देश में सूखाग्रस्त इलाके बढ़े
संदीप गुसाईं
देश में सूखाग्रस्त इलाकों का प्रतिशत लगातार बढ रहा है.
- जंगलों के पास स्थित गांव अपने जीने के लिए जंगलों का अधिक दोहन कर रहे है जिससे जंगलों का क्षेत्रफल कम हो रहा है.
- जंगलों से वनोपज के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे, उसके बाद बिहार.
- नार्थ ईस्ट के कई राज्यों अरुणाचल, मेघालय, आसाम में वनों के रिजनरेशन की स्थिति बेहद नाजुक.
- यूपी में सबसे ज्यादा गांव जंगलों के पास स्थित है.
- यूपी में फ्रिंच विलेज की मासिक आय सबसे कम केरला सबसे अधिक.
- एफआरआई ने 5 वर्षो तक इस विस्तृत अध्ययन किया.
- उत्तराखंड में भी नौ जिलों का अध्ययन किया गया.
देहरादून – एशिया में वनों के शोध एवं अनुसंधान में अग्रणी एफआरआई ने देश के सूखाग्रस्त इलाकों पर विस्तृत शोध किया है।देश के 27 राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश में इस शोध को संपन्न किया गया है। सूखागस्त जिलों में वनों के नजदीक स्थित गांवों पर इस शोध को केन्द्रित किया गया है। एफआरआई के शोध में जो तथ्य सामने आए है वो काफी चौकाने के साथ ही वन एवं पर्यावरण के लिए काफी चुनौतीपूर्ण भी है। देश के कई राज्यों में सूखाग्रस्त इलाकों के नजदीक स्थित वनों पर मानव दबाव तेजी से बढ रहा है जिसके कारण वन क्षेत्रफल भी घटता जा रहा है। भारत एक कृषि प्रधान देश है ये तो आप जानते ही होंगे कि देश के अधिकतर राज्यों में कृषि इंद्र देव की मेहरबानी से होती है। इन राज्यों में कभी बाढ तो कभी सूखा फसलों को चौपट कर देता है। एफआरआई ने देश में पहली बार जंगलों के पास स्थित गांवों का विस्तृत अध्यन अब जंगलों के पास स्थित सूखाग्रस्त क्षेत्रों का पूरा वैज्ञानिक रिपोर्ट सामने आई है। दरअसल देश के कई राज्यों महाराष्ट्र, उडिया, बंगाल, मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार, छत्तीसगढ, झा रखंड, तमिलनाडू और कर्नाटक में सूखे से हजारों किसानों ने आत्महत्या की है। वन अऩुसंधान संस्थान ने देश के 27 राज्यों के 275 जिलों के करीब 1 लाख 39 हजार 352 गांवों का विस्तृत अध्ययन किया है। ये सभी वे गांव है जो जंगलों के पास स्थित है और इन्हे फ्रिंच विलेज कहा जाता है। करीब पांच सालों तक ढाई सौ वैज्ञानिकों और कर्मचारियों के इस शोध में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए है।
इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि देश में ईकोसिस्टम पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। ग्रीन कवर को बढाने के लिए भले ही लाख दावे किए जा रहे हो लेकिन एफआरआई की इस विस्तृत रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि फ्रिंच विलेज से जुडे गांवों में वनों का अत्यधिक दोहन हो रहा है। एफआरआई ने इस रिपोर्ट को केन्द्रीय वन मंत्रालय और तमाम राज्यों को भेज दी है।एफआरआई की निदेशक डा सविता बताती है कि देश में पहली बार इतने विस्तृत स्तर पर शोध हुआ है। इस शोध में फ्रिंच विलेज की आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय स्थिति का अध्ययन किया गया है साथ ही इसमें यह भी जानने की कोशिश की गई है कि इन गांवों के लोग जंगलों से क्या क्या दोहन कर रहे है। डा सविता बताता कि यह रिपोर्ट भविष्य में तमाम योजनाओं के लिए मील का पत्थर साबित होगी खासकर उत्तराखंड, हिमांचल, जम्मू कश्मीर और नार्थ ईस्ट के राज्यों में के लिए जहां सबसे ज्यादा वन क्षेत्रफल है। डा सविता कहती है कि जंगलों पर सूखाग्रस्त इलाकों का सबसे ज्यादा दबाव है और इस दबाव को कम नही किया गया तो जंगल तेजी से कम होने शुरु हो जाएंगे।
इस विस्तृत रिपोर्ट को एफआरआई ने योजना आयोग के लिए तैयार किया गया था लेकिन बाद में इसे नेशनल रेनफेड एरिया अथारिटी को भेज दिया गया। इस शोध रिपोर्ट में केवल दिल्ली और हरियाणा को शामिल नही किया गया है। जिन फ्रिंच विलेज का शोध इसमें किया गया है वहां की इकोलाजिकल स्टेटस, खेती, सिचाईं और पशुधन के साथ ही पलायन और आय के भी डाटा लिए गये है। इस शोध में शामिल वैज्ञानिक मनोज कुमार ने बताया कि फारेस्ट फ्रिंज गांवों की जंगलों पर निर्भरता बढ रही है जिससे उस पूरे इलाके की जैवविविधता खतरे में है।
देश में करीब 3 लाख 10 हजार 416 गांव सूखाग्रस्त श्रेणी है जिसमें करीब 1 लाख 40 हजार गांव जंगलों के पास स्थित है। उत्तराखंड में 13 हजार गांवों में से 10 हजार गांव जंगलों के करीब है। एफआरआई ने अपना शोध कार्य तो पूरा कर दिया लेकिन अब केन्द्र और राज्यों सरकारों की जिम्मेदारी है कि इस रिपोर्ट के अनुसार योजनाएं तैयार की जा सकें जिससे जंगल भी बच सके और गांवों की आर्थिकी भी बढाई जा सके।