February 23, 2025



यह जो वक्त है

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अरुण कुकसाल


‘यह जो वक्त है’ वक्त पर लिखी इबारत. 


साहित्य जगत की प्रतिष्ठित पञिका ‘वर्तमान साहित्य’ और ‘कारवां’ के संपादक रहे, कपिलेश भोज अध्यापक, राजनैतिक चिंतक, सामाजिक कार्यकर्ता और इन सबसे अलग कवि एवं कथाकार हैं। समाज में व्याप्त असमानता, गरीबी, शोषण और अंधविश्वास के खिलाफ हर समय मुखर एवं प्रखर कपिलेश अच्छे को अच्छा तो बुरे को बुरा कहने में कोई देरी और संकोच नहीं करते हैं। जीवन में साफ और स्पष्ट नजरिया रखने वाले कपिलेश सामान्य बातचीत में भी हमेशा संयमित एवं संजीदा रहते हैं।


साहित्य जगत में चर्चित रहा ‘यह जो वक्त है’ कपिलेश भोज का प्रथम प्रकाशित कविता संग्रह है। इस कविता संग्रह के 4 खण्डों में समय-समय पर प्रकाशित उनकी 54 कविताएं हैं। पहले खण्ड ‘चीखती हैं नदियां’ में कुल जमा 16 कविताएं हैं। इनमें ज्यादातर कविताएं प्रकृति के विविध मिजाजों की ओर मुखातिब हैं। पहाड़, चिडिया, पेड-पौधे, हरियाली, पतझड़, नदी, शरद आदि के माध्यम से ये कविताएं अाम आदमी की जिंदगी में ताक-झांक करती हैं। दूसरी भाग में ‘कोई किसी को नहीं पुकारता यों ही’ में 9 कविताएं शामिल हैं। मानवीय मन की रंग-बिरंगी उडान को लिए इस हिस्से की कविताएं अपनी मधुर लय-ताल के साथ गीतात्मक हो गयी हैं। तीसरे खण्ड में ‘रोशनी को पाने से पहले’ में 15 कविताएं मौजूद हैं। यहां कपिलेश की कविताएं सामाजिक आडम्बरों पर प्रहार करती हुई आम आदमी के जीवन संघर्षों को कई आयामों में उद्घाटित करती हैं। कविता संग्रह के चौथे हिस्से में ‘किताबें लिए चल रहे हैं नौजवान’ की 14 कविताएं कवि के भविष्य के प्रति ऊर्जावान दृढ़ संकल्पों को लिए हुए हैं।

सामाजिक ताने-बाने पर सीधे एवं सलीके से लिखी कविताओं का यह संग्रह मानसिक विलास एवं विलाप से दूर सादगी की विशिष्ट महक लिए हुए है, जो कि पाठकीय आनन्द को हर पन्ने पर बनाये रखता है। वास्तव में कपिलेश भोज का कविता संग्रह ‘यह जो वक्त है’ की कविताएं समाज के नये दौर की ओर बढ़ते कदमों की आहटें हैं। यह कविता संग्रह पाठकों को एक खुशनुमा मुकाम की ओर से जाता है। उत्तराखंड हिमालय की सोमेश्वर घाटी के बेबाक कपिलेश भोज ने देर से ही सही, एक बेहतरीन सौगात हिन्दी साहित्य जगत को प्रदान की है। कपिलेश भाई को बधाई और शुभकामनाएं।


arunkuksal@gmail.com