सीमांत लोंगेवाला
मुकेश नौटियाल
सीमांत लोंगेवाला के विस्तीर्ण रेगिस्तान में रहने वाले दर्जनभर छोटे छोटे गांवों के लिए यह कुआं मीठे पानी का एकमात्र स्रोत होता था। साल 1971 की लड़ाई में अपनी हद में वापस लौटती पाकिस्तान की फ़ौज ने इसमें ज़हर घोल दिया। इलाक़े के एकमात्र जल स्रोत के ज़हरीले हो जाने से कुछ प्यासे गांव पलायन कर गए। जो बचे रहे उनके खातिर भारतीय सेना ने कुएं से ज़हरीला पानी निकालकर इसको फिर से मीठे पानी से भर दिया पर ग्रामीणों ने फिर भी इस कुएं का पानी नहीं पिया। अंततः सरकार को उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी पड़ी। लोंगेवाला का यह रेगिस्तान ख़ाक हुई तोपों और जली हुई जीपों से भरा पड़ा है। युद्ध मनुष्यता को कितना प्रताड़ित करते हैं – यह समझने के लिए लोंगेवाला बॉर्डर एक मुफीद जगह है।
वरिष्ठ लेखक और कहानीकार