January 10, 2025



Himalayan Symphony किताब का विमोचन

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डॉ. नंदकिशोर हटवाल


दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में डॉ. दीपक बिजल्वाण की Himalayan Symphony किताब का विमोचन किया गया। पुस्तक में गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी के 43 गीतों का अंग्रेजी में अनुवाद दिया गया है। यह डॉ. बिजल्वांण की दूसरी पुस्तक है। इससे पहले उनकी Himalayan Melody के नाम से पहली पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है जिसमें कि नरेन्द्र सिंह नेगी के 40 गीतों का अंग्रेजी अनुवाद दिया गया है।

हम विश्वगांव के लोग


भूमंडलीकरण के इस समय में हम ‘विश्वगांव’ (global village) में रह रहे हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् (The World is One Family) का दर्शन साकार हो रहा है। सब एक-दूसरे के अड़ोस-पड़ोस में रहते हैं। हम सब एक-दूसरे के घरों की हलचलें देख रहे हैं, सबके रोने-हंसने, लड़ाई, झगड़ा, खाना-पीना, उठना-बैठना जैसी छोटी-छोटी गतिविधियों से भी परिचित हैं। एक दूसरे के बारे में जानने-समझने की इच्छा-उत्कण्ठा-उत्सुकता बढ़ गई है। हम विश्वगांव के लोग बहुत सारी भाषाएं बोलते हैं। यह विविध भाषाओं, धर्म और संस्कृतियों के सह-अस्तित्व के स्वीकार का समय है। बहुभाषिकता आज की हमारी जरूरत है वहीं हमारे सामने अपनी भाषाओं को बचाने की चुनौती भी है। ऐसे समय में अनुवाद की महत्ता में भी वृद्धि हुई है। अनुवाद की सार्थकता और प्रासंगिकता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।


अनुवाद की चुनौती

अनुवाद का काम चुनौती भरा है। खासकर क्षेत्रीय भाषाओं से जब बड़ी या मानक भाषाओं अथवा प्रादेशिक, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता है तो चुनौती और बड़ी हो जाती है। कोई भी एक भाषा किसी भी दूसरी भाषा की रचनाओं के सम्पूर्ण प्रभावों, भावनाओं के साथ अपने में उसी रूप में नहीं उतार सकती। भाषा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, परंपरागत और भौगोलिक परिवेश में पलती, पनपती और विकसित होती है इसलिए श्रोत भाषा के कथ्य को लक्ष्य भाषा में पूर्णता के साथ प्रतिस्थापित करना सरल नहीं है। भाषा कोई ऐसा बर्तन या थैला नहीं जो कि दूसरी भाषा के सामान को पूरा का पूरा, बिना कोई नफा-नुकसान, टूट-फूट, घट-बढ़ के अपने में समेट दे।


सर्जनात्मक साहित्य (creative writing गीत, कविता, कहानी, नाटक आदि) में अनुवाद की यह चुनौती और बढ जाती है। श्रोत भाषा के भाव, विचार और कथ्य को पूर्ण रूप से लक्ष्य भाषा में ले जाने की चुनौती हर वक्त अनुवादक के सम्मुख रहती है। सर्जनात्मक साहित्य के अनुवाद में मूल पाठ की चेतना तथा ऊष्मा को लक्ष्य भाषा में भी बनाये रखने का दबाव अनुवादक पर हरदम रहता है। अनुवादक से यह भी अपेक्षा रहती है कि स्रोत भाषा में कही गई बात का जो प्रभाव स्रोत भाषा के पाठक पर पड़ता है, उसी बात का वही प्रभाव लक्ष्य भाषा के पाठक पर भी पड़े। इसी परिप्रेक्ष्य में अनुवादक को भाषिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा अन्य संदर्भपरक आयामों से गुजरना पड़ता है ताकि स्रोत भाषा की पाठ्य-सामग्री की अभिव्यक्ति लक्ष्य भाषा में पूर्णतया श्रोत भाषा के समरूप अथवा समान रूप से हो सके। डॉ. दीपक इस चुनौती को स्वीकारते हुए इस कार्य पर निरन्तर लगे हैं यह भी महत्वपूर्ण है।

गढ़वाली साहित्य का यह पहला अनुवाद है




गढ़वाली के रचनात्मक साहित्य (creative writing) का गढ़वाली से अंग्रेजी में यह पहला अनुवाद है। यह अपनी तरह का प्रथम अनुवाद है इसलिए यह ऐतिहासिक है। इससे पहले किसी भी रचनाकार की रचनाओं का इतनी बड़ी मात्रा में एक साथ गढ़वाली से सीधे अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ है। अंग्रेजी छोड़िए गढ़वाली के रचनात्मक साहित्य (creative writing गीत, कविता, कहानी, नाटक आदि) का हिंदी में भी अनुवाद नहीं है। जो छुट-पुट है वह बहुत कम है। देवेन्द्र जोशी की दो कविताओं का हिंदी में अनुवाद हुआ है। प्रो. जयवंती डिमरी एवं प्रो. सुरेखा डंगवाल ने स्त्रियों द्वारा रचित गढ़वाली-कुमाउनी की कुछ कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। बाकी गढ़वाली से अंग्रेजी में कुछ और हुआ हो तो फेसबुक मित्रगण कृपया कमेंट बॉक्स में जानकारी साझा करने की कृपा करें।

गढ़वाली के लोक साहित्य का अंग्रेजी में अनुवाद

लोक साहित्य का अंग्रेजी अनुवाद हुआ है। तारादत्त गैरोला, ई.एस. ओकले का ’हिमालयन फोकलोर’ अंग्रेजी में प्रकाशिन हुआ है। गंगा दत्त उप्रेती ने 1891 में अंग्रेजी में फोक प्रोवर्बस (अखाणा-पखाणा) आफ गढ़वाल लिखी जिसे इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फार आर्ट ने प्रकाशित किया। नरेन्द्र सिंह भण्डारी का ‘स्नो बॉल्स आफ गढ़वाल’ प्रो. डीआर पुरोहित, विलियम एस सैक्स, भीष्म कुकरेती आदि ने अपनी किताबों, शोध पत्रों, लेखों में लोक साहित्य का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया हैं। प्रो. डी.आर. पुरोहित ने अपनी थीसिस में लोकगीतों का अंग्रेजी अनुवाद दिया है। उन्होंने अपने विविध शोध पत्रों में बग्ड्वालि, पन्वाणि और मुखौटों से संबंधित गीतों का अंग्रेजी में अनुवाद भी प्रकाशित किये है। विलियम एस सैक्स ने नंदादेवी के जागरों, पाण्डव, भैरव और कर्ण पर प्रकाशित किताबों में आवश्यकतानुसार लोकगीत और गाथाओं का अंग्रेजी अनुवाद छापा है।

हिंदी-अंग्रेजी से गढ़वाली में अनुवाद

हिंदी-अंग्रेजी से भी गढ़वाली में अनुवाद हुए हैं। गढ़वाली साहित्य का हिंदी-अंग्रेजी में अनुवाद की तुलना में हिंदी-अंग्रेजी साहित्य का गढ़वाली में ज्यादा अनुवाद है। बाइबिल की कहानियों का गढ़वाली अनुवाद को पहला अनुवाद माना जाता है जो कि 1820 ई0 के आसपास हुआ था। अबोध बंधु बहुगुणा ने चार्ल्स डिकिंस के उपन्यास ‘डेविड कॉपरफील्ड’ का ‘पूफु क्वां ड्योरा’ नाम से गढ़वाली में अनुवाद किया है। दिनेश विजल्वांण ने शेक्सपीयर के नाटक ऑथेलो का गढ़वाली का अनुवाद किया है। डॉ. उमेश चमोला ने शेक्सपीयर के नाटकों का गढ़वाली में कथात्मक रूपांतरण और टाल्स्टाय की कहानियों का गढ़वाली रूपान्तरण किया है। भीष्म कुकरेती, कांता घिल्डियाल, एन.सीई.आर.टी, एन.बी.टी. आदि के द्वारा भी हिंदी-अंग्रेजी से गढ़वाली में अनुवाद किये गए हैं। छुट-पुट रूप से हिंदी-अंग्रेज से गढ़वाली में कुछ और अनुवाद भी हो सकते हैं। फेसबुक मित्रगण कृपया कमेंट बॉक्स में जानकारी साझा करने की कृपा करें।

पर बात गढ़वाली से हिंदी-अंग्रेजी में अनुवाद की है

हां, गढ़वाली के रचनात्मक साहित्य के हिंदी-अंग्रेजी में अनुवाद की बात। अर्थात गढ़वाली के शिष्ट साहित्य अथवा परिनिष्ठित साहित्य का हिंदी-अंग्रेजी में अनुवाद। यह नहीं हुआ है. इसलिए नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों का अंग्रेजी अनुवाद गढ़वाली साहित्य के इतिहास में ऐतिहासिक घटना है। यह मील का पत्थर है। किसी रचना के श्रेष्ठ होने की कसौटी भी होती है अनुवाद। इस अनुवाद कार्य को हम गढ़वाली साहित्य की वैश्विक स्वीकृति, गढ़वाली साहित्य का विश्व स्तर का होना, गढ़वाली रचनात्मक साहित्य के वैश्विक साहित्य के रूप में मान्यता मिलना, गढ़वाली साहित्य को विश्व साहित्य के बरअक्स खड़ा होना जैसा भी कुछ कह सकते हैं।

विश्व साहित्य के अध्येता यदि नरेन्द्र नेगी के गीतों की ओर आकर्षित होते हैं, उन्हें पसंद करते हैं, अनुवाद के योग्य समझते हैं तो यह किसी रचनाकार और उसकी रचनाओं के उत्तम होने की एक कसौटी भी है। यह सिर्फ नरेन्द्र सिंह नेगी की नहीं पूरे गढ़वाली साहित्य के लिए एक उपलब्धि है। यह भी ज्ञातव्य है कि दीन दयाल सुंदरियाल ने ‘नरेन्द्र गीतिका’ के नाम से नरेन्द्र नेगी के गीतों का गढ़वाली से हिंदी में अनुवाद किया है। ‘कल फिर जब सुबह होगी’ ललित मोहन रयाल, और नरेन्द्र नेगी के गीतों में जनसरोकार/सम्पादक प्रो. सम्पूर्ण सिंह रावत, डॉ. नंद किशोर हटवाल, गणेश खुगशाल ‘गणि’ में नरेन्द्र नेगी के गीतों के अनुवाद के साथ विवेचना भी की गई है। इन विवेचनाओं से नरेन्द्र नेगी के गीतों की गहराई का पता चलता है।

गढ़वाली गीतों में धूम-धड़ाका

वर्तमान में गीत साहित्य में जो धूम-धड़ाका मचा है, जैसे गीत आ रहे हैं, जो रायता फैला है, जैसे गीत लिखे जा रहे हैं, लाईक, कमेंट और शेयर के चक्कर में जो बेहूदापन फैल रहा है वह चिंताजनक है। जिन गीतों को मिलियन्स व्यूज, लाइक कमेंट मिल रहे हैं उनकी शब्द रचना ( Lyrics ) को संगीत के धूम-धड़ाके से इतर सुने या पढ़ें तो वो पढ़ने लायख नहीं हैं। अनुवाद करें तो उनकी हवा निकल जाती है, कलई उतर जाती है। ऐसे समय में गढ़वाली के गीत साहित्य का अंग्रेजी में अनुवाद किया जाना और उसे वैश्विक मान्यता मिलना न सिर्फ गढ़वाली के गीतकार नरेन्द्र सिंह नेगी, बल्कि गढ़वाली के रचनात्मक साहित्य के लिए भी विशिष्ट घटना है। इसलिए साधुवाद गढ़रत्न नरेन्द्र नेगी को भी और अनुवादक डॉ. दीपक बिजल्वाण को भी !

लेख़क प्रसिद्ध लेखक, कहानीकार, चित्रकार व लोक शोधार्थी हैं