प्रतापनगर की कहानी
शैलेन्द्र सिंह नेगी
महाराजा प्रताप शाह टिहरी रियासत के 57वे महाराजा थे। उनका कार्यकाल सन 1871 से 1886 तक था। कहते हैं कि एक बार महाराजा प्रताप शाह ग्रीष्मकाल में सपरिवार लाव लश्कर के साथ मसूरी घूमने गए थे I उनके ठाठ वाट एवं लाव लश्कर को देखकर अंग्रेज कैप्टन द्वारा उनके साथ अभद्रता एवं दुर्व्यवहार किया गया। महाराजा ने क्रोधित होकर उसे एक थप्पड़ मारा जिससे अंग्रेज कैप्टन जमीन पर गिर गया, और किसी पत्थर या नुकली जगह में चोट लगने से उसकी मृत्यु हो गई थी। इस घटना के बाद अंग्रेजों ने महाराज के मसूरी आगमन पर रोक लगा दी थी।
इसके बाद महाराजा प्रताप शाह ने प्रण लिया कि वह मसूरी से सुंदर शहर अपनी रियासत के अंतर्गत बसाएंगे। उन्होंने इस हेतु मसूरी से अधिक ऊंचाई एवं ठंडी जलवायु होने के कारण डांगधार नामक स्थान को चुना, जिसका नाम बाद में प्रतापनगर पड़ा। यह स्थान देवदार ,बांज और कैल आदि के घने जंगलों से घिरा हुआ है। यहां पर महाराजा प्रताप शाह ने वर्ष 1877 में अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई, जो तत्कालीन राजधानी टिहरी से पैदल मार्ग पर स्थित थी। राजा ने यहां पर रानी महल एवं राज दरबार (चीफ कोर्ट) के साथ ही टिहरी से प्रताप नगर का पैदल रास्ता तथा टिहरी से प्रताप नगर, लंबगांव मोटर मार्ग आदि का निर्माण भी कराया गया।
महाराजा प्रताप शाह द्वारा अपने शासनकाल में पटवारी पद , पुलिस व्यवस्था, न्यायालय व्यवस्था, अंग्रेजी शिक्षा की शुरुआत, कारदार राजस्व वसूली पद की शुरुआत, टिहरी में पलटन व्यवस्था, भूमि रजिस्ट्री की शुरुआत, भूमि की पैमाइश के लिए जियूला पैमाइश की शुरुआत, टिहरी को 22 पट्टी में विभक्त करना, प्रथम अस्पताल की स्थापना, प्रथम दवाखाना की स्थापना आदि महत्वपूर्ण कार्य किए गए। इतिहास गवाह है कि कभी इस ऐतिहासिक राजमहल एवं राज दरबार में कई उत्सव एवं पर्व मनाए गए होंगे। विजय और पराक्रम की गाथाएं गायी और सुनीं गई होगी। कई सुख और दुख के क्षण भी आए होंगे। कई ऐतिहासिक निर्णय भी इस कोर्ट में लिए गए होंगे। आम जनता के लिए इस राजमहल और राज दरबार में प्रवेश करना और इसका दर्शन करना भी एक स्वप्न रहा होगा।
सन 1896 में महाराजा प्रताप शाह के पुत्र एवं उत्तराधिकारी महाराज कीर्ति शाह ने कीर्ति नगर की स्थापना की। तभी से प्रताप नगर स्थित इस राजमहल एवं राज दरबार मे राज्य की गतिविधियां कम होने लगी थी। 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत संघ में विलय होने के पश्चात राजशाही हमेशा के लिए समाप्त हो गई। वर्ष 1986 में जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रत्येक जनपद में एक जवाहर नवोदय विद्यालय की स्थापना की गई, तो जनपद टिहरी गढ़वाल का जवाहर नवोदय विद्यालय इसी राजमहल में संचालित किया गया। बाद में जवाहर नवोदय विद्यालय का भवन एवं छात्रावास पौखाल, जो घनसाली – जाखधार – कीर्ति नगर मार्ग पर स्थित है, में शिफ्ट किया गया।
वर्ष 1999 में जब एशिया का सबसे बड़ा बांध टिहरी बनकर तैयार होने लगा तथा पुरानी टिहरी जलमग्न होने की तैयारी चल रही थी। तब प्रताप नगर तहसील एवं विकासखंड स्तरीय सभी कार्यालय पुरानी टिहरी में ही संचालित हो रहे थे। ऐसी दशा में शासन एवं प्रशासन के निर्णय अनुसार, पुरानी टिहरी में स्थित प्रतापनगर तहसील को इसी राजमहल में शिफ्ट किया गया। इसके साथ ही विकासखंड कार्यालय प्रताप नगर तथा अन्य तहसील एवं विकासखंड स्तरीय ऑफिसों को इसी राजमहल के 100 से अधिक कमरों में शिफ्ट किया गया था।
बाद के वर्षों में समय-समय पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और स्थानीय निकाय निर्वाचन में इस राज महल एवं राज दरबार का उपयोग किया जाता रहा है। यहां से स्ट्रांग रूम बनाने के साथ ही निर्वाचन सामग्री वितरण, मतदान पार्टियों को रवाना तथा मतगणना का कार्य किया जाता था। यह भी उल्लेखनीय है कि राजमहल एवं निकट की भूमि, राजस्व अभिलेखों में लोक निर्माण विभाग के नाम दर्ज है, जबकि राज दरबार एवं निकट की भूमि अभी भी राज परिवार के नाम दर्ज है। जिला पर्यटन विकास अधिकारी टिहरी गढ़वाल के अनुसार, राजमहल के पुनर्निर्माण एवं विकास हेतु पर्यटन विभाग के स्तर पर कार्रवाई गतिमान है। भविष्य में शीघ्र ही इस पर कार्य होने की संभावना है। प्रताप नगर से पैराग्लाइडिंग आदि गतिविधियों के लिए भी सरकार के स्तर से कार्यवाही गतिमान है। भूमि का चयन कर लिया गया है तथा शीघ्र ही इस पर भी कार्यवाही होनी है।
वर्तमान में प्रताप नगर में तहसील, विकासखंड, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, राजकीय इंटर कॉलेज, कस्तूरबा गांधी आवासीय छात्रावास , लोक निर्माण विभाग गेस्ट हाउस, वन विभाग गेस्ट हाउस, भारतीय स्टेट बैंक, मार्केट तथा विभिन्न विभागों की आवासीय कालोनी स्थित है। प्रताप नगर में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं। यहां से एशिया के सबसे बड़े बांध टिहरी का एक बहुत बड़ा हिस्सा दिखाई देता है। यहां से चारों तरफ 360 डिग्री मे टिहरी जनपद का लगभग 80% भू भाग तथा जनपद उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, देहरादून, पौड़ी गढ़वाल एवं हिमाचल प्रदेश का कुछ भाग दिखाई देता है।
प्रताप नगर पैराग्लाइडिंग एवं अन्य साहसिक गतिविधियों के लिए बहुत उपयुक्त स्थान है। होमस्टे तथा होटल आदि व्यवसाय के लिए भी यह बहुत ही लाभप्रद स्थल बन सकता है। ठंडी जलवायु के फलों के साथ ही आलू तथा दलहन के उत्पादन के लिए भी यह एक उपयोगी स्थल हो सकता है। प्रताप नगर से टिहरी झील, नई टिहरी, चंबा, चंद्रबदनी, सुरकंडा, कुंजापुरी, ओणेश्वर महादेव नागराजा सेम मुखेम, खैट पर्वत, नचिकेता ताल, बूढ़ा केदार, महासर ताल, धनोल्टी , काणाताल , खतलिंग ग्लेशियर, सहस्त्रताल,पवाली काठा, चिरवटिया आदि निकटवर्ती पर्यटक स्थल है। लंबगांव से चार धाम यात्रा का मार्ग भी गुजरता है।
टिहरी रियासत की ग्रीष्मकालीन राजधानी प्रतापनगर के ऐतिहासिक राजमहल एवं राज दरबार की वर्तमान स्थिति बहुत दयनीय एवं बदहाल है। यह खंडहर में तब्दील हो चुका है। फिर भी इसका ढांचा एवं कुछ कक्ष अभी भी अच्छी स्थिति में है तथा हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वर्तमान में बहुत से स्थानीय लोग, पर्यटक ,सोशल मीडिया फैंस, यूट्यूबर एवं ब्लॉगर यहां पर आकर फोटोशूट एवं वीडियो रील की शूटिंग करते हैं।
शैलेंद्र सिंह नेगी, पीसीएस, एसडीएम प्रताप नगर एवं घनसाली