रिंगाल मैन राजेंद्र बडवाल
संजय चौहान
उत्तराखंड लोक विरासत में चमोली के 66 वर्षीय दरमानी लाल द्वारा बनाये गये रिंगाल के उत्पाद बनें आकर्षण. देहरादून के रेंजर्स ग्राउंड में आज से आयोजित उत्तराखंड लोक विरासत- 2022 (5 और 6 नवम्बर तक आयोजित) में हस्तशिल्पि दरमानी लाल और उनके बेटे रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल की बेजोड हस्तशिल्प कला के रिंगाल व लकडी के उत्पाद आकर्षण के केन्द्र रहे। पद्मश्री डाॅ प्रीतम भर्तवाण नें इनकी बेजोड हस्तशिल्प कला और इनके द्वारा बनाए गये उत्पादों की प्रशंसा भी की। 43 सालों से हस्तशिल्प कला को दे रहें हैं पहचान। बेजोड हस्तशिल्प कला का हर कोई मुरीद।
उम्र के जिस पडाव पर अमूमन लोग घरों की चाहरदीवारी तक सीमित होकर रह जाते हैं वहीं सीमांत जनपद चमोली की बंड पट्टी के किरूली गांव निवासी 66 वर्षीय दरमानी लाल जी इस उम्र में हस्तशिल्प कला को नयी पहचान दिलाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। वे विगत 43 सालों से रिंगाल के विभिन्न उत्पादों को आकार दे रहें हैं। रिंगाल के बने कलमदान, लैंप सेड, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोकरी, टोपी, स्ट्रैं सहित विभिन्न उत्पादों को इनके द्वारा आकार दिया गया है। आज इनके द्वारा बनाए गए उत्पादों का हर कोई मुरीद हैं। कई जगह ये रिंगाल हस्तशिल्प के मास्टर ट्रेनर के रूप में लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। बैंगलोर, भोपाल से लेकर मुंबई तक है इनके द्वारा बनाए गये रिंगाल उत्पादों की मांग। मुंबई कौथिग में रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल कर चुके है प्रतिभाग।
उत्तराखंड में वर्तमान में करीब 50 हजार से अधिक हस्तशिल्पि हैं जो अपने हुनर से हस्तशिल्प कला को संजो कर रखें हुयें है। ये हस्तशिल्पि रिंगाल, बांस, नेटल फाइबर, ऐपण, काष्ठ शिल्प और लकड़ी पर बेहतरीन कलाकरी के जरिए उत्पाद तैयार करते आ रहें हैं। लेकिन बाजार में मांग की कमी, ज्यादा समय और कम मेहनताना मिलने की वजह से युवा पीढ़ी अपनी पुश्तैनी व्यवसाय को आजीविका का साधन बनाने में दिलचस्पी कम ले रही है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प कला दम तोडती और हांफती नजर आ रही है।
ये हैं दरमानी लाल
चमोली जनपद के दशोली ब्लाॅक के किरूली गांव के 63 वर्षीय दरमानी लाल विगत 40 सालों से रिंगाल का कार्य करते आ रहें हैं। बकौल दरमानी लाल जी रिंगाल की टोकरी और अन्य उत्पादों की जगह अब प्लास्टिक नें ले ली है। पहाडो में पलायन की वजह और गांव में खेती की तरफ लोगों का रूझान खत्म हो गया है जिससे रिंगाल के उत्पादों की मांग घट गयी है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प व्यवसाय पर भी संकट गहरा गया है। जिस कारण अब हस्तशिल्प कला से परिवार का भरण पोषण करना बेहद कठिन हो गया है। लोगों को मजबूरन हस्तशिल्प की जगह रोजगार के अन्य विकल्प ढूंढने पड रहे हैं।
बेटे रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल ने पिताजी की हस्तशिल्प कला को दी नयी ऊंचाई
हस्तशिल्पि दरमानी लाल के बेटे राजेन्द्र बडवाल भी बेजोड हस्तशिल्पि हैं। रिंगाल मेन के नाम से विख्यात राजेन्द्र बडवाल रिंगाल ही नहीं बल्कि लकडी के भी बेजोड हस्तशिल्पि हैं। उन्होंने रिंगाल और लकडी पर कई शानदार कलाकृतियों को बनाया है। रिंगाल मेन राजेन्द्र बडवाल कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रिंगाल के उत्पादों की भारी मांग है परंतु हस्तशिल्पियों की तस्वीर नहीं बदल पाई है। जबकि हस्तशिल्प रोजगार का बड़ा साधन साबित हो सकता है। यदि हस्तशिल्प उद्योग और हस्तशिल्पियों को बढ़ावा और प्रोत्साहन मिले तो पहाड़ की तस्वीर बदल सकती है। बाजार की मांग के अनुरूप हमें नये लुक और डिजाइन पर फोकस करना होगा।
वास्तव में देखा जाए तो हमारी बेजोड हस्तशिल्प कला और इनको बनाने वाले हुनरमंदो का कोई शानी नहीं है। देहरादून के रेंजर्स ग्राउंड में आज से आयोजित हो रहे उत्तराखंड लोक विरासत- 2022 में पारम्परिक लोकसंगीत और हस्तशिल्पि कला को भी नहीं पहचान मिलेगी। 5 नवम्बर से 6 नवम्बर के मध्य आयोजित होने वाले उत्तराखंड लोक विरासत- 2022 में आपको दरमानी लाल जी और उनके पुत्र राजेन्द्र के बनाये रिंगाल के उत्पादों को देखने और खरीदने का अवसर मिलेगा। हस्तशिल्प के बेजोड कलाकार दरमानी लाल जी जैसे लोगों की वजह से हमारी समृद्धशाली हस्तशिल्प कला आज भी जीवित है।
अगर आपको इनके बनाये रिंगाल के उत्पाद पसंद हैं तो आप इनसे सम्पर्क भी कर सकते हैं।
रिंगाल मेन राजेंद्र बडवाल – 87550 49411
दरमानी लाल – 9557607264, 8474948282
लेखक युवा चर्चित पत्रकार हैं