हिमाचल और लद्दाख की रोमांचक यात्रा – 1
सत्या रावत
इस जुलाई प्रारंभ में विचार बना कि घूमने के लिए ऊंचे हिमालय में कहीं जाया जाय। चूंकि साथी सुधांशु घिल्डियाल कई दिनों से इस बार पर जोर दे रहे थे कि इस समय कहीं घूमा जाय। सुपुत्र सक्षम की छुट्टियां होने के कारण उसे भी साथ ले जाने का तय हुआ और अपनी यात्रा का प्रारंभ 06 जुलाई को प्रारंभ करते हुए हम लोग प्रातः जल्दी निकले और देर शाम लाहौल स्पीति के मुख्यालय केलांग पहुंच गए। चंडीगढ़ के बाद अब सुरंगों के द्वारा मनाली का रास्ता काफी आसान हो गया है लेकिन हिमाचल पुलिस ने हमें उस रास्ते जाने नहीं दिया और हम लोग पुराने रास्ते से होते हुए ही आगे बढ़े। किन्तु मंडी के बाद कुछ जगहों पर आगे भी सुरंगे बन जाने से रास्ता कुछ तो आसान हो ही गया था। मनाली के बाद आगे अटल टनल से सिस्सू होते हुए हम कुल पांच लोग केलांग के एक होटल में रुके। यहां से आगे के लिए पेट्रोल की टंकी फुल की क्योंकि यहां से आगे बहुत दूर दूर तक उच्च हिमालयी भूमि है यहां पर इंसान के दर्शन बहुत कम होते हैं। 10000 फीट से ऊंची भूमि होने के कारण ऑक्सीजन का स्तर भी बहुत कम रहता है अतः इन सब बातों को ध्यान में रखकर आगे का सफर तय करना था। आपस में तय किया था कि बारालाचा दर्रे के आसपास घूमते हुए शाम वापस आ जायेंगे लेकिन फिर विचार बन गया कि प्रसिद्ध जांस्कर घाटी को घुमा जाय।
केलांग दस हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद एक खूबसूरत जगह है। अटल टनल को पार करते ही टोपोग्राफी पूरी तरह बदल जाती है और यहां की घास, पेड़ पौधे सब कुछ बिलकुल भिन्न से लगने लगते हैं। सिस्सू का खूबसूरत जलप्रपात आपको रोमांचित करता है और चंद्रा व भागा नदी की खूबसूरती आपको आकर्षित करती है। यहां के मूल निवासी जो मंगोलियन ब्रीड के हैं उनका खानपान रहन सहन भी काफी अलग होने से इसे जानना बेहद दिलचस्प हो जाता है। जुलाई के महीने में ऊंची घाटियों में पड़ी हुई बर्फ और यहां की ठंड से आप सुकून महसूस करते हैं और मोबाइल नेटवर्क की बेहद सीमित उपलब्धता होने से आप रोजमर्रा के तनाव से भी दूर रहते हैं। देर शाम लाहौल घाटी की खूबसूरती को निहारते हुए अपना डिनर लिया और कल के लंबे और चुनौतीपूर्ण सफर को ध्यान में रखते हुए जल्दी से बिस्तर में घुसकर सोने को चले गए।
जारी ….
लेखक हिमालय प्रेमी घुमक्कड़ हैं.