November 22, 2024



नासिक में भी है अगस्त्य आश्रम

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अनुसूया प्रसाद मलासी


जिज्ञासा या उत्सुकता जानने की इच्छा को कहते हैं, जो प्राणियों में जन्मजात गुण के रूप में ईश्वर प्रदत्त रहती है। वैज्ञानिक खोज हो या सामाजिक अध्ययन, उनके पीछे उत्सुकता एक प्रमुख वजह और ताकत होती है। गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा था – “हमारा सारा ज्ञान एवं योग्यताएं जिज्ञासा के बिना व्यर्थ हैं।” यदि मनुष्य में नई जगह जाने या तलाशने की जिज्ञासा नहीं होती, तो वह जीवन भर कुएं के मेंढक की तरह कुएं में ही पडा़ रहता।

नासिक प्रवास के दौरान बातचीत में जब मेरे बेटे आचार्य मनोज प्रसाद ने बताया कि यहाँ भी निकट में अगस्त्य आश्रम है, तो मैं अगस्त्य ऋषि जी के आश्रम भ्रमण और आशीर्वाद लेने से स्वयं को रोक नहीं पाया और हम दोनों वहां गए। महाराष्ट्र में नासिक जिले के मनमाड रेलवे जंक्शन से करीब 7 किमी दूर येवला-मालेगाँव हाई-वे पर अंकाई Ankai पहाडी़ क्षेत्र में अगस्त्य आश्रम है।


अगस्त्य मंदिर यहाँ स्थित प्राचीन अंकाई किला के भीतर एक बड़ी खडी़ चट्टान को काटकर बनाया गया है। आश्रम के एक तरफ चट्टानों को काटकर पानी के कुंड बने है और दूसरी तरफ गौशाला, महंत निवास तथा भोजनालय भी चट्टान को काटकर गुफानुमा बनाये गये हैं। मंदिर के कर्मचारी ने बताया कि अगस्त्य आश्रम यहाँ पहाड़ की चोटी पर पहले से था और बाद में किसी राजा द्वारा इस किले का निर्माण कराया गया। दूर-दूर तक समतल इस अगस्त्य आश्रम के निकट चट्टानों को काटकर वर्षा जल के अनेक तालाब बनाए गए हैं और उसी के एक छोर पर राजा के प्राचीन आलीशान महल के खंडहर कभी अपनी बुलंदियों की कहानी कहते नजर आते हैं।


अगस्त्य ऋषि के बारे में कहा जाता है कि –

आतापी भक्ष्यते येन, वातापि च महाबली।


समुद्र पोषिते येन, कुंभ योनी नमोऽस्तुते।

मान्यता है कि वे वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। अगस्त्य ऋषि का जन्म काशी में हुआ था। वे लंबे समय तक काशी में रहे। अगस्त्य कुंड इस बात की पुष्टि करता है। कुछ समय तक महर्षि अगस्त्य मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के पटना-तमोली गाँव में रहे थे और तब वहीं श्रीराम और अगस्त्यमुनि का मिलन हुआ था। उस स्थान को आज भी सिद्धनाथ आश्रम के नाम से जाना जाता है।




महर्षि अगस्त्य ने उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों की यात्रा की। श्री केदारनाथ क्षेत्र में आश्रम बनाकर रहे तथा सूर्य भगवान व श्रीविद्या की उपासना की थी। इस स्थान को आज अगस्त्यमुनि के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र में उस समय आतापी और वातापी नाम के राक्षसों का भयंकर उत्पात था। महर्षि ने अपने तपोबल और योगबल से राक्षसों को मार भगाकर लोगों को इनसे मुक्ति दिलाई।

रुद्रप्रयाग से गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग पर मंदाकिनी नदी के बायें तट पर एक बडे़ तटीय क्षेत्र अगस्त्यमुनि में अगस्त्य महाराज का प्राचीन भव्य मंदिर तथा आश्रम है। इस पर्वतीय क्षेत्र में श्री अगस्त्यमुनि महाराज के प्रति जनता का अगाध श्रद्धा और विश्वास है। मंदिर की सीमा रेखा के भीतर आने वाले गाँवों के लोग नये अनाज को सबसे पहले मुनि महाराज की भेंट अर्पित करते हैं।

महर्षि अगस्त्य दक्षिण भारत भ्रमण पर गये तो लौटकर नहीं आये

एक बार मध्य भारत में विंध्याचल पर्वत बहुत ऊँचा उठ गया था और उससे उत्तर भारत की तरफ सूर्य का प्रकाश नहीं आ पाने से अंधकार की स्थिति पैदा हो गई थी। तब देवताओं ने अगस्त ऋषि की उपासना की और उन्हें विंध्याचल को बढ़ने से रोकने का अनुरोध किया। तब अगस्त्य ऋषि दक्षिण दिशा की ओर गये। विंध्याचल ने अपने गुरु को आते देखकर प्रणाम किया। उन्होंने विंध्याचल को अपने वापस आने तक इसी स्थिति में रहने का आदेश दिया। तब से न अगस्त ऋषि वापस आए और न ही पर्वत सीधा खडा़ हुआ। आज भी देखा जा सकता है कि मध्य भारत की विंध्याचल या सह्याद्रि पर्वत श्रृँखलाओं के जितने भी यहाँ छोटे-बडे़ पर्वत हैं, वे झुके या फिर साष्टांग दंडवत की मुद्रा में दिखाई देते हैं।

श्री अगस्त्य का प्रभाव दक्षिण भारत में काफी रहा है। इस कारण महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश में कई अगस्त्य मंदिर और आश्रम स्थापित हैं। अंकाई किले में स्थित अगस्त्य आश्रम तक करीब एक किलोमीटर सीढी़नुमा चढा़ई से जाते हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग इस किले की देखरेख व मरम्मत का कार्य करता है लेकिन किले का ज्ञात-अज्ञात इतिहास कहीं भी अंकित नहीं है। किले के अंदर से आश्रम तक जाने के लिए संकरे गुफानुमा रास्ते पर खडी़ चढा़ई चढ़नी पड़ती है।

किले से 300 मी. नीचे खडी़ कठोर चट्टान को काटकर मंदिर और सुंदर गुफाएं बनाई गई हैं। इनके भीतर जल संग्रहण टंकियां और जैन मूर्तियां बनाई गई हैं। भीतरी भाग में जमीन, दीवारों और छत पर सुंदर चित्रकारी उकेरी गई हैं। औरंगाबाद के निकट अजंता-एलोरा गुफाओं की छाप यहाँ भी देखी जा सकती है। दूर-दूर से लोग अंकाई किला, अगस्त्य आश्रम, किले के खंडहर और गुफाओं के भीतर की दुनिया को देखने के लिए जाते हैं। आश्चर्य यह कि किले के भीतर सिर्फ एक ही रास्ते से जा सकते हैं। अन्य चारों ओर प्रकृति का चमत्कार, ऐसी झूलती कठोर खड़ी चट्टान कि कोई लाख जतन कर ले, चोरी-छिपे ऊपर चढ़ ही नहीं पायेगा।

और अंत में…

भ्रमण के बाद हम किले से नीचे रास्ते की ओर कदम बढा़ये ही थे कि एक सुंदर भद्र महिला ने जोर से आवाज दी। हम रुके। क्या कहा? समझ नहीं पाए। बालक ने कहा – हिंदी में कहिये! इस पर ऊपर किले की प्राचीर से महिला (बहुत से लोगों और बच्चों के साथ फ़ोटो शूट कर रही थी) ने एक थैली पकडा़ई और समझाया कि नीचे मंदिर में उनके पतिदेव बैठे हैं। चढा़ई नहीं चढ़ पाये। उनके लिए भोजन है। हम उन्हें कैसे पहचानेंगे? दोनों हाथ फैलाकर बोली, जो इतने मोटे होंगे… कहकर वह शरमा गई।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं