चीन देश के अनुभव
भास्कर उप्रेती
पत्रकार जयप्रकाश पाण्डेय (जेपी) चीन में एक साल बिताकर लौटे हैं.
चीनी सरकार के कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत वो चीन के नौ से अधिक प्रांतों में गए और वहां के समाजों को देखा. आज उनके अनुभवों को लेकर आधारशिला, टीचर लर्निंग सेंटर (अजीम प्रेमजी फाउंडेशन) हल्द्वानी में ‘इनसे मिलिए’ कार्यक्रम किया गया. जेपी ने बताया कि चीन समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था के हिसाब से बहुत ही व्यवस्थित देश है. महिलाओं पर हिंसा अब वहां न के बराबर है और चीनी लोग भारतीयों को महिला हिंसा की बढ़ती घटनाओं की वजह से आश्चर्य से देखते हैं. चीन का यूरोप से घना व्यापारिक नाता है. स्वीडन से दूध से भरी ट्रेन चीन पहुँचती है और वापसी में ढेर सारा चीनी सामान वहां जाता है. बीजिंग और संघाई जैसे महानगरों में 2020 तक सम्पूर्ण गरीबी उन्मूलन की योजना चल रही है. साथ ही कई बड़े नगरों की आबादी कम करने की योजना पर काम हो रहा है. वहां पुलिस के हाथ में कोई हथियार नहीं होता और सेवानिवृत लोग चीजों को व्यवस्थित करने के काम में लगे रहते हैं.
निजी स्कूल न के बराबर हैं और सरकारी स्कूल हमारे निजी स्कूलों से भी अव्वल. स्कूलों में बच्चों को कला, संगीत, इतिहास विशेष रूप से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. बच्चों को कम उम्र से ही खेल के संसाधन और माहौल उपलब्ध कराया जाता है. चीन के सभी नागरिकों को हेल्थ बीमा दिया गया है और सरकारी अस्पताल हमारे निजी अपोलो हॉस्पिटल से भी अव्वल हैं. नगरीय क्षेत्रों में कहीं भी गंदगी नहीं है. गंदगी इसलिए भी नहीं है कि लोगों ने स्वच्छता को संस्कृति के तौर पर अपना लिया है. सड़कों की आधुनिक मशीनों से धुलाई होती है. नगर निगम और पालिकाएं काफी साधन संपन्न हैं. हर जगह पार्क और जिम नजर आते हैं. किसी चीनी का पेट निकला नहीं दिखता. खासकर मध्य वर्ग अपने देश की सरकार से बहुत खुश है. मध्य वर्ग के खुश होने का मतलब असंतोष की आवाजें बहुत कम हैं. भ्रष्टाचार के मामले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के जरिये संसद तक पहुँचते हैं और उन पर तेजी से कार्यवायी होती है.
यदि किसी उद्योग के लिए किसी गाँव का विस्थापन होता है तो पहले उसका सुव्यवस्थित पुनर्वास होता है. गाँव के प्रत्येक परिवार को प्रतिवर्ष एक निश्चित मुआवजा राशि दी जाती है और संबंधित उद्योग में रोजगार दिया जाता है. चीन सरकार ने नगरीय दवाब कम करने के लिए गांवों के विकास को ध्यान देना शुरू किया है और बड़ी संख्या में लोग गाँव वापस जा रहे हैं. खासकर टूरिज्म उद्योग तेजी से बढ़ रहा है. इससे निम्न वर्ग को भी अपनी आय बढ़ाने के अवसर पैदा हो रहे हैं. नागरिकों की औसत न्यूनतम आय भारत की तुलना में कहीं अधिक है. हमारे यहाँ की तरह नेतागिरी स्थायी धंधा नहीं है. कम्युनिस्ट पार्टी किसी कुशल और योग्य अधिकारी को मेयर या एम.पी. चुनती है. या उसका प्रदर्शन आगे ठीक नहीं पाया गया तो उसे वापस उसके विभाग में भेज दिया जाता है. कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े लोगों का नास्तिक होना अनिवार्य है. लेकिन धर्म को मानने की भी आज़ादी है. वहां बड़ी संख्या में बौद्ध मठ और मस्जिदें हैं. अंधविश्वास पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ है, लेकिन धार्मिक कट्टरता नहीं दिखाई देती.
पुरुषों की तरह महिलाएं भी निर्भय होकर काम कर सकती हैं. सार्वजनिक जगहों में महिलाओं को देर रात तक काम करते देखा जा सकता है. यौन हिंसा के मामले नहीं दिखाई देते. चीन में निजी मीडिया भी आ गया है, लेकिन उस पर सरकार का नियंत्रण भी है. सोशल साइट्स और वेब पोर्टल बहुत हैं. लेकिन, ये सब चीन के अपने सर्वर से ही चलते हैं. गूगल या माइक्रोसॉफ्ट पर निर्भरता नहीं है. नगरीय क्षेत्रों में कम्युनिस्ट पार्टी या क्रांति को लेकर कोई बात करता नहीं देखा जाता, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी चीनी क्रांति को सम्मान के साथ देखा जाता है. चीनी सामान की गुणवत्ता के बारे में जेपी ने बताया कि चीन में हर तरह का सामान उपलब्ध है. भारत में यहाँ के लोगों की क्रय शक्ति के हिसाब से ही वे बनाते हैं. चीनी तकनीक इस समय विश्व में सबसे ऊपर है. इसकी वजह ये है कि चीन ने आर एंड डी में बहुत खर्च किया है और यूरोप/अमरीका/ जापान में पहले ही औद्योगिक क्रांति होने से उनकी तकनीक पुरानी पड़ गयी है.
सुरंगे खोदना वहां कुछ ही घंटों का काम है. देश में शत प्रतिशत बिजली है. पानी की बहुतायत है. गोबी मरुस्थल वाले प्रांत के अपने अनुभव बताते हुए जेपी ने कहा कि वहां व्यापक स्तर पर पॉली हाउस लगाकर सब्जी उत्पादन किया जा रहा है. राजनीतिक रूप से विचारों पर काफी हद तक नियंत्रण है. गैर कम्युनिस्ट पार्टियों को भी कम्युनिस्ट पार्टी की संसद में आकर विचार रखने होते हैं. देश के अन्दर सरकार की नीतियों की आलोचना आसान काम नहीं. फिर भी वहां विरोध की आवाजें मौजूद हैं. कम्युनिस्ट पार्टी हाल के दिनों में पर्यावरण को हुए नुकसान को लेकर काफी सचेत हुई है. इस संबंध में कई ठोस पहलकदमियां ली जा रही हैं.
“इनसे मिलिए” कार्यक्रम में शिक्षक साथी मनीषा जोशी, मोहन सिंह नेगी, विनोद जीना, डॉ. सुरेश भट्ट, सुरेश उप्रेती, डॉ. दिनेश भट्ट, पी.जी. कॉलेज टनकपुर में संगीत विभाग के प्रो. पंकज उप्रेती, उत्तराखंड मुक्त विवि से प्रो. भूपेन सिंह, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र सिंह गड़िया, दिल्ली से ही पहुंचे रवीश रंजन और कुंदन सिंह चौहान, ‘युगवाणी’ के विशेष संवाददाता जगमोहन रौतेला, ‘आधारशिला’ साहित्यिक पत्रिका के संपादक डॉ. दिवाकर भट्ट, वरिष्ठ अधिवक्ता और आर.टी.आई. एक्टिविस्ट चंद्रशेखर करगेती, ‘अमन’ संस्था अल्मोड़ा के निदेशक रघु तिवारी, अंकुर, भास्कर आदि मौजूद रहे. इन दौरान जेपी से चीन के अनुभवों को लेकर लंबी वार्ता भी हुई.
जे.पी. की पत्रकारिता की शुरुआत उनके घर अल्मोड़ा से ‘संडे पोस्ट’ और ‘नैनीताल समाचार’ के साथ हुई थी. इसके बाद वे ‘संडे पोस्ट’ के दिल्ली कार्यालय चले गए. संडे पोस्ट के बाद उन्होंने ‘हिंदुस्तान’ दैनिक गाजियाबाद में काम किया और बाद में ‘हिंदुस्तान’ देहरादून आ गए. इसके बाद वे ‘अमर उजाला’ बरेली और हल्द्वानी संस्करणों से जुड़े रहे. चीन प्रवास से ठीक पहले वे हल्द्वानी के कुमाऊं संस्करण के डेस्क प्रभारी थे. चीन के उनके ये अनुभव बहुत कुछ वह हैं जो उन्हें चीनी सरकार के चश्मे से देखने को मिले. यह एकपक्षीय हो सकता है, मगर उससे हमें चीन को समझने में मदद तो मिल ही सकती है. खासकर भारतीय मीडिया के चश्मे से देख चुकने के बाद इस चश्मे से देखने में हमें थोड़ा अचंभा जरूर होगा.