October 31, 2025



आज सड़कों पर

दुष्यंत कुमार 


आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे ना देख,
घर अंधेरा देख तू, आकाश के तारे ना देख।
एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें ना देख।
अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,
यह हकीकत देख लेकिन खौफ के मारे ना देख
बे सहारे भी नही अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में पतवारें ना देख।
दिल को बहलाले, इजाजत है, मगर इतना ना उड़,
रोज सपने देख मगर इस कदर प्यारे ना देख।
ये धुंधलका है नजर का, तू महज मायूस है,
रोजनों को देख, दीवारों में दीवारें ना देख।
राख कितनी राख है चारों तरफ बिखरी हुई,
राख में चिनगारी ही देख, अंगारे ना देख।


सौजन्य से – रमेश पाण्डेय