February 23, 2025



उत्तराखंड के पहले विधायक और वकील तारादत्त गैरोला

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डॉ योगेश धस्माना, राधिका धस्माना


तारादत्त गैरोला (1875- 1940) उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, भाषा विज्ञानी, प्रखर लेखक संपादक के साथ ही राज्य के उत्तर प्रदेश में पहले पहाड़ी वकील थे। उनकी शिक्षा, बरेली और इलाहाबाद से हुई। 1901 में उन्होंने अधिवक्ता की परीक्षा पास कर उत्तराखंड से पहले। वकील के रूप में देहरादून से अपनी प्रैक्टिस शुरू की। 1919 से 1920 तक संयुक्त प्रांत की असेंबली में उत्तराखण्ड की जनता का प्रतिनिधत्व करने वाले प्रथम नागरिक थे। तारादत्त गैरोला हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृति और गढ़वाली भाषा के उत्कृष्ट रचना कार थे। 1924 में अल्मोड़ा में आयोजित भाषा विज्ञानियों के सेमिनार में उन्होंने, गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर और प्रशासक और भाषा विज्ञानी ओकले की उपस्थिति में, हिमालय की लोक कथाओं पर अपना शोध पत्र पढ़ा, तो गुरु टैगोर और ओकले ने उनकी प्रशंसा की उन्हें इसपर आगे काम की सलाह दी। इसके बाद ओकले (Oakley) ने भी उन्हें इस कार्य में सहायता की उनके साहित्य को समृद्ध किया। इसके बाद ही उन्होंने हिमालयन फोकलोर की रचना की।

हिंदी के प्रथम डी. लिट डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल ने उनके बारे में लिखा था, कि वे उत्तराखंड के आध्यात्मिक जगत के सितारे है। उनके प्रसिद्ध ग्रन्थ साम्स ऑफ दादू का सम्मान उतना ही है, जितना टैगोर की कृति हंड्रेड पोएम्स ऑफ कबीर। यूपी सरकार द्वारा 1924 में गठित उत्तराखंड फारेस्ट कमेटी का सदस्य बनाया गया। 1905 से 1916 तक गढ़वाली पत्र के संपादक के रूप में उन्होंने गढ़वाली लोक साहित्य की दुर्लभ पांडुलिपियों का प्रकाशन कर, ब्रिटिश भाषा विज्ञानियों के समक्ष अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत कर पहलीबार यूरोप तक अपने लोक साहित्य को पहुंचाया था। तारादत्त ओर रवींद्रनाथ टैगोर की मित्रता के कारण ही गैरोला के बड़े पुत्र, रवींद्र गैरोला को 1928 में कलकत्ता के शांति निकेतन में पढ़ने का अवसर मिला था। गैरोला जी ने अपने समकालीन गढ़वाली के साहित्यकारों से कहा था कि, अनुवाद के जरिए से ही अपने लोक साहित्य को विश्व पटल पर मूल्यांकन के लिए भाषा विज्ञानियों के समक्ष रख सकते है।


पौड़ी में 1910 से वकालत प्रारंभ करने वाले तारादत्त ने 1911 में पौड़ी से 05 किलोमीटर दूर काफलसैण में विशाल घर का निर्माण करवाया था। यही पर उन्होंने लॉन टैनिस का कोर्ट बनाया था। अंग्रेज अधिकारी भी यहां खेलने आते थे। 1928 में फिजी देश में विपक्ष के नेता और रुद्रप्रयाग के निवासी बद्री प्रसाद बमोला भी सरकारी मेहमान का दर्जा रखने के बाद भी बद्री महाराज इसी भवन पर तारादत्त जी के साथ रुके थे। कई पुस्तकों के रचनाकार तारा दत्त ने इसी भवन पर हिमालयन फोकलोर और गढ़वाली की काब्य रचनाए सदई के रूप में पौड़ी में ही लिखी।


तारादत्त गैरोला के जीवन की उल्लेखनीय घटना बेगार आंदोलन को अमानवीय बताते हुए, उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर इसे जनता के पक्ष में जीत दर्ज करने वाले प्रमुख व्यक्तियों में एक थे। विधान परिषद में भी उन्होंने इस कुप्रथा को समाप्त करने में निर्णायक भूमिका निभाते हुए सदन में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, तारादत्त पंडित गोविंद बल्लभ पंत से 12 वर्ष अधिक बड़े थे। इस नाते पंत उनका बहुत सम्मान करते थे। दुर्भाग्य से तारादत्त कुल 65 वर्ष की अवस्था में चल बसे, यदि गैरोला कुछ वर्ष ओर जीवित रहते, तो गढ़वाल की सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक हैसियत कुछ ओर ही होती। इस तरह 28 मई 1940 में उनके असामयिक निधन से उच्च कोटि की प्रतिभा का अवसान हो गया। आज की पीढ़ी यहां तक कि साहित्य सेवी भी उनको बहुत कम जानते है।

तारादत्त गैरोला गढ़वाल कुमाऊं के ऐसे सामान्य ओर प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, जिन्होंने कुमाऊं परिषद के तीसरे अधिवेशन जो हल्द्वानी में, 1918 में आयोजित किया गया था, उसके मुख्य अतिथि के रूप में गढ़वाल से आमंत्रित किया गया था। उनका कुमाऊं में इतना सम्मान था कि, हल्द्वानी में उनको लाने के लिए जो बग्गी लाई गई थी, उत्साही युवकों ने उसके घोड़े खोल कर स्वयं अपने हाथों से बग्गी को खींच कर उन्हें सभा स्थल तक लाए थे। यह तब एक अभूतपूर्व उनके प्रति सम्मान था। पौड़ी बार एसोसिएशन से अनुरोध है कि, न्यायालय परिसर में उनकी मूर्ति लगाकर उनकी स्मृति में लाइब्रेरी की स्थापना की जाए, साथ ही एक व्याख्यान माला का भी आयोजन हो। इस पोस्ट के साथ तारादत्त जी, गढ़वाली के संपादक बीडी चंदोला , उनके भवन का फोटो साथ में तारादत्त जी के पौत्र डॉ. विमल गैरोला का फोटो पाठकों के लिए साझा कर रहा हूं I


साभार – लेखकगण लोक इतिहासकार हैं