November 24, 2024



हिमाचल और लद्दाख की रोमांचक यात्रा – 4

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सत्या रावत


और हम 13500 फीट पर ऐसी जगह पर फंस गए जहां से न आगे जा सकते थे न पीछे लौट सकते थे…..पिछले 3 एपिसोड्स में आपने पढ़ा कि हम लोग ‘सच पास’ को घूमने के लिए निकले लेकिन प्लान बदलकर झान्स्कर घाटी को देखते हुए लेह पहुंच गए। मतलब ‘जाना था जापान, पहुंच गए चीन’। सोच कर कुछ और आए थे और पहुंच कहीं और गए थे। अगली सुबह उठकर हम लोगों ने सबसे पहले यहां के प्रसिद्ध शांति स्तूप के दर्शन किए। यहां से दूर तक का नजारा बहुत अच्छा दिखता है लेह  के लगभग 90% भाग को आप यहां से स्पष्ट रूप से देख सकते हैं l घाटी में बसा हुआ यह शहर  लद्दाख क्षेत्र का सबसे बड़ा और खूबसूरत शहर है। पिछले कुछ सालों में  इसका आकार बहुत तेजी से बढ़ा है और देश विदेश के तमाम पर्यटक यहां भारी संख्या में पहुंचने लगे हैं। काफी देर यहां पर बिताने के बाद हम लोग आगे को बढ़े। यहां से आगे निकलते हुए रास्ते में दो प्रमुख मठ (Monastery) भी मिलते हैं और इनमें प्रमुख मठ जो ठिक्से लद्दाख क्षेत्र का सबसे बड़ा मठ है यहां पर रुक कर हमने इस के दर्शन किए या फिर फोटो खींची और फिर आगे उप्सी की ओर बढ़े।

यहां से आगे बढ़ते हुए हम को रास्ते में नाश्ता करने के लिए रुकना था। मौसम बहुत खराब हो चला था और पुलिस ने लेह  से मनाली जाने वाला रास्ता बंद कर दिया था। अब ये चिंता होने लगी कि अपने घरों को वापस कैसे पहुंचे? क्योंकि खबरें आ रही थी की मार्ग बहुत बुरी तरह से बंद हो रखे हैं और यह कई दिनों तक नहीं खुलेंगे। हमें पता चला कि पुलिस ने उप्सी में बैरिकेट्स लगा दिए हैं और मनाली की तरफ जाने वाले सारे वाहनों को रोक दिया है। हम लोग नाश्ता कर माहौल को देखने के लिए आगे की ओर बढ़े और पुलिस के बैरियर तक जा पहुंचे।


 अब यहां पर दिमाग थोड़ा काम करने लगा था हमने सोचा कि यहां लेह में रुकने से बढ़िया है कि हम लोग आगे को निकले और कुछ नए स्थलों को देखते हुए ज्यादा से ज्यादा दूरी तय करते हुए घर की ओर बढ़ें। तय हुआ कि यहां की प्रसिद्ध झील शो मोरीरी को देखा जाय, लेकिन शो मोरीरी के लिए इनर लाइन परमिट की जरूरत होती है  क्योंकि यह क्षेत्र फिर चीन के सीमा के नजदीक पड़ते हैं। ये पास हमारे पास नहीं थे इसलिए गेट पर हमसे पूछा गया कि आपके पास यहां जाने का पास है या नहीं  तो हमारे साथी श्री अमोली जी के अपने व्यक्तिगत संपर्क से अगले 2 घंटों में हमने यह पास ले लिए और पुलिस को  दिखा कर हम आगे की ओर बढ़ चले। अब हमें एक दूसरे मार्ग से आगे को निकलना था जो सिंधु नदी के साथ-साथ ऊपर को आता  है और हानले की तरफ बढ़ता है। इस मार्ग पर चलते हुए नदी के साथ-साथ बहुत अच्छे दृश्यों के दर्शन होते हैं और जगह-जगह पर  यहां प्रकृति के विविध रूपरंगों को देखने का मौका मिलता है। इस मार्ग पर चलते हुए छोटे-छोटे कई बाजार कुछ कुछ दूरी पर हमको मिलते रहे और हम आगे बढ़ते रहे।  100 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करने के बाद माहे नामक एक जगह पर फिर हमें दाई ओर मुड़कर त्सो मोरिरी झील के लिए निकले।


अब यहां से मार्ग काफी संकीर्ण हो जाता है यहां कुछ दूर चलने पर कच्चा मार्ग प्रारंभ हुआ और आगे जाकर 2 रास्ते दिखाई दिए। यहां से एक मार्ग मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग पर मिल जाता है और दूसरा वाला शो मोरीरी झील की तरफ चला जाता है। अब एक मन कर रहा था कि इस शानदार झील को देखा जाए लेकिन दूसरी तरफ भी चिंता थी कि हमें अपना घर जल्दी पहुंचना है और हो ना हो मौसम खराब होने के कारण आने वाले समय में यहां के और रास्ते भी बंद हो जाएं। मनाली के लिए जाने वाले मार्ग पर  त्सो कर  झील भी पड़ती है। कुछ देर सोचकर आखिर में हमने तय किया कि हम वापसी करेंगे इसी को ध्यान में रखकर हमारी टीम त्सो कर की तरफ बढ़ गई।

पहले लेह घूमते हुए फिर उसके बाद कुछ मॉनेस्ट्रीज को देखते हुए और उसके बाद लगभग 2 घंटे से ज्यादा पुलिस बैरियर पर रुकने के बाद हमको पहले ही काफी समय हो चुका था और हम अभी भी 15000 फीट से ऊपर की ऊंचाई पर थे। अतः तय हुआ कि जल्दी से जल्दी आगे बढ़कर किसी कम ऊंचाई वाली जगह पर पहुंचा जाए। आगे बढ़ते हुए हमें इस सुंदर झील के दर्शन हुए जो बहुत ज्यादा बड़ी तो नहीं है लेकिन अपने आप में बहुत खूबसूरत है। इसके साथ में फैलाव लिए हुए मैदान और आसपास की ऊंची पहाड़ियां एक बहुत नयनाभिराम दृश्य पैदा करते हैं। इस झील के नजदीक एक गांव मौजूद है और गांव के साथ में ही कुछ लोगों ने रुकने के लिए टेंट और खाने के लिए अपने स्टॉल खोल रखे हैं। 15280 फीट की ऊंचाई पर मौजूद यह स्थान अपने आप में प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है यहां पर जाकर हमने हल्का जलपान लिया, फोटो खींची और आगे की ओर बढ़ गए। आगे की ओर बढ़ते हुए अब लगातार मैदानी क्षेत्र दिखाई देता है या बहुत छोटे-छोटे पहाड़ और इन पहाड़ों में बनी हुई पतली पक्की सड़क में गाड़ी चलाते हुए आपको बहुत रोमांच का अनुभव महसूस होता है। ऊपर ऊंचाई पर हिमाच्छादित चोटियां अपनी असीम सुंदरता का अहसास कराती हैं और इतने सुंदर माहौल में आगे बढ़ते हुए जिस आनंद की अनुभूति करते हैं उन्हें शब्दों में पिरोना संभव नहीं है।


यहां पर कुछ ही दूर चलने के बाद आगे लेह मनाली मोटर मार्ग मिल जाता है।  इस जगह को मोरे प्लेन कहा जाता है यहां पर लगभग 70- 75 किलोमीटर दूरी तक सड़क बिल्कुल मैदान के साथ में चलती है और आपके वाहन की गति काफी तेज हो जाती है, लेकिन यहां पर तेजी से चलते हुए अचानक किसी गड्ढे के प्रकट हो जाने से आपकी गाड़ी के टूटने का खतरा भी बना रहता है। हम लोगों ने इस दूरी को तय करने में ज्यादा समय नहीं लिया और इसके शानदार नजारों के दर्शन करते हुए आगे बढ़े। आगे अचानक ही मैदान खत्म होते हैं और एक बहुत गहरी और लंबी खाई सी दिखने लगती है और उसे देख कर आपको अचानक ही डर का अहसास होता है लेकिन शायद इस जगह का यही एक रोमांच है कि यहां पर ऊंची ऊंची खाई या ऊंचे ऊंचे पहाड़ लंबे मैदान आपको अचानक से दिखाई देने लगते हैं और आप जब तक इन दृश्यों को आत्मसात कर पाते हैं तब तक आपके सामने दूसरे दृश्य पैदा हो जाते हैं।

अब यहां से ढलान शुरू हो गई थी और ढलान के साथ में नीचे उतरते हुए पांग नामक एक छोटा सा स्थान जहां पर कुछ  टेंट और फौज का रुकने का स्टेशन है, हमारी टीम पहुंची। शाम होने वाली थी और आगे बढ़ना खतरनाक हो सकता था लेकिन हमें यही उचित लगा और आगे को बढ़ चले। अब यहां से खराब रोड शुरू हो गई थी और चढ़ाई के साथ साथ चिकनी पत्थर युक्त सड़क के साथ साथ चलती हुई नदी में कई बार आपको पानी के साथ में चलना पड़ता है जगह जगह पर गड्ढे आपके गति में अवरोध पैदा करते हैं या यूं कहें कि आप की गति को लगभग समाप्त कर देते हैं। हम बमुश्किल 10 से 15 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से अपनी गाड़ी को चला पा रहे थे और दूसरी ओर इस वीरान जगह पर सूरज लगभग ढलने ही वाला था। धीरे धीरे और संभलकर आगे बढ़ते हुए हम लोग सबसे पहले यहां के प्रसिद्ध  दर्रे ‘ला चुग ला’  पहुंचे। यहां पर बहुत ज्यादा कीचड़ के साथ साथ काफी बर्फ थी और इसके साथ ही  मौसम भी खराब होने लगा था। ऊपर लगभग समतल भूमि पर मौजूद ये दर्रा अपने आप में बहुत खूबसूरत जगह है। यहां पर रुक कर हमने थोड़ी देर यहां के आसपास के नजारों के  फोटो लिए और आगे बढ़ चले।




यहां से नीचे उतरते हुए आप एक खूबसूरत नाले को पार करते हैं और इसके ऊपर चढ़ने के बाद मैं आपको एक और खूबसूरत दर्रे ‘नक्की ला’ से गुजरना होता है जो अपने आप में बहुत ही सुंदर स्थान पर अवस्थित है। यहां पर रुककर हमने इस खूबसूरत स्थल के दृश्यों को अच्छे से निहारा,फोटो खींचे और आगे बढ़ गए। अब क्योंकि शाम ढल चुकी थी और अभी काफी सफर बाकी था तो हम तेजी से चलना बहुत आवश्यक हो गया था। यहां से कुछ अंधेरा सा होने लगा था और दूर तक कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। बारिश के कारण जगह जगह गिरे हुए पत्थर हमारे सफर को और मुश्किल बना रहे थे। लेकिन इस स्थिति में आपके अंदर जो हल्का सा भय जागने लगता है यही आपके सफर का रोमांच भी बढ़ाता है।  थोड़ा नीचे उतरने के बाद यहां के प्रसिद्ध गाटा लूप्स में हमने प्रवेश किया। ये  22 से 23 मोड़ो का एक समूह है जो एक के बाद दूसरा लगातार आते रहते हैं और हम इसमें नीचे उतरते हुए एक  घाटी की तलहटी में पहुंच गए। सफर के दौरान काफी जगह पर चट्टाने फिसल कर सड़क पर आ गई थी जिन्हें हमारी टीम ने जगह-जगह पर हटाया और अपना सफर इन मुश्किल परिस्थितियों में जारी रखा। इन लूप्स के अंत में घाटी में पहुंचने के साथ ही  हमें घुप अंधेरा हो गया और हम उसी अंधेरे के साथ आगे बढ़ते रहे। यहां से रोड काफी ठीक है कुछ जगहों पर चट्टानों के आ जाने से हमें थोड़ी दिक्कत तो हुई लेकिन हम यहां से नजदीक ही सरचू नामक एक स्थान जहां पर अस्थाई तौर पर बनाए हुए आवास मिल जाते हैं, हम लोग सकुशल पहुंच गए। 

सर्चू  में अस्थाई तौर पर निर्मित कई झोपड़िया, टेंट आदि हैं। यहां पहुंचने पर लगा कि यह स्थान एक छोटे बाजार की तरह रौनक से भरा हुआ है। यहां पर हिमाचल पुलिस ने आगे का रास्ता बंद होने के कारण सभी वाहनों को आगे जाने से रोक दिया था। जिस कारण यहां पर वाहनों, खासकर ट्रकों की पूरी लाइन लगी हुई थी। बहुत ज्यादा भीड़ होने के कारण  हम थोड़ा आगे निकले और पुलिस वालों को समझा कर कि हम यहीं कहीं आगे के टेंट्स में रुकेंगे हम वहां से आगे बढ़े। आगे कई टेंट्स को पूछने के बाद हमें रुकने के लिए एक स्थान पर बमुश्किल दो टेंट मिल गए और हमने आज यहीं पर रुक कर आराम करना उचित समझा। 

हम लोगों ने अपने सफर की शुरुआत यह सोच कर कि थी कि हम लोग चार या अधिकतम 5 दिन में अपने गंतव्य तक लौट आएंगे लेकिन प्रकृति का कमाल देखिए कि हम अब ऐसी जगह पर फंस गए थे कि जहां से ना आगे जाया जा सकता था और ना पीछे ही वापस लौटा जा सकता था। क्योंकि लेह के रास्ते श्रीनगर को जाने वाले रास्ते के आगे भी बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ था और यह रास्ता भी फिलहाल बंद था और इस रास्ते जाते हुए हमें वापस लेह, श्रीनगर, जम्मू के रास्ते लगभग 1500 किलोमीटर के करीब अतिरिक्त चलना पड़ता। इसलिए यह सोच कर कि एक-दो दिन अब यहीं पर भी यदि रुकना होगा तो ऐसा करते हुए फिर उसके बाद आगे को बढ़ेंगे,हम लोगों ने आज के सफर को समाप्त किया। 13500 फीट की ऊंचाई पर होने के कारण यहां ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम था और इसका हल्का हल्का अहसास हमें होने लगा था। लेकिन इस स्थिति में हम कुछ कर भी नहीं सकते थे।

जारी…..

लेखक हिमालय प्रेमी घुमक्कड़ हैं.