नेहरु के मायने
पंकज सिंह महर
आज नेहरु जी का जन्मदिन है, इस अवसर पर सारा देश उन्हें याद कर रहा है, कांग्रेस के एक प्रमुख नेता होने के नाते वह आज भी चुनावों में प्रासंगिक रहते हैं.
उनके पड़्पोतों के विपक्षी उन्हें रह – रह कर याद करते हैं, यह सही है कि वे पाश्चात्य संस्कृति से बहुत प्रेरित थे, लेकिन वह हर हिन्दुस्तानी को वैसा ही बना देना भी चाहते थे, जैसे यूरोप के लोग उस समय थे। उनकी अपनी जीवनशैली थी और हर व्यक्ति कि अपनी एक व्यक्तिगत जीवनशैली होती है, जो निजता की श्रेणी में आता है, हमें उस पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिये, अगर हम ऐसा करते हैं तो वह हमारी मानसिक कुंठा के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
समाजवाद और बाजारवाद का जो मिश्रंण उन्होंने आजादी के तुरन्त बाद किया, उससे आम आदमी को बड़ी राहत मिली। अकाल से पीडित, भीषण भुखमरी, गरीबी से भरा और औपनिवेशिक सोच से लूटा गया, हताशा से भरा देश उन्हें चलाने के लिये मिला, जिस देश में सुई तक का उत्पादन नहीं था, उस देश में उन्होंने स्थानीय संसाधनों पर निर्भर मिलें लगवाई, सूत – कपास – ऊन – तम्बाकू – नमक आदि स्वदेशी चीजों की ब्राडिंग की, यह नेहरु की सोच ही थी, जिसने एम्स और आई०आई०टी० जैसे संस्थान दिये, सेल – गेल – भेल जैसी सरकारी प्रतिनिधित्व वाली नवरत्न कम्पनियां आज भी नेहरु की सोच के दूरदर्शीपन को प्रतिबिम्बित करती हैं। वह नेहरु ही थे, जिन्होंने रजवाड़ों को बिना किसी शर्त (प्रीवीपर्स) के भारत गणराज्य में मिलने को विवश किया और अपनी प्रगतिशील सोच का परचम लहराया। उनके हिन्दू विरोधी होने का दुष्प्रचार करने वालों को यह भी देखना चाहिये कि आजादी के बाद जितने भी संस्थान बनाये गये, जिसमें नवरत्न कम्पनियों से लेकर तमाम यूनिवर्सिटीज लगायत दूरदर्शन, आकाशवाणी तक के ध्येय वाक्य संस्कृत की ऋचाओं में बनाये गये।
नेहरु का एक दर्शन था, एक सोच थी, अपनी जिन्दगी के 12 साल उन्होंने जेल में बिताये और वहां भी खाली नहीं बैठे, डिस्कवरी आफ इण्डिया जैसा इन्साईक्लोपीडिया लिख डाला। मुझे गर्व है कि मेरे देश को ऐसा बहुआयामी पहला प्रधानमंत्री मिला, जिसकी दूरदृष्टि के कारण मैं तेजी से विकसित होते भारत गणराज्य का निवासी हूं, कृतज्ञतापूर्वक नमन, स्मरण एवं श्रद्धांजलि।
फोटो सौजन्य – अवाम