 जून 2023 को सार्वजनिक रूप से यह बताया था कि, श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर मैं स्वयं वहां मौजूद था। तब वहां चाबी ले कर कतिपई पण्डा पुरोहित पहुंचे तो, देखा वहां उनके घर व दुकानें वहां नहीं थी। उन्होने कहा कि बद्रीनाथ धाम महायोजना के कामों में धाम की धार्मिक विशिष्टताओं की उपेक्षा की जा रही है। उन पवित्र धाराओं को जिनमे रावल जी के स्नान की महत्ता है को भी क्षतिग्रस्त किया गया है। अभी कुशासन, बदनामी, और संवेदनहीनता के कितने और शिखरों का आरोहण बाकी है। कोई बदनामी का व जनता के कष्टों का कीर्तिमान नहीं है जो इन सालों में टूटा नहीं है। जो संभवतया उ. प्र. के काल में भी भ्रष्टाचार से काम करवाते थे और अब उत्तराखंड में भी करवाते हैं।

उनका कहना है कि, जब से उत्तराखंड बना रेट बहुत ज्यादा है। केवल मीडिया के उस वर्ग के कारण ही जो मंत्रियों या सरकारी विभागों के भेजे गये हैंड आउटो को बिना सवाल किये अपने पोर्टलों में दे देता है, अक्षम अकर्मण्य जमे हुये हैं। आप देखें कि, बिना फुलस्टौप कोमा के अंतर के भी एक सी खबरें होती हैं। हां एक बात जरूर और होती है, वह है ज्यादातार समाचारों में कहीं न कहीं सौगात शब्द जोड़ दिया जाता है। हर क्षण छपा दिया जाता है कि, फलाने मंत्री चाहे वे केन्द्र के हों या राज्य के द्ल द्वारा, क्षेत्र को या राज्य को ये सौगात दिये गये। जनता के पैसे से जनता के हक को दिया जाना सौगात कहना, जनता – जनार्दन पर चोट करने से कम नहीं है। हक के पैसे से ही जनता को कुछ दिये जाने को जो सौगात बताते हैं, समझ लें उनकी जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति संवेदनायें कुंद हो चुकी हैं। सौगात की ही बात करें तो, इसी विशेष विधान सभा सत्र में जब प्रतिपक्ष के नेता ने मुनीकिरेती की उस शराब की दुकान का जिक्र किया, जिसके विरोध में जनता धरना दे रही है, किन्तु सरकार पुलिस के संरक्षण में शराब बिकवा रही है, तो केबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का कहना था कि, पहले जब यह शराब की दुकान नहीं थी तो, लोगों को दूर दूसरी जगह जाना पड़ता था। यह तो सौगात ही हुई जैसे ढहते पहाड़ों की सौगात मिल रही है।

छवि निखार प्रचारों में सरकार कितना खर्च कर रही है व उससे कितनें को फायदा हो रहा है, जब यह बात प्रतिभा के धनी युवा पत्रकार राहुल कोटियाल ने अक्टूबर माह में उठाई, तो उनके पोस्टों को जहां तहां से हटवा दिया गया। यही नहीं उनकी छवि बेहद खराब करने की कोशिश की गई। जिसका किसी ने विश्वास भी नहीं किया। व उनके विरूध्द कुत्सित प्रयासों का भण्डाफोड़ भी हो गया। औसत आय वृध्दि के ढिंढोरे का क्या मतलब, जब तक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों के परिवारियों की आय की बात नहीं करते। सरकार का हाल तो यह है बीस प्रतिशत भी जनता पर खर्च करने के लिये पैसा नहीं बचता है। राज्य के हर नागरिक के सिर पर लगभग एक लाख रूपये का कर्जा चढ़ा दिया गया है। इस पर भी करोड़ों रुपयों के ठेकेदारों के भुगतान रूके हैं। अस्पतालों से भी उनके बिल न दिये जाने से सरकार को मरीजों को कैशलेस उपचार न देने की धमकी दी जाती है।डबल इंजन, डबल गति से कर्जा देकर कर्जदार बना रहा है। सच्चाई स्वीकार करने का भी समय पहले अपने गलतियों को सुधारने वाला नम्बर एक राज्य बनिये। भर्तियों र्को भ्रष्टाचार के साये से बाहर निकालें। सेक्स व्यापार, साइबर ठगी, नकली दवाइयों का रोजगार व बच्चों में नशा न फैलने दें। याद रखें जो गुण आप में न हों ,यदि आपका उसके लिये प्रशंसा करते हैं तो, ऐसे ही लोग, जो अवगुण आप में नहीं, उसके लिये आपकी आलोचना भी करेंगे। न भूलें ढलान का कोई रोड मैप नहीं होता है, 2050 के रोडमैप के पहले पहले जरूर सुरक्षित वापसी का प्रयास करिये।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं