नयार – सतपुली के बहाने
डॉ. सुभाष चन्द्र थलेडी – डॉ. अरुण कुकसाल
लोकगीतों में बहुत बड़ी शक्ति होती है। उनमें इतिहास छिपा रहता है और युगों तक वह सुरक्षित रहता है। गढ़वाल का ऐसा ही एक लोकगीत है जो की गढ़वाल में लोकगीत-युग के हर किसी व्यक्ति की जुबान पर मिलता था;
द्वी हज़ार आठ भादों कु मास, सतपुली मोटर बौगीन खास”
इस लोकगीत में संवत 2018 यानि सन 1951 के भादों के महीने की 14 सितंबर को सतपुली गढ़वाल में घटित भीषण तम प्राकृतिक आपदा का पूरा ब्यौरा निहित है। यदि यह लोकगीत न होता तो शायद इस घटना को लोग सदा के लिए भूल गए होते।
उन दिनों गढ़वाल के सतपुली गांव तक ही सड़क मार्ग से बसें आती थी। सतपुली में झूला पुल होने से आगे वाहन नहीं जा सकते थे। सतपुली में आरटीओ का निरीक्षण था। सभी मोटर गाड़ियां कोटद्वार से सतपुली में एकत्रित हो गयी थी। पूर्वी नयार उन दिनों महज एक बरसाती गदेरा था। लेकिन 13 सितंबर की रात को दूधातोली पर्वत पर पनगोला फटने से नयार नदी में भयंकर बाढ़ आई और पूर्वी नयार ने अपना रास्ता बना दिया। इसी बाढ़ की चपेट में आकर सतपुली में एकत्रित सभी वाहन और उनके चालक-परिचालक बह गए। इस भयावहता का अंदाज़ शायद किसी को नहीं रहा होगा और पल भर में सभी वाहन बाढ़ की भेंट चढ़ गए थे।
यह भी संयोग है कि पूर्वी नयार और पश्विमी नयार का संगम भी सतपुली से महज दो किमी. बाद बड़खोलू-नौगांव सैण में है। तब से पूर्वी नयार का जन्म हो गया और आज पश्चिमी नयार से प्रबल धारा बन गयी है। इस नदी में हर साल सतपुली के पास अनेक लोग डूब जाते हैं, ठीक उसी जगह जहां 1951 में यह तांडव हुआ था।
इसी लोकगीत के बहाने सतपुली पर भी प्रकाश डालना उचित होगा। भविष्य में आपदा के कगार पर आज यह कस्बा खड़ा है। सतपुली गढ़वाल का महत्वपूर्ण स्थान है जो एक गांव था और अभी कुछ साल पहले इसको नगरपालिका का दर्जा मिला है। कोटद्वार या पौड़ी से आने वाले मुसाफिर यहां रुकते हैं। आज अतिक्रमण का शिकार यह कस्बा किसी एक अन्य घटना को जरूर जन्म देगा। शासन और प्रशासन ने इस अतिक्रमण पर आंखें बंद कर दी हैं। नदी तटों को फिर घेर लिया गया है। अब इस कस्बे से गुजरना मतलब कि भारी आफत में फंसना है। किसी भी समय नयार नदी में अगर 1951 की आपदा जैसी आयी तो सतपुली की आधी आबादी साफ हो जाएगी। नदी अपना रास्ता नहीं भूलती है और अतिक्रमण को साफ कर मरघट बना देती है।
आज हमारे मा.सांसद श्री तीरथ सिंह रावत जी सतपुली निवासी हैं। उन्होंने सतपुली में घर बनाया है। यदि वे इन दिशा में भी चिंतन करेंगे तो बहुत अच्छा होगा। उत्तराखंड के लोकनिर्माण और पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज इस क्षेत्र से विधायक हैं उन्हें भी इस ओर ध्यान देना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का गाँव भी सतपुली के बिल्कुल निकट है। सतपुली उनका भी होम टाउन है उनको भी इस तरफ देखना चाहिए। मेरी चिंता यही है कि यह नयार 1951 में मेरे परिवार को बहुत बड़ा आघात दे चुकी है ऐसा अब भविष्य में न हो। मैंने अपना 9वीं और 10वीं भी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सतपुली से किया था। उस वक्त का सतपुली बहुत खुला था। कोई अतिक्रमण नहीं था। ज्यादातर स्थानीय लोग सुबह अपने कारोबार के लिए आते थे और शाम को अपने सुरक्षित गांवों में पहुंच जाते थे। सतपुली-बाँघाट रोड पर एक पानी का धारा था जो पूरे सतपुली गांव को पानी पहुंचाता था। अब उस धारे का नामोनिशां मिट गया और उस पर भवन बन चुके हैं। आखिर कौन है इसके लिए ज़िम्मेदार? सोया हुआ शासन-प्रशासन इसके लिए दोषी है।
गंगा की सबसे प्रथम सहायक नदी नयार के तटों को सुरक्षित रखने की जरूरत है। यहां हो रहे अवैध खनन ने घाटों को भी नष्ट कर दिया है। उत्तर गंगा या नवालिका के नाम से विख्यात इस नदी को आज माफियाओं से बचाने की जरूरत है। इसके खनन पर रोक लगे। यहां चल रहे क्रशर भी बंद होने चाहिए। भविष्य के लिए भयंकर आपदा के लिए ये सब कारक बन रहे हैं।
डॉ. अरुण कुकसाल का लेख नीचे
मां को बताना मेरी आस न करे, सतपुली में मोटर बह गई है-
सतपुली त्रासदी की पुण्यतिथि (14 सितम्बर, 1951)
शहीद 30 ड्राइवर-कंडक्टर भाईयों को याद एवं नमन-
द्वी हजार आठ भादों का मास, सतपुली मोटर बोगीन खास…
हे पापी नयार कमायें त्वैकू, मंगसीरा मैना ब्यो छायो मैकू…
मेरी मां मा बोल्यान नी रयीं आस, सतपुली मोटर बोगीन खास.
( सतपुली नयार बाढ़ दुर्घटना-गढ़माता के निरपराध ये वीर पुत्र मोटर मजदूर जन यातायात की सेवार्थ 14 सितम्बर, 1951 ई. को अपनी गाड़ियों सहित सतपुली नयार नदी की प्रचन्ड बाढ़ में सदैव के लिए विलीन हो गये।
सतपुली बाजार से पूर्वी नयार नदी के दांये ओर बिजली दफ्तर परिसर में स्थापित स्मारक पर उक्त पंक्तियां लिखी हैं। आज से 70 साल पहले लिखे उक्त शब्दों की बनावट और लिखावट का अब फीका और टूटा होना स्वाभाविक ही है। बिजली से संबधित मोटे तारों, खम्बों और भीमकाय बेकार मशीनों, कटींली झाड़ियों आदि के बीच वीराने में खड़ा यह स्मारक अतीत के प्रति हमारे नागरिक समाज के सम्मान के स्तर को बताता है। साथ ही हमारी सामाजिक संवेदनहीनता को जग-जाहिर करता है।
हो सकता है आज के दिन इस स्थल को साफ-सुथरा करके कुछ लोग फूलों के साथ श्रृद्धा-सुमन अर्पित करने यहां आये अथवा आ रहे होंगे। पर फिर, आने वाले कल-परसों से इसको कटींले तारों से घिरना ही है। अच्छा होता कि सतपुली का हर निवासी इस स्थल की पवित्रता एवं महत्वा को समझता।
यह वो जगह हैं जहां पर वे सतपुली के इतिहास, भूगोल और सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक विरासत को महसूस कर उसे आज के संदर्भों में सतपुली की बेहतरी के लिए चिन्तन-मनन कर सकते हैं। पर हरदम सरपट भागती सतपुलीय जन-जीवन को इतनी फुरसत और समझ कहां है।
प्रसंगवश बताते चलूं कि कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग के मध्य में सतपुली (समुद्रतल से 750 मीटर ऊंचाई) नगर स्थित है। पिछली सरकार के कार्यकाल में सतपुली को नगर पंचायत का दर्जा दिया गया। सतपुली के पास ही बडख्वलु गांव के घाट में पूर्वी एवं पश्चिमी नयार नदी का संगम होता है। यहां पर झील निर्माण का प्रस्ताव दशकों से लटका पड़ा है।
नयार की मछलियां ज्यादागुणकारी और स्वादिष्ट मानी जाती हैं। इसीलिए सतपुली का माछी-भात बेहद लोकप्रिय है। गढ़वाली गीतों में ‘सतपुली का सैण’ और ‘सतपुली बाजार’ का जिक्र इस जगह की लोकप्रियता को बताता है।
जनपद पौड़ी के 4 विकासखण्ड यथा- द्वारीखाल, जयहरीखाल, कल्जीखाल तथा एकेश्वर की सीमायें सतपुली को स्पर्श करती हैं। स्वाभाविक है कि सतपुली का सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक प्रभाव क्षेत्र व्यापक और महत्वपूर्ण है।
सतपुली सड़क मार्ग से सन् 1944 में जुड़ा। सड़क से जुड़ने के 7 साल बाद ही 14 सितम्बर, 1951 को पूर्वी नयार में आयी भयंकर बाढ़ में संपूर्ण सतपुली बाजार, 30 लोग और 31 बसें कालग्रसित हो गए थे। जहां पुराना सतपुली बाजार था आज वहां पूर्वी नयार बहती है। उसके बाद नया सतपुली मल्ली गांव के कृर्षि क्षेत्र में बसना शुरू हुआ था।
आज निकटवर्ती क्षेत्रों को शामिल करते हुए लगभग 10 हजार की आबादी सतपुली की है। सुबह 9 बजे से सांय 3 बजे तक 15 से अधिक लिंक सड़कों से विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों के सैकड़ों लोगों की आवाजाही का यह केन्द्र बना रहता है।
यह बात भी जान लेनी जरूरी है कि सतपुली जैसे विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के स्थल गढ़वाल में कम ही है। इस कारण सतपुली में बसने का आर्कषण निकटवर्ती इलाकों के लोगों में तेजी से बढ़ रहा है। अतः जरूरी है कि सतपुली के लिए एक दीर्घकालिक नगर नियोजन की कार्ययोजना पर तुरंत विचार किया जाना चाहिए।
उत्तराखंड की वर्तमान शासन व्यवस्था में सतपुली का महत्व अपने आप में विशिष्ट है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के गांव खैरासैण की दूरी सतपुली से मात्र 3 किमी. और पूर्व मुख्यमंत्री ही नहीं वर्तमान सांसद तीरथ सिंह रावत के गांव सीरौं की 16 किमी. है। उम्मीद थी सतपुली के समग्र विकास को इन महानुभावों से लाभ मिलेगा। वैसे, सतपुली निवासियों की यह उम्मीद अभी भी बरकरार है।
यह स्मारक उन बिछड़े हुए साथियों की यादगार के लिए यातायात के मजदूरों के पारस्परिक सहयोग से गढ़वाल मोटर मजदूर यूनियन द्वारा स्थापित किया गया है-गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स यूनियन द्वारा निर्मित।
सतपुली में 14 सितम्बर, 1951 को पूर्वी नयार में आयी बाढ़ से हुयी ञासदी की भयानकता को बताता यह गढ़वाली लोकगीत हर किसी को भाव-विभोर कर देता है।
द्वी हजार आठ भादों का मास,
सतपुली मोटर बोगीन खास।
औड़र आई गये कि जांच होली,
पुर्जा देखणक इंजन खोली।
अपणी मोटर साथ मां लावा,
भोल होली जांच अब सेई जावा।
सेई जोला भै-बन्धों बरखा ऐगे,
गिड़गिड़ थर-थर सुणेंण लेगे।
भादों का मैना रुण-झुण पांणी,
हे पापी नयार क्या बात ठाणीं।
सुबेर उठीक जब आयां भैर,
बगीक आईन सांदन-खैर।
गाड़ी का भीतर अब ढुंगा भरा,
होई जाली सांगुड़ी धीरज धरा।
गाड़ी की छत मां अब पाणी ऐगे,
जिकुड़ी डमडम कांपण लेगे।
अपणा बचण पीपल पकड़े,
सो पापी पीपल स्यूं जड़ा उखड़े।
भग्यानूं की मोटर छाला लैगी,
अभाग्यों की मोटर डूबण लेगी।
शिवानन्दी कु छयो गोवरधन दास,
द्वी हजार रुप्या छै जैका पास।
डाकखानों छोड़ीक तैन गाड़ी लीने,
तै पापी गाड़ीन कनो घोका दीने।
गाड़ी बगदी जब तेन देखी,
रुप्यों की गड़ोली नयार स्य फैंकी।
हे पापी नयार कमायें त्वैकू,
मंगसीरा मैना ब्यो छायो मैकू।
काखड़ी-मुंगरी बूति छाई ब्वै न,
राली लगी होली नी खाई गैंन।
दगड़ा का भैबन्धों तुम घर जाला,
सतपुली हालत मेरी मां मा लगाला।
मेरी मां मा बोल्यान तू मांजी मेरी,
नी रयों मांजी गोदी को तेरी।
मेरी मां मा बोल्यान नी रयीं आस,
सतपुली मोटर बोगीन खास।
हिंदी भावार्थ-
दो हजार आठ भादों के महीने,
खास सतपुली में मोटरें बह गई।
यह आदेश आया कि मोटरों की जांच होगी,
पुर्जा देखने के लिए इंजन खोलना है।
अपनी मोटर साथ लाओ,
कल जांच होगी अभी सभी सो जाओ।
सो तो जायेंगे पर भाई बन्धों, बारिश आ गई है,
उसकी गिड़गिड़ाहट अब सुनाई देने लगी है।
भादों के महीने का लगातार बरसता पानी,
हे पापी नयार नदी आज तूने क्या बात ठानी है।
सुबह उठकर जब बाहर आये,
तो सागंण-खैर के पेड़ नयार नदी में बह के आ रहे हैं।
गाड़ी के भीतर अब पत्थर भरो,
नदी जल्दी कम हो जायेगी, धीरज रखो।
गाड़ी की छत पर भी अब पानी पहुंच चुका है,
सभी का दिल अब कांपने लगा है।
अपने बचने हेतु पीपल का पेड़ पकड़ा,
पर पापी पीपल भी जड़ से उखड़ गया।
भाग्यवानों की मोटर नदी किनारे लग गई है,
भाग्यहीनों की मोटर नदी में डूबने लगी है।
शिवानंदी गांव का था गोवरधनदास,
दो हजार रुपए थे उसके पास।
पोस्टआफिस में जमा करने के बजाय उसने गाड़ी खरीदी,
उस पापी गाड़ी ने आज उसे कैसा धोखा दिया।
गाड़ी नदी में बहती जब उसने देखी,
रुपयों की गड्डी उसने नयार नदी से फैंकी।
हे पापी नयार मैंने तेरे लिए ही कमाया,
मंगसीर के महीने मेरी शादी थी।
मां ने घर पर ककड़ी-मकई बोई है,
अब वह यही कहती रहेगी कि हम नहीं खा पाये।
मेरे साथियों तुम घर जाओगे,
सतपुली की हालत मेरी मां को बताओगे।
मेरी मां को बोलना कि,
मैं तेरी गोदी का नहीं रह पाया।
मेरी मां को यह भी बोलना मेरी आस न करना,
क्योंकि खास सतपुली में मोटर बह गई हैं।
डॉ. अरुण कुकसाल
ग्राम-चामी, पोस्ट- सीरौं-246163
पट्टी- असवालस्यूं, जनपद- पौड़ी (गढ़वाल), उत्तराखंड