ह्युकुंड बोले तो हेमकुंड
डॉ. एम. पी. एस. बिष्ट
एक कहानी ह्युकुंड बोले तो हेमकुंड की : दोस्तों आपको पता है इस high altitude cirque glacial lake कुंड की खोज किसने की थी. ज्यादातर लोग कहेंगे सरदार मोदन सिंह जी ने. परंतु मेरा तो ये मानना है कि इसकी खोज तो हमारे चमोली जिले के भूंडार गाँव के भेड़-बकरी पालक (पालसी) लोगों ने सायद बहुत पहले ही कर दिया था। ऐसा मैं क्यूँ कह रहा हूं इसके मेरे पास कुछ प्रमाण हैं. दरअसल जब मैं पहली बार 1988 में इस कुंड को देखने आया था, तो तब यहां एक गुरुद्वारा बन रहा था। उसके बगल मे एक और कुटिया थी जिसे गाँव वाले लक्ष्मण जी का मंदिर कहते थे और अक्सर यहां पूजा अर्चना करते थे। परंतु रास्ते भर में घोड़े – खच्चर बड़े बड़े लकड़ी के स्लीपर लाद कर गोविन्द घाट से पहले घंगरिया और फिर घंगरिया से 06 किलोमीटर की खडी चढ़ायी पार कर यहां तक ढ़ो रहे थे.
मेरा मानना है कि इस कुंड की खोज तो लगभग 1936 के आसपास जब एक सरदार अपने दशम गुरु गोविंद सिंह जी की तपस्थली को ढूँढने निकले थे ” उनके ग्रंथ में शायद कहीं ये उल्लेख था कि हिमालय सात चोटियों के मध्य कोई कुंड है उसके निकट बैठ कर गुरु जी ने तप किया था”, सरदार मोदन सिंह जी जब इस स्थान को ढूँढने निकले तो वे घूमते घूमते भूंडार गाँव पहुंचे. उनकी मुलाकात गाँव के एक बुजुर्ग पालिसी (भेड़ पालक) से हुयी, और वे बुजुर्ग से पूछने लगे कि यहां कोई ऐसा स्थान है जैसा कि हमारे पवित्र ग्रंथ मे उधृत है कि सात चोटियों के मध्य एक सरोवर है, जिसके किनारे कभी हमारे गुरुजी ने पिछले जन्म मे तप किया था! बुजुर्ग ने कहा हाँ! बहुत कुछ मिलता जुलता ऐसा एक ह्यु कुंड हमारे घंगरिया पड़ाव के पास है, परंतु मार्ग कठिन है। मोदन सिंह जी ने कहा आप मुझे वहाँ तक ले चलो, बुजुर्ग ने कहा मेरी उम्र अब इतनी नहीं कि मैं उस चढ़ायी पर जा सकूँ, परंतु आप इतनी दूर से आये हो तो मैं, अपने लड़के को आपके साथ भेज सकता हूं, क्योंकि यह मेरे साथ उस कुंड तक कई बार वहाँ तक जा चुका है बकरियों के संग। और बग़ल मे बैठे तब 16 वर्ष के बालक नंदासिंह को कहा कि जाओ और सरदार जी को ह्यु कुंड दिखा कर लाओ।
मित्रों जब मेरी मुलाकात सन 2003 मे मेरे प्रोजेक्ट कार्य के दौरान भूंडार गाँव मे श्री नंदा सिंह चौहान जी से हुयी, इस वक्त उनकी उम्र लगभग 80-82 वर्ष की हो चुकी थी । कान थोड़ा कम सुनते थे, परंतु आवाज बड़ी साफ़ थी । मैं अपनी आदत के अनुरूप, बुजुर्ग लोगों से गप मारने की आदत, उनसे घाटी के बारे मे जानकारी लेने लगा, पहले तो वे कुछ भी बताने को राजी नहीं हुए परन्तु मैं भी कहां हारने वाला, आखिर जैसे तैसे मना ही लिया, उनका पोता चन्द्रशेखर चौहान मेरे साथ था, कहता रहा सर दादा जी किसी को कुछ नहीं बताते सिर्फ अपने ध्यान मे रहते है, आप पहले आदमी हो जो आपसे बात कर रहे हैं और मित्रों जैसा कि मैंने सुरु मे भी कहा कि अपनी सोलह वर्ष की घटना को उन्होंने मेरे सामने “ऑन रिकार्ड कैमरा ” उस घटना विवरण तथा घाटी के बारे मे अपना 80- 82 साल का ज्ञान जो उड़ेला मैं तो स्तब्ध रह गया, कि नंदा सिंह जी कितने ज्ञानी पुरुष है.
उनको गुरुवाणी कण्ठस्थ याद थी , गुरु ग्रंथ साहिब के उन्होंने कई सबद सुना डाले, पता चला दूसरी बार जब सरदार मोदन सिंह जी जब वहाँ आए, तो नंदा सिंह जी को यहां का ग्रंथी बना कर चले गए और इस तरह नंदा सिंह जी अगले 20 वर्षों तक इस गुरुद्वारा, (तब इस ह्यु कुंड के निकट एक पत्थरों की छोटी सी कुटिया थी) के पूर्ण कालिक ग्रंथी रहे और रोज गुरुवाणी का पाठ करते थे। स्व . श्री नंदा सिंह चौहान जी का फ़ूलों की घाटी का ज्ञान भी अद्भुत था। मैंने उनसे जो ज्ञान प्राप्त किया शायद उन्होंने अपने बच्चों या पोते तक को नहीं बताया था घाटी के बारे मे, कभी उसकी भी चर्चा करूंगा अपने इस पोस्ट के माध्यम से। इसमे हमारे इसी गाँव के भाई भरत चौहान का बड़ा योगदान रहा. अतः मित्रों मेरा य़ह मानना है कि इस कुंड को जिसे बाद मे हेमकुंड नाम दिया गया, उसकी खोज तो भूंडार गाँव के पालिसी लोगों द्वारा पहले से ही ढूंढ ली गई थी जो कि हमारे पहाड़ी शब्द ह्युकुंड का अपभ्रंश हेमकुंड बना। (विशेष – मेरी ये डेढ़ घंटे की स्व. नंदा सिंह चौहान जी के साथ रिकॉर्ड की हुयी वार्ता आज भी मेरे पास सुरक्षित है।)
लेखक भूवैज्ञानिक हैं