पहाड़ के गांव की सच्ची कहानी है फिल्म “मेरु गौं”
जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’
कहानी गांव की है जैसा कि फिल्म का शीर्षक है “मेरु गों” यानि मेरा गांव. ठेट पहाड़ी गांव के अंदाज़ में बनी फिल्म यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है. इस कहानी में शामिल हैं उत्तराखंड के वे सभी पहाड़ी गांव जो आज वीरान पड़ गए है, कितनी भी जोर अजमाईस कर लें कोई भी गांव में रुकने को तैयार नहीं. अलग राज्य की परिकल्पना व सपनों से दूर होते पहाड़ के गांव सिर्फ बहस तक सिमित हो गए है. फिल्म का मुख्य पात्र रामप्रसाद (राकेश गौड़) बड़े बैज्ञानिक संस्थान के जूनियर बैज्ञानिक के पद को छोड़ कर बड़े अरमान से गांव के विकास की सोच लिए गांव लौटता है. रामप्रसाद के दोनों भाई अच्छी नौकरियों में बाहर ही रहते है. गांव में बुजुर्ग माता – पिता की देखभाल के लिए कोई भी नहीं. माँ (सुशीला रावत) का बार – बार आग्रह रामप्रसाद को गांव ले आता है, लेकिन जैसे ही गांव पहुंचता है , माँ आखिरी साँस ले रही है और बेटे की गोद में स्वर्ग सिधार जाती है. गांव ख़ाली है, गांव का प्रधान (मदन डुकलान), सुरेशा पंडित (गंभीर जयाड़ा), खबरी काका, गेंदा दास, लाला जी, श्री चंद फौजी और गांव के कुछ और साथी. रामप्रसाद व उनकी पत्नी (सुमन गौड़), बेटा विकास (विकास उनियाल) उसकी बहु (गीता उनियाल) उनके दो बच्चे रुद्रांश उनियाल और श्रेया उनियाल, गांव की फैशनेबल भाभी, पत्रकार गिरीश पहाड़ी व तेज तर्रार लड़की चीनी.
उत्तराखंडी फिल्मों के सुपरिचित लेख़क निर्देशक अनुज जोशी की फिल्म “मेरु गौं” के उपरोक्त पात्रों ने फिल्म का एक ऐसा खाका खींचा है कि, गांव की कहानी के माध्यम से उत्तराखंड राज्य निर्माण के पूर्व से लेकर बर्तमान के हालातों पर पूरी बहस सामने आ जाती है. गांव का ढोली गेंदा दास कंधे में ढोल थामें इस बात के इन्तजार में है की कोई यजमान गांव लौटे तो उसकी दो रोटी का जुगाड़ हो सके, लेकिन जिस तरह लोग गांव छोड़ते जा रहे है. उसकी आस भी टूटती जा रही है. गांव के प्रधान व श्रीचंद फौजी दो विपरीत राजनितिक विचारधारा के है, जो गांवों के विकास न होने के लिए एक दुसरे को दोषी मानते है. अप्रत्यक्ष रूप से दोनों भाजपा और कांग्रेस है तो एक उत्तराखंड क्रांति दल, एक पात्र बिना पैंदी का लोटा है जो सबकी हाँ में हाँ मिलाता है. गांव का खबरी काका गांव के लोगों को बासी खबर सुनाकर अपना टाइम पास कर रहा है तो गांव की फैशनेबल भाभी पर सब लट्टू बने है. गांव की जागरूक युवती चीनी सबकी क्लास लेती है.
फिल्म “मेरु गौं” न सिर्फ गैरसैंण राजधानी के सवालों को उठाती है बल्कि तर्कों के साथ विधानसभा परिसीमन, शख्त भू-कानून, गढ़वाली बोली के सवाल, उत्तराखंड के मैदानी जनपदों को जबरदस्ती पर्वतीय राज्य में शामिल करना, उर्दू व पंजाबी अकादमी बनाने को तरजीह, रोजगार, पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को साधारण फ़िल्मी पात्रों के माध्यम से बड़ी सहजता से उठाती है, फिल्म का मुख्य पात्र रामप्रसाद एक सुलझे ब्यक्ति के नाते उजड़ते गांव को दुबारा पटरी पर लाने का बीड़ा उठाता है. लेकिन एक – एक कर गांव के पंडित सुरेशा का गाजियाबाद बसने का निर्णय, दुसरे का इलाज के बहाने देहरादून बच्चों के पास जाने, गांव की जागरूक बेटी चीनी की देहरादून शादी, गेंदा दास का गीत गाकर ढोल बजाकर आंसुओं से भीगा चेहरा उस पर रामप्रसाद के नाती के दिल में छेद होना व बहु बेटे व नाती – पोती को शहर भेजने का मजबूर कर देने वाले फैसले से टूटकर अपने प्रिय गांव घर में प्राण त्याग देना. दर्शकों के शरीर में झुरझुरी पैदा कर आँखों को बार – बार नम कर देता है.
अनुज जोशी की फिल्म “मेरु गौं” के निर्माता फिल्म के मुख्य पात्र रामप्रसाद की भूमिका निभाने वाले राकेश गौड़ है, जिन्होंने बहुत सहज व नैचुरल अभिनय से पूरी फिल्म को अपने कन्धों पर उठाये रखा. “मेरु गौं” फिल्म हमारी उत्तराखंड की प्यारी अभिनेत्री स्वर्गीय गीता उनियाल के सहज – सरल अभिनय व फिल्म में पोते की बाल सुलभ अभिनय करते उनके बेटे रुद्रांश उनियाल व पिता की भूमिका निभाने वाले विकास उनियाल पूरे परिवार को एक साथ देखने के लिए भी याद की जाएगी. जब – जब फिल्म के परदे पर गीता दिखती है तो दर्शकों का भावुक होना स्वाभाविक है. फिल्म के सभी कलाकारों ने स्वाभाविक अभिनय किया है. फिर भी गेंदा दास की बहुत ही सहज व पात्र से मेल खाता अभिनय दिल को छूता है. पोते की भूमिका में रुद्राक्ष के नैचुरल अभिनय याद रखा जायेगा. फिल्म “मेरु गौं” पूरी तरह से आंचलिक फिल्म है, जिसमें माटी की सोंधी महक है, थोड़ी से जो बात खली, उसमें गांव की महिला पात्रों की वास्तविक कमी व उनके विचार कहानी में शामिल नहीं हो पाए, फिल्मांकन सुन्दर है. गांव के एरिअल दृश्यों का बार – बार रिपीट होना भी खलता है, अलग – अलग कोनों व दृश्य बदल कर इसकी भरपाई आसानी से की जा सकती थी. इन बातों को अलग रख दिया जाए, तो कुल मिलाकर एक शानदार फिल्म है “मेरु गौं”. देश – प्रदेश के सिनेमाघरों में दिखाये जाने के बाद अब फिल्म पी.आर.फिल्म्स के यू – ट्यूब चैनल पर देखी जा सकती है.
फिल्म “मेरु गौं” के गीत ‘मेरु गौं मेरु पराण’ दिल को छूने वाला हैं जो कई बार फिल्म के अलग – अलग हिस्सों में समाये हुए है. गीत जीतेन्द्र पंवार ने लिखे है जिन्हें गाया है नरेन्द्र सिंह नेगी और जीतेंद्र पंवार ने. सिनेमेटोग्राफी राजेश रतूड़ी की है, फिल्म का संगीत संजय कुमोला, मेकअप शिवेंद्र रावत, कला निर्देशक अभिशेख मैंदोला, प्रोडक्शन मैनेजर विजय शर्मा व सहायक निर्देशक विभोर सकलानी और फिल्म के संपादक है मोहित कुमार. फिल्म के अन्य कलाकारों में रमेश ठंगरियाल, गोकुल पंवार,रमेश रावत, निशा भंडारी, अजय बिष्ट, गिरधारी रावत, खुशहाल रावत, डॉ. सतीश कलेश्वरी, अंकुश जोशी, राधिका और गायत्री. फिल्म “मेरु गौं” का निर्माण राकेश गौड़ व गंगोत्री फिल्म्स के बैंनर के तहत हुआ है.