भोगवाद का परिणाम है जोशीमठ की ट्रेजेडी
डॉ.योगेश धस्माना
जोशीमठ में पहला भू-धंसाव भूकम्प के कारण 1634 ई. में हुआ था और जन-धन की हानि के आकंलन के बाद ऐसियाटिक रिसर्चर में इस भूकम्प का मापन रिक्टर स्केल पर 7 बताया गया था। इसी रिपोर्ट के अनुसार 16 वीं शताब्दी में जोशीमठ से गोपेश्वर तक के क्षेत्र का अधिकांश भूगोल एवलांच से बदल गया था। इसी तरह गोपेश्वर में बंग्याणी का इलाका 8 वीं शताब्दी में भी पूरी तरह भूस्खलन से तबाह हुआ था। तब यहाॅ कश्मीर हटा नाम से बस्ती हुआ करती थी। इस तरह की परिस्थितियों वाले भू-भाग होने के बावजूद आज केदारनाथ और बदरीनाथ को मास्टर प्लान से बसाने की तैयारी कर लाखों पर्यटकों को लाने की बात की जा रही है । यहां पर इस बात पर गहराई से ध्यान देने की बात है कि 1978 में पर्वतारोही सर एडमण्ड हिलेरी ने गंगा सागर से गंगा तक अपने अभियान में नन्दप्रयाग में पत्रकारों से कहा था कि गढ़वाल को पर्यटन से आय कमाने का जरिया कतई नहीं बनाया जाना चाहिए। क्या सरकार इस बात का संज्ञान लेगी।
प्रख्यात भू वैज्ञानिक के.एस. वाल्दिया ने फरवरी 1974 में साइंस टुडे में पिथौरागढ़-चमोली से सिरमौर तक के क्षेत्र को अति सम्वेदन बतलाते हुए इसमें भारी निर्माण और बाॅध परियोजनाओं से खतरा बताते हुए इससे पहाड़ के भूगोल बदलने की आशंका जाहिर की थी। यहां पर इस बात का भी उल्लेख प्रासंगिक होगा कि चमोली जनपद के 60 से अधिक गांव जिन्हें दो-तीन दशक पूर्व भूस्खलन /भू-धंसाव की दृष्टि से अति संवेदनशील घोषित किया हुआ था उन गांवो के निवासी आज भी विस्थापन की राह देख रहे हैं।लोगों का लालच सर व्यापारी वर्ग के एक हिस्से की अति महत्वाकांक्षा एवं भवन निर्माण शैली में तीखे ढालों पर मकान निर्माण से स्थिति विकट हुई है।