November 24, 2024



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जगमोहन चोपता


चमोली के कड़ाकोट क्षेत्र में साकंबरी देवी और सोबन सिंह रावत के घर में जन्में गुमान सिंह क्षेत्र के युवाओं की तरह ढ़ाकर बनकर अपने क्षेत्र से खेती की उपज के बदले कोटद्वार और अल्मोड़ा की मण्डियों में नमक-गुड़ की खरीददारी करने जाते हैं। अल्मोड़ा में स्कूल जाते शहर के नौनीहालों को देख बालक गुमान सिंह को भी पढ़ने की ललक जगती है। अपनी मां साकंबरी देवी से कुछ रूपये लेकर वे अल्मोड़ा पहुंचते हैं। जहां किसी अंग्रेज से मिलते हैं और उन्हीं के घर में घरेलू कामकाज को करने के साथ ही पढ़ाई का मन बनाते हैं। पढ़ाई के प्रति बालक की जिज्ञासा देख अंग्रेज उसे घर के काम काज के साथ स्कूल में पढ़ने भेजते हैं। जहां से पढ़कर कड़ाकोट के खेतीहर समाज का यह बालक पण्डित गुमान सिंह रावत बन वहीं स्कूल में पढ़ाने का काम करते हैं। करीब 1890 के दौरान स्कूल की नौकरी छोड़ अपने मुलुक लौटते हैं और अपने गांव में स्कूल शुरू करते हैं। 1901 में इसी स्कूल का प्रांतीकरण हो जाता है जो आज मॉडल प्राथमिक विद्यालय चोपता के रूप में विद्यमान है।

पण्डित गुमान सिंह रावत की इस पहल के चलते कड़ाकोट क्षेत्र में शिक्षा की बयार बहती है। जिससे क्षेत्र में शिक्षा के प्रति नई पीढ़ी को आगे बढ़ने का मौका मिलता है। शिक्षा का चेतना से गहरा संबंध है। संभवतः इसी लिये पण्डित गुमान सिंह के छोटे बेटे रघुवीर सिंह रावत गांधी की कांग्रेस के चवन्नी मेंबर बनते हैं और चोपता क्षेत्र में कमिश्नर रैम्जे के आगमन पर मंदिर के प्रांगड़ में विशालकाय खड़ीक के पेड़ पर कांग्रेस का झण्डा लगाकर क्षेत्र के अन्य चवन्नी मेंबर के साथ रैम्जे को काला झण्डा दिखाते हैं।


देश आजाद होता है और बदलाव की बयार जब आम जन तक पहुंचने के बजाय इंद्रा के आपातकाल का दौर शुरू होता है तो इन्हीं पण्डित गुमान सिंह के पोते बीरबल सिंह रावत चन्द्रसिंह गढ़वाली की अगुवाई में नजीमाबाद में कम्युनिस्ट आंदोलन में मुखरित हो आपातकाल की खिलाफत करते हुये प्रसाद पाते हैं। पण्डित गुमान सिंह की शिक्षा जात्रा ने उनके परिवार को मनोबल और समाज निर्माण में योग देने का आत्मबल ही नहीं दिया बल्कि क्षेत्र में शिक्षा को लेकर एक नई चेतना के बीज बोये।


कालांतर में गांव में मिडिल स्कूल की स्थापना के लिये प्रयास जब सफल हुये तो पण्डित के पोतों ने अपने घर को मिडिल स्कूल चलाने के लिये दे दिया। जब तक स्कूल की बिल्डिंग नहीं बनी तब तक उनका घर स्कूल के रूप में प्रस्तुत रहा। फिर क्षेत्र में इण्टर कॉलेज आंदोलन की सुगबुगाहट हुई और कड़ाकोट क्षेत्र के लोगों ने जनपद मुख्यालय गोपेश्वर में भूखहड़ताल और शानदार आंदोलन किये।

आज गांव में मॉडल प्राथमिक स्कूल, बालिका उच्च प्राथमिक स्कूल और इण्टर कॉलेज में क्षेत्र के नौनिहाल पढ़ रहे हैं। आज भी गांव में पण्डित गुमान सिंह के मकान को लोग पण्डितों का कूड़ा यानि मकान के नाम से जानते हैं और पुरानी पीढ़ी उनके पोतो-पड़पोतों को आज भी यदा-कदा संबोधित करती है।


आज जब सब लोग अपने पितरों को श्राद्ध में तर्पण दे रहे हैं तो हमारी पीढ़ी से एक अपेक्षा भी बनती है कि वे शिक्षा की अलख जगाने वाले पण्डित गुमान सिंह रावत के बारे में स्कूली नौनीहालों को उनके स्कूल के अतीत से साक्षात्कार करायें। उन तक इस बात का जाना उनके लिये सही मायनों में तर्पण होगा।

संदर्भ –




1. कड़ाकोट दस्तावेज, संपादक जगमोहन चोपता-ठाकुर नेगी व पण्डित गुमान सिंह रावत के पोते बीरबल सिंह रावत व भगवत सिंह रावत से बातचीत पर आधारित.