November 25, 2024



हिमाचल और लद्दाख की रोमांचक यात्रा – 2

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सत्या रावत


जैसा कि मैंने अपने पहले एपिसोड में लिखा कि हम पहले दिन ही अपनी यात्रा के एक बड़े हिस्से को पूर्ण कर चुके थे क्योंकि हमारे पास एक आधुनिक और सुविधा युक्त वाहन मौजूद था और जिसकी रफ्तार आम वाहनों से ज्यादा तेज थी इस कारण से तय हुआ कि हम लोग एक दिन आसपास कहीं घूमने जाएं। लेकिन हमारे वरिष्ठ सहयोगी श्री राजेश अमोली जी ने प्रस्ताव दिया कि क्यों ना लद्दाख की प्रसिद्ध जंस्कार घाटी को घूम लिया जाए। अतः हम अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम ‘सच पास’ घूमने के प्लान को मॉडिफाई करते हुए जंस्कारघाटी को एक्सप्लोर करने के लिए तैयार हो गए।

केलांग के सामने लाहोल घाटी का दृश्य

तय हुआ कि कल इस घाटी के प्रमुख स्थान पादुम तक पहुंचा जाए और इसी अनुसार हम अगली सुबह बहुत जल्दी अपने निर्धारित स्थान की ओर बढ़ गए। केलांग से आगे निकलते हुए हम लोगों ने यहां की एक खूबसूरत जगह जिस्पा में रुक कर अपना सुबह का नाश्ता लिया। जिस्पा, जो अपने आप में नैसर्गिक सुंदरता से परिपूर्ण एक बेहद खूबसूरत स्थान है। यहां पर साथ में बहने वाली भागा नदी अपने आसपास अलौकिक दृश्यों का निर्माण करती है। यहां अपना नाश्ता करने के पश्चात हम लोग आगे को बढ़े और दारचा नामक स्थान पर जहां हिमाचल पुलिस का बैरियर मौजूद है वहां पर एंट्री कराने के पश्चात इस घाटी के प्रसिद्ध दर्रे सिंगो लॉ जिसे शिंकू ला भी कहा जाता है की और आगे बढ़े।


सिंकु ला कि ओर

दारचा से आगे बढ़ते हुए घाटी बेहद सुंदर दृश्यों का निर्माण करती है। यहां से आगे बिना वनस्पति की रेतीली और चट्टानी भूमि प्रारंभ हो जाती है। दारचा से शिंकू लॉ की दूरी लगभग 23 किलोमीटर है और यह रास्ता पूरी तरह से पक्का और शानदार है। शिंकू लॉ पहुंचने पर हमें वहां पर मौजूद बर्फ और बदलते हुए मौसम के दर्शन हुए। यहां पर बर्फ धीरे धीरे गिरना शुरू हो गई थी इसलिए हमने वहां पर जल्दी-जल्दी उस जगह को देखा वहां पर फोटोग्राफी की, और आगे को बढ़ चले लेकिन यहां से आगे का रास्ता बेहद ही कठिन और चुनौतीपूर्ण था। इस सड़क में मौजूद गड्ढे, पत्थर और चिकनी मिट्टी  ने इसको और भी मुश्किल बना दिया था। यहां  पर हमारे वाहन की गति बेहद कम हो गई थी और हम लोग किसी तरह से अपनी गाड़ी को बचा बचा कर आगे चल रहे थे।


सक्षम जिस्पा में

 यहां से नीचे उतरते हुए एक छोटी सी नदी के दर्शन होते हैं और थोड़ा आगे बढ़ने पर हमें मोटर मार्ग से लगी हुई एक विशालकाय चट्टान दिखी इस चट्टान को Gonbo Rangjon नाम से पुकारा जाता है। इस से चंद कदमों की दूरी पर यहां के स्थानीय लोगों के द्वारा बनाए हुए छोटे-छोटे ढाबे और रुकने के लिए कुछ शानदार टेंट लगे हुए मिले। इस जगह पर हम लोगों ने मेगी और चाय आदि का सेवन किया और कुछ फोटो खींची। आगे को बढ़ने पर यह चट्टान और यहां से गुजरती हुई एक छोटी सी नदी बेहद सुंदर दृश्य का निर्माण करती है और लगता है कि बस यहीं पर कहीं रुक लिया जाए। लेकिन हमारे पास समय की कमी थी और हमें इस घाटी को पूरी तरह से घूमना था अतः इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम लोग आगे बढ़ चले। अब आगे का रास्ता लगभग पूरा कच्चा था। कहीं-कहीं पर यह ठीक ठाक था लेकिन अधिकतर स्थानों पर यह रास्ता हमें खराब ही मिला। जगह-जगह पर उठे हुए पत्थर और बेहद कम चौड़ी यह सड़क सामान्य वाहन चालक के लिए आसान नहीं है किंतु हमारे साथ अनुभवी चालक मौजूद थे जिस कारण हमें इस सड़क को पार करने में समय तो लग गया किंतु अन्य किसी प्रकार की कोई दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा।

यहां से सड़क लगातार नीचे को और उतरती है और जंस्कार नदी के पास जाकर फिर इसके साथ साथ चलती है बेहद चट्टानी इस भूमि पर कई जगह पर यह पता ही नहीं चलता कि वाहन को किधर से ले जाए लेकिन हम लोग धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे और आज के हमारे मुख्य स्टेशन पादुम की ओर बढ़ते रहे। पादुम से लगभग 20 किलोमीटर पहले पक्की सड़क की शुरुआत हुई। जिससे अभी तक के उबड़खाबड़ रास्ते से निजात मिली। यह सड़क बेहद शानदार बनी हुई है और रेतीली भूमि के साथ बेहद आकर्षक दिखाई देती है। इस सड़क पर आगे चलते हुए शानदार दृश्यों का के भी दर्शन होते हैं और हम लोग इन दृश्यों का मजे लेते हुए शाम होने से पूर्व पादुम पहुंच गए।


पादुम कस्बा घाटी पर मौजूद एक बेहद शानदार स्थान है यहां पर मौजूद लंबे-लंबे सूखे मैदान आप को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। नदी के साथ बनी हुए सुंदर घाटियां आप को प्रभावित करती हैं और यहां के मुख्य निवासी और उनका रहन-सहन, उनका खानपान आपको अपनी दुनिया से बेहद अलग जगह होने का अहसास कराते हैं। हमारी टीम ने इस शाम का पूरा सदुपयोग किया और यहां के आसपास मौजूद सभी सुंदर दृश्य का मजा लिया और देर शाम को आज के मुश्किल सफर के बाद थक हार कर हम लोग अपने बिस्तर में जा घुसे।

जारी…..




सिंकू ला में यात्रा के साथी राजेश अमोली एवं सुधांशु घिल्डियाल

लेखक हिमालय प्रेमी घुमक्कड़ हैं.