जौनसार बावर की वास्तुकला
भारत चौहान
यह मकान डागुरा निवासी हमारे कुल पुरोहित जी का है। जौनसार बावर क्षेत्र को भले ही 1967 में जनजाति घोषित किया हो परंतु यहां की वास्तुकला, मकान बनाने की शैली अद्भुत थी। यह मकान जौनसार बावर के खत शैली के डागुरा गांव के स्वर्गीय टीकाराम जोशी जी का है यह हमारे समानित कुल पुरोहित है। कल मुझे दूसरी बार इस गांव में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मकान पर लगे हुए एक पत्थर में लिखा है कि यह मकान 1935 में बनकर तैयार हुआ। मकान को बनाने में एक पीढी ने अपना पूरा योगदान दिया। ये मकान इतना मजबूत बना है कि पत्थर को काटकर बीच-बीच में लकड़ी जोड़कर लगाई गई हैं जिसे स्थानीय बोली में चै़व कहते हैं।
लोगों का कहना है कि जिस मिस्त्री ने इसको बनाया वे कहते थे कि यदि पूरा गांव आपदा में बह जाए तो भी यह मकान खण्डित नहीं होगा बल्कि पूरा के पूरा एक डिब्बे के रूप में बह जाएगा। अर्थात मकान चारो तरफ मजबूती से जुड़ा है, मकान जितना मिट्टी के ऊपर है इतना ही मिट्टी के नीचे है जो बहुत मजबूत चट्टान के ऊपर बना है।
हम बचपन में किताबों में पढ़ा करते थे कि एक गरीब ब्राह्मण था और वह एक कुटिया में रहता था! परंतु इस इमारत को देखकर मुझे वह कहानी झूठी लगने लगी और अपने ऊपर गर्व हुआ कि हमारे कुल पुरोहित प्राचीन समय से ही बुद्धिमान और संपन्न थे। इस गांव में सभी के मकान लगभग इसी मकान के तरह बने हुए हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं