अजब गजब राजनीतिक प्राथमिकता
वीरेन्द्र कुमार पैन्यूली
इतनी राजनैतिक प्राथमिकता पहले कभी नहीं थी कि राज्य हित अहित समझ में ही न आये। एक मंत्री सड़क पर दबंगई करते हैं छाती ठोक कर उन भर्तियों को एक दूसरे पद पर रहते हुये करने की बात कहते हैं जो पूरी तरह से अनैतिमक अक्षम्य थी व जिसे शायद अब हाई कोर्ट अवैधानिक भी कह दे परन्तु केवल राजनैतिक कारणों से उन्हे बनाया रखा गया है। बार बार एक हत्याकाण्ड के संदर्भ में वी आई पी का नाम जानने की मांग उठ रही है, किन्तु केवल राजनैतिक कारणों से चुप्पी बनी हुई है।जिस रिसोर्ट के संदर्भ में ये बात की जा रही है उससे जुड़े परिवार में बाप बेटे को अलग अलग समय में दायित्वधारी बनाया गया था।
जोशीमठ के लोग साल भर से अपने शहर को अपने घरों अपने प्रतिष्ठानों को तिल तिल कर धंसते टूटते हुये देख रहें हैं। बार बार वैज्ञानिक रिपोर्टों को सार्वजनिक करने की मांग कर रहें हैं, पर हालत यह है कि जो उपग्रहीय तस्वीरों से भूधंसाव की जानकारी मिल रही थी उस पर भी गैग लगा दिया गया। पर भूधंसाव तो हो ही रहा है न। लोगों के घरों पर जब लाल निशान लगा दिये थे तो क्या प्रजातांत्रिक सरकार में ये जिम्मेदारी नहीं बनती थी, कि उनके घरों को आपदा रहित बनाने में मदद करते। उनको डर के साये में न जीने देते। सरकारी खर्च करके ठीक भी करा देते तो कितना व्यय हो जाता।
जब अपनी विधायकी पेंशन भत्तों को व हर बार नये लैप टैपों पर खर्चा हो रहा है तो कुछ जनता पर भी खर्चा हो जाता तो कितना भार बढ़ जाता। अभी ही तो गोदी लाउडस्पीकरें से नौ सौ करोड़ रूपयें से ऊपर के कर्जे को सौगात बता दिया गया, तो हाथों हाथ जोशीमठ के लिये भी सौगात ले कर आ जाते। परन्तु जोशामठ बचाने के लिये संघर्ष करने वालों को तो विजेता कैसे देखा जा सकता है। उनको तो माओवादी तक करार कर दिया गया है। आज तो जरूरत है कि सरकार खुद भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के संदर्भित अनुसंधान केन्द्र से जानकारी ले कि जोशीमठ में भूधंसाव की दर क्या है व उसके अनुरूप वांछित सुरक्षा कदम उठाये।
अभी चमोली नमामि गंगे एस टी पी का दुर्भाग्यपूर्ण किन्तु टाला जा सकने वाला हादसा हुआ। जिसमें कई अमूल्य जानें गईं। सारी बातें बिजली घातों व प्रणाली तक सीमित रखी गई किन्तु कहीं नमामी गंगा पूरी प्रणाली प्रशासन व उससे जुड़े मंत्री को लेकर नहीं कही गई। जबकि तथ्य यह है कि नदियों के प्रदूषण रोकने में एस टी पी ज का महत्वपूर्ण हाथ है। मैं एक नहीं अनेक ऐसे उदाहरण गिना सकता हूं जब सुप्रीम कोर्ट व एन जी टी व्दारा एस टी पीज की चिंताजनक स्थितियों पर पूरे देश में ही चिंता व्यक्त की गई है। चिंता सबसे ज्यादा इस पर भी रहती है कि एस टी पीज में पर्याप्त बिजली आपूर्ति नहीं होती है जिससे जल मल सीधे नदियों में जाता है। जरूरत थी कि नमामि गंगे को इस संदर्भ में भी कठघरे में खड़ा किया जाता व आगे भी किया ताये कि जानलेवा त्रुटिपूर्ण बिजली कनेक्शन के अलावा बाधित बिजली में चमोली जैसे अन्य एस टी पी कैसे काम कर रहें हैं।
परन्तु राजनैतिक कारणों से नमामी गंगे से जुड़े गैर सरकारी लोगों से कुछ नहीं पहुचा जायेगा। नमामि गंगे को आघात क्या उस हरिव्दार में नहीं हुई जहां हेलीकोप्टरों से फूलों की बरसात हुई व एक वैज्ञानिक के चिंता के अनुसार एक हजार टन के लगभग मल गंगा जी में गया। भाजपा के नेता व आन्दोलनकारी रविंद्र जुगराण भी प्रशासन से इसलिये क्षुब्ध थे, कि स्थानीय जन को तो तो दस बजे के बाद लाउड स्पीकर शादी ब्याह में भी बंद करने को कहा जाता है, व कांवड़िये रात रात भर डी जे बजाकर शोर धमाल करते रहते हैं।
राजनैतिक कारणों से बद्रीनाथ महायोजना में बद्रीनाथ पवित्र नगरी में जो मल प्रवाह हो रहा है पुल दुर्घटना घटी उस पर भी ज्यादा कुछ शायद ही कहा जाये। गौरीकुंड तीन अगस्त 2023 रात्रि के हादसे व रेलवे सुरंगों से टिहरी जिले में भूधंसाव व दरारों पर भी मूल कारणों में न जाया जायेगा। यदि सुरंगों से होने वाली मूल कारणों की समझ होती तो कई किलोमीटर सुरंग उत्तरकाशी में बनाने में लगभग तीस किलोमीटर दो तीन जिलों से गुजरने वाली हिमालयी फाल्ट जोन को चीरने वाली सुरंग की सौगात का अनुरोध नहीं किया जाता।
देहरादून स्मार्ट सिटी क्या बयान कर रही हे व उस पर चुप्पी क्यों है। शायद राजनैतिक कारण भी हों महानगर व लोक सभा चुनावों के राज नैतिक कारण भी इसके पीछे हों। आखिर अलग राज्य इसीलिये तो मांगा गया था कि उत्तराखंड की योजना उत्तराखंड के धुरपुले पर बैठ कर बनाई जाये। एयर कंडीशंनड कमरों में न बनाई जाये । परन्तु अब तो राजनैतिक कारणों से सौभाग्य यह मिल गया है कि सात समुदर पार वाले उत्तराखंड की योजना बना रहें हैं । जो योजना नहीं बना रहें हैं उन विदेशियों से सीखने के लिये राज्य के नेता मंत्री जहाजी यात्रा कर रहें हैं।
राजनीति क्या न कराये। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का चर्चा होती है किन्तु तत्कालिन केन्द्रीय शिक्षामंत्री कहीं चर्चा में नहीं रहते हैं। उत्तराखंड में कई कई लेन की सड़कों की बात होती है उनके जोखिमों को लेकर जनता के डर सामने आते हैं, किन्तु अनुभवी ज्ञाता व कई लेन की सड़कों के पूरे देश भर में केन्द्रीय मंत्री रहते हुये ईमानदार प्रणेता सेवानिवृत मेजर जनरल पूर्व मुख्य मंत्री खंडूड़ी के अनुभवों का लाभ नहीं लिया जाता है। अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है।
लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरण वैज्ञानिक हैं