November 22, 2024



पीतल के गिलास में चाय

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सूरबीर रावत 


परम्परा को जीवित रखे हैं नेगी जी। देहरादून शहर से उत्तर-पूरब में मात्र दस किलोमीटर दूरी पर स्थित है मालदेवता।


सौंग व बाल्दी नदी की उपत्यका में बसा मालदेवता बेहद खूबसूरत गांव है। पहाड़ियों के मध्य घिरे हुए मालदेवता से ठीक एक किलोमीटर पहले समतल व रमणीक गांव है केशरवाला। देहरादून-कद्दूखाल मार्ग पर बसे इस गांव में प्रवेश करते ही चुंगी के पास पिल्खन पेड़ के ठीक सामने सड़क की दायीं ओर एक छोटे से होटल पर नजर पड़ती है तो ध्यान हटता ही नहीं है। आप पूछेंगे कि ऐसा क्या है तो जवाब है कि उस होटल में एक शान्तचित्त व्यक्ति बैठे हुए मिलते हैं श्री बलवीर सिंह नेगी जी। लकड़ी के चूल्हे पर बनी और पीतल के गिलास में चाय पिये हुये तो जमाना हो गया है परन्तु नेगी जी का इस होटल में दोनो बातें हैं; लकड़ी के चूल्हे पर बनी और चमचमाते हुये पीतल के गिलास पर दी हुयी गरमा-गरम चाय। मन सुदूर अतीत में चला जाता है।


मूलतः कृषक बलवीर सिंह नेगी जी बताते हैं कि ‘यह होटल लगभग पैंतालीस साल पुराना है जो पहले उनके पिताजी स्व0 करण सिंह जी चलाते थे’ और अब सत्तावन वर्षीय बलवीर सिंह नेगी जी। कहते हैं ‘जब होटल शुरू किया गया तो तब गिनती के लोग ही इस सड़क पर चलते थे और अब तो सैकड़ों गाड़ियां रोज गुजरती है सड़क से। शुरू में पीतल के पच्चीस गिलास थे जो अब मात्र दस गिलास रह गये। नये गिलासों के लिये वे जगाधरी और यमुनानगर तक हो आये परन्तु अब ऐसे गिलास नहीं मिल रहे हैं। शायद मुरादाबाद में मिल जाये तो मिले।’ पीतल के गिलास में कमी यह है कि ये बिम या साबुन से साफ नहीं होते हैं। ये राख से ही चमकते हैं।

गढ़वाल के छोटे-छोटे कस्बों में रह रहे लोग जहाँ अपनी मातृभाषा से किनारा कर रहे हैं वहीं देहरादून से सटे टिहरी जिले के आउटस्कर्ट में बुडोगल से गंगोल पण्डितबाड़ी तक बसे इन गांवों के वासिन्दे ठेठ टीर्याळी भाषा में बतियाते हैं तो मन प्रफुल्लित हो उठता है। बताते हैं कि गोरख्याणी के बाद जब टिहरी राजधानी बनाकर गढ़वाल के राजा रहने लगे तो उन्होंने अपने विश्वसनीय लोगों को राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी देकर इन जगहों पर बसाया जो कि आज अनेक गांव के रूप में है। 


सन् 2002 में मैंने इस होटल में पहली बार चाय पी थी, फिर अपनी पत्नी के साथ, कुछ माह पहले साहित्यिक मित्र श्री दिनेश कण्डवाल जी, डॉ0 नन्दकिशोर हटवाल, डॉ0 सत्यानन्द बडोनी व श्री प्रवीण भट्ट जी के साथ और इस बार जनकवि व पर्यावरणविद चन्दन सिंह नेगी जी के साथ चाय की चुस्कियां लेने का सौभाग्य मिला। ‘पधारो म्हारो देश’ की तर्ज पर मैं यही कहूंगा कि आप भी जब इस मार्ग से गुजरें तो चूल्हे पर बनी और पीतल के गिलास में दी गयी चाय की रस्याण अवश्य लें।