November 21, 2024



दक्षिण भारत की यात्रा – 3

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विजय भट्ट


रोज़ शाम को तय कर लिया जाता कि कल कहाँ जाना है। वायनाड घूमने के हमारे इस कार्यक्रम को तय करने का उत्तरदायित्व भाई अंसर अली पर था। वही हमारे मेज़बान थे और वैचारिक दोस्त भी। वैचारिक दोस्त होने के काफ़ी फ़ायदे होते हैं। तमाम क़िस्म की औपचारिकताओं से दूर उन्हें आपकी हर पसंद नापसंद का बख़ूबी से मालूम होता है। अंसर भाई ने यहाँ पईय्यमपल्ली में रहने वाले दोस्तों से मुलाक़ात कराई जिनमें बेबी, कुट्टी, जान सर प्रमुख थे। एक दिन बेबी अपनी गाड़ी लेकर हमारे पास आ गये। उनके साथ हम चल पड़े टोलपट्टी वन्यविहार देखने को। दरअसल टोलपट्टी वन विहार कर्नाटक केरल का सीमांत जंगल है जहां से कर्नाटक के कोडगू ज़िले का छोटा गाँव आता है जिसका नाम कुट्टा है। मिड वे डाइवर्जन पर एक ढाबे नुमा दुकान पर हमारी गाड़ी रुक गई। अंसर भाई कहते हैं कि यह ढाबा अपने उनियप्पम के उम्दा स्वाद के लिए जाना जाता है। लोग यहाँ दूर दूर से उनियप्पम खाने आते हैं। हमने भी खाया।

बिना दूध के काली चाय पी। अक्सर लोग ब्लेक टी या काफ़ी पीते हैं। खाने पर इसका स्वाद हमारे लिए एक गुलगुले की तरह था, पर था खाने में स्वादिष्ट। हम आगे कोट्टा की ओर बढ़ चले। रास्ते में घना जंगल है और हरे भरे काफ़ी के बगीचे। देखने में अच्छे लग रहे थे। कर्नाटक की सीमा के भीतर प्रवेश किया। हम कुट्टा तक गये। बेबी सर ने वहाँ से गाढ़ी वापस मोड़ ली। जाते समय तो कोई जानवर नजर न आया परंतु वापसी में सड़क के किनारे हिरनों का एक समूह दिखाई दे गया। गाड़ी रोककर हमने कुछ तस्वीरें ली और आगे चल दिए। हाथी न मिला जो यहाँ बहुतायत में पाये जाते हैं। फिर अगले दिन रात में सफ़ारी करने की ठान ली। 


बेबी सर ने अपनी गाड़ी से हमें कूडलकडवू छोड़ दिया। यहाँ मनंतदवाडी  और परम्बरा नदी का संगम स्थल है। असंर भाई हमें यह संगम स्थल दिखाना चाहते थे। दोनों नदियाँ मिल कर कंबनी नदी बनती हैं जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हुई कर्नाटक से आने वाली दक्षिण भारत की मुख्य नदी कावेरी नदी में मिल जाती हैं। केरल की चालीस नदियों में से दो नदी ऐसी हैं जो पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, बाक़ी नदियाँ पश्चिमी दिशा में बहती हुई अरब सागर में मिलती हैं। अंसर भाई हमें दिखाने के लिए नदी में मगरमच्छ तलाश रहे थे। आख़िर उन्हें मगरमच्छ महाशय पाषाण की एक शिला पर आराम फ़रमाते हुए दिखाई दे गये। पानी में रहकर मगर से बैर कैसे, रुक कर हमने भी मगर के दर्शन किए। मगरमच्छ महाशय के आराम में ख़लल दिये बिना दूर से ही हमने उनकी तस्वीर अपने केमरे में उतार ली। दोपहर को वहाँ से केरल सरकार की सार्वजनिक बस सेवा का लाभ उठाते हुए अपने घर मतलब अंसर भाई के घर आ गये। 


शाम का वक़्त था। चाय आदि पीकर बैठे ही थे कि कुट्टी साहब अपनी जीप लेकर हाज़िर हो गये। कुट्टी साहब हंसमुख हरफ़नमौला क़िस्म के सज्जन आदमी हैं और बेबी सर के समधी भी। उन्होंने रात में हमें जंगल में सफ़ारी करवाई। पक्के रास्ते से लेकर घने जंगल वाले कच्चे उबड खाबड़ रास्ते पर जीप ले गए कि कहीं जंगली गजराज महाशय के दर्शन हो जांय, पर हाय रे हमारी क़िस्मत कि जंगली सुअर से अधिक कुछ भी तो नहीं दिखाई दिया। रात के समय हमारी जंगल की रोमांचक यात्रा भी संपन्न हो गई।

 यात्रा अभी जारी है…