ठौकोआ
कुलदीप बम्पाल
यह मैंने मिनी रंग्पा वर्ल्ड से फोटो खिंचवाकर मंगवाया। वह इसलिए माणा से गमशाली पहुंचने पर इसका इतिहास तक पहुँच सका। गमशाली में अभी भी इसका प्रयोग होता है। लास्पा बदली होते समय पाथा के साथ एक निशानी यह भी जाता है। डा राजेन्द्र प्रसाद सिंह इसे ठौकोआ अर्थात ठौका जाने वाला बताया। मतलब जिस को ठौककर पूरी या थ्यकुला पर डिजाइन निकाल आता है। ठौकोआ ही आगे चलकर डिजाइनप्रदत्त पूरी प्रसाद ही ठैकुआ या हमारी थ्यकुला जैसे पूजा अर्चना के प्रसाद के नाम बने है ठौकोआ या ठैकुआ, ठैकुला या थ्यकुला में परिवर्तित होना एक अंचलीय भाषा प्रवृत्ति है। इस ठैकुआ में अष्टांग मार्ग प्रदर्शक आठ आरे वाला बौद्ध धम्म चक्र है धम्म चक्र और पीपल पत्ते बौद्ध संस्कृति के मूल पहिचान है। मेरे अधययन के अनुसार लस्पा ही लोसर है। जाति का टनाटन घण्टा जबरन पहनने वाले रंग्पा यह माने या न माने। यह अंतिम सत्य है कि उनका जाति का घंटा कहीं बजने वाला नहीं है। यदि बजेगा तो केवल संस्कृति, कला और ज्ञान का।
लेखक बौद्ध अध्येता हैं