November 22, 2024



प्रेमा चाची का मिशन

Spread the love

पंकज सिंह महर 


कहते हैं, अपना घर दूर से ही देखा और समझा जाता है,


यह सच भी है कि जहां हम रहते हैं, उसका मोल हमें उतना नहीं लगता, लेकिन उससे दूर हो जाओ तो पता चलता है कि हम क्या मिस कर रहे हैं और क्या हमारे पास था, जो अब हमें चाह कर भी नहीं मिल पाता। घर गांव से दूर सबसे बडी चीज हम जो खोते हैं, वह है अपनापन, स्नेह। १९९४ से अपने गांव देवलथल से दूर हूं, जब भी मैने कुछ गलत किया, यहां किसी ने नहीं टोका, लेकिन देवलथल में किसी भी दुकान से हम सादा पान मसाला भी नहीं खरीद पाते थे, क्योंकि दुकानदार की डांट पड़ती और घर में शिकायत अलग से होती। खैर, जब मैने लखनऊ और देहरादून की चकाचौंध के साथ यहां की नागरिक सुविधायें देखी, तो मैं इनका आनन्द लेने के बजाय यही सोचता कि क्या मेरे गांव घर के लोगों को इसकी आधी भी सुविधायें मिल पायेंगी, यहां का रोज होता विकास अब मुझे चिढाने लगा है, क्यों इसका दशांश भी मेरे गांव में नहीं होता। जितना विकास मेरे गांव के लोग बाजार से खरीदकर ला सकते थे, ले आये, लेकिन अवस्थापना सुविधा के लिये तो हम सरकारों पर ही निर्भर हैं, लेकिन उनके लिये मेरे लोग सिर्फ वोट हैं, इन्सान नहीं।


इस फोटो में हमारी प्रेमा चाची है, जिसको मैने जब से देखा, उसमें एक जागरुकता और समाज सेवा का भाव ही देखा। हाईस्कूल में हम लोग ट्यूशन पढने जाते थे, बाजार में इनकी दुकान में टंगे यामू के पैकेट हमें बहुत लालायित करते, लेकिन चाची दुकान में होती तो हिम्मत नहीं हुई, एक दिन जुगाड़ कर हमने एक व्यक्ति से यामू मंगवा ही लिया, गलती यह हो गई कि वह यामू खाता ही नहीं था, चाची ने उससे जोर से पूछा तो उसने उगल दिया, सो चाची की डांट के साथ, शाम को पापा की मार ने फिर कभी यामू खाने ही नहीं दिया। प्रेमा चाची अकेली समाज के लिये लगी रहती है, कभी शराब के खिलाफ, कभी लोगों में योग के प्रति जागरुकता फैलाती है और आजकल वह स्वच्छ देवलथल के मिशन पर लगी है, अकेली चल पड़ती है, झाडू और कुदाल लेकर, नालियों से लेकर स्कूल, फील्ड, सड़्क, सार्वजनिक शौचालय को साफ करने। दो-तीन महीने में इनकी मुहिम रंग लाई, लोग चेत गये और सफाई रखने लगे, आज मेरा देवलथल साफ सुथरा रहने लगा है, लोग अपने घर के आगे सफाई रखने लगे हैं, पूरा बाजार साफ सुथरा दिखता है, लोग भी जागरुक हो गये हैं इसके प्रति। चाची ने स्कूली बच्चों से लेकर बाजार में रोजमर्रा के काम के लिये आने वाले लोगों को भी जागरुक किया, अब इसका असर ग्रामीण क्षेत्र में भी दिखने लगा है। वैसे चाची के दोनों बेटे पी०सी०एस० आफिसर हैं, वह भी चाहती तो देहरादून के किसी बरामदे में धूप भी सेक सकती थी, लेकिन वह देखिये शौचालय साफ कर रही है। मेरे लिये वह उत्तराखण्ड की सफाई की ब्रांड अम्बेसडर है, सलाम चाची।