ये कैसा उत्तराखंड उदय ?
महावीर सिंह जगवान
उत्तराखण्ड मे उत्तराखण्ड उदय की धूम है, नेताऔं के चेहरे पर मुस्कान है, अफसरों के ठाट बाट हैं, चकड़ीतों की मौजाँ ही मौजाँ हैं।
गाँव के सोणू काका मिले थे कह रहे थे तीन दर्जन कच्चे केले लेकर बाजार आया था एक सौ पचास रूपये मे बिके, पचास की दवाई ली, पचास की चीनी चाय और पचास की सब्जी और दाल। तीन बेटियाँ हैं जिनकी शादी हो गई , लाडला बीमार है और बहू मायके चली गई, खेती बुढापे मे होती केले की खेती कर रखी थी आधे खेतों के केले बीमारी से खत्म हो गये और बचे केले सुँवर ने उजाड़ दिये दो साल की मेहनत एक सौ पचास रूपये का लाभ। मोनू मामा भी रिवर्स माइग्रेसन के बुखार से पीड़ित थे विगत तीन साल से वे भी मैदान से पहाड़ चढने का सपना बुन रहे थे यह विरला उदाहरण है आपदा के बाद का बड़ी उत्सुकता से इस कल्पना को देख रहा था छोटी छोटी पूँजी जोड़कर कभी ईट तो कभी बजरी तो कभी टीन की चद्दर बहुत खुश थे पिछले साल से क्योंकि दीवाल और टिन की चद्दर को जोड़ दिया था खुशी थी बमुश्किल आशियाना जुड़ गया, इनके चेहरे का आजकल पानी उड़ा हुआ है गाल तो ऐसे हो रखे मानो ढूँढकर भी नहीं दिखते मस्तिष्क पर चमड़ी की ऐसी सिलवट मानो महाकाल की भस्म से बनी रेखायें हो पूछता हूँ मामू ऐसी क्या बात हो गई कहते हैं माबिर ना पूछ मेरे घर जिसका सपना तिरसठ साल की उम्र मे पूरा किया था फिर उजड़ेगा क्यों मोदी की ऑल वेदर के पुल की नींव मे मेरे सपनो का आशियाना सदा के लिये गुम हो जायेगा, मुट्ठी भर भी मुआवजा नही मिलेगा क्योंकि मेरी गुन्जाइस सीमेन्ट की छत की नही थी और टिन तो छप्पर मे ही गिना जायेगा। हिम्मत बेटे की हिम्मत भी अब जबाब दे गयी एम ए बीएड की पढाई के बाद विगत दस बारह वर्षों से सब्जी बरडाली सैन्टर से बच्चों और बूढे माँ बाप को पाल रहा है ऑल वेदर मे उजड़ने की पक्की खबर ने रात की नींद और दिन का चैन छीन लिया है। 2013की आपदा मे अपने मकान खेत खलिहान गवाँ चुके केदार घाटी के लोंगो पर फिर से नये संकट के बादल मंडरा रहे हैं क्योंकि उनके नये आशियाने ऑल वेदर की जद मे हैं, विधान सभा के मुखिया से बात की कहते हैं जनाब पहले मुआवजा लो फिर कोर्ट जाना, प्रभावित अपनी चिन्ताऔं को लेकर एडीएम के पास जाते हैं तो वह झल्लाहट मे जबाब देता है, जनता के मुखिया से कहा जबाब मिला वह बड़े तनाव मे है। वाकई पहाड़ियों की किस्मत भी हिलोरे मारती है जो हैं खेवनहार वो अपने ब्यक्तिगत तनाव की तनातनी मे आम जनता की आस को अकाल मौत दे देते हैं।
उत्तराखण्ड युवा हो रहा है, हिमालयी राज्य की विशेषता रही है जब उसका लाडला अट्ठारह साल का होता है तो माता पिता का हौशला बढता है अब हमे हमारा सहारा मिलने वाला है इस उम्र मे पहला दरवाजा फौज का खुलता है जहाँ परिवार और युवा के भविष्य की सुरक्षित थाह होती है दूसरी ओर माता पिता अपनी सामर्थ्य से भी अधिक संचय लाडले की पढाई के लिये करते हैं। और सपने बुनते हैं, अपने ईष्ट अराध्य से प्रार्थना करते हैं, ब्राह्मण देवता से निरन्तर विचार विमर्श कर लाडले के उज्जवल भविष्य हेतु निरन्तर सतर्क और प्रयासरत रहते है, तब जाकर शसक्त और सबल भविष्य की आस अधिक बलवती होती है।
यह उत्तराखण्ड अनगिनत वेदनाऔं के समाधान का जन्म था, विकट और दुरूह जीवन के समाधान की आस थी, हर हाथ को उसकी योग्यता अनुसार रोजगार का सपना था, खेत खलिहानो की मुस्कराहट की आस थी, हिमालय जैसे सम्मान और सृजन के संकल्प का प्रतिविम्ब बनने की दृढ इच्छा शक्ति थी, ऊँचे पर्वतों से घाटियों तक फैले गाँवो की खुशहाली की आस थी, लोक की सबल सम्भावनाऔं के उत्कर्ष का सपना था। नारा था कोदा झंगोरा खायेंगे उत्तराखण्ड को सम्मन्न शसक्त बनायेंगे। शहीदों के सपनो के राज्य उत्तराखण्ड के धरती पर अवतरित होते ही इतनी छेड़छाड़ की गई कि यह युवा होते है असहाय लाचार वेवस सा दिखने लगे। जिस परिकल्पना के आधार पर इस राज्य का सृजन हुआ प्रथम चरण मे ही गैरसैंण के साथ भेदभाव करके राज्य की मूल अवधारणा को खण्डित करने की कटिल कोशिष हुई।
कोई भी नया राज्य जब बनता है तो उसका अपना एक संविधान होता है इसी संविधान के बलबूते विकास के सोपानो को छुआ जाता है। बड़े भाई यूपी से दरियादिली और हिमांचल के बायलोज को नजरन्दाज कर आधा यूपी और आधा पूरे भारत के राज्यों के संविधान का विलय कर ऐसी खिचड़ी पकाई गयी राज्य एक कदम चलता है तो स्वास की बीमारी की तरह आर्थिक तंगी से हाँफने लगता है, बार बार उत्तराखण्डियों की मुण्डी के आधार पर कर्ज लेकर कदम बढाया जाता है।
नया राज्य बना था हम सभी साथी बहुत उत्सुक थे लगता था नये युग की शुरूआत होगी। गाँव गाँव मे खेल के मैदान होंगे, टपकती छत वाली स्कूलें और विना गुरूजी की खाली घण्टी से अब मुक्ति मिलेगी, रामी काकी की तरह अब किसी का पैर बीमारी से नहीं कटेगा क्योंकि तब गैंगरिंग हो गई थी पहले काली दाल को मंत्र लगाकर घुमाया था और बाद मे सभी देवी देवताऔं के चाँवलो के ताड़े मारे गये फिर भी जब दर्द असहनीय हो गया तो दूर दून पहुँचकर भारी भरकम रकम खर्च कर टाँग भी कटवानी पड़ी थी, राज्य बनेगा नजदीक से नजदीक विशेषज्ञ डाॅक्टर पहुँचेगा, रामी काकी की तरह अब कोई पीड़ादायक और लाचार जीवन नही जीयेगा। गाँव का विकास लखनऊ वाली ट्रेन मे खो जाता था अफसर और नेता बड़ी बन्दरबाँट करते थे, वैंसे भी लखनैय्या सरकार हँसती थी कहती थी चारपाई लगाने लायक जमीन नही और विकास को आँगन तक पहुँचाने का ख्वाब देखते हैं पहाड़ी, अब लगता था नया सवेरा आयेगा खुशियों की रोशनी विखेरेगा, हमारा छोटे से पहाड़ी खेत सोना उगलेंगे, गाँव तक पक्की सड़के होंगे, उत्तराखण्ड परिवहन निगम की गाड़ियाँ पहाड़ के परिवहन की शक्ल ही बदल जायेगी, ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग केदारनाथ जी की सुगम और सुरक्षित यात्रा होगी, प्रत्येक पहाड़ी जनपदों मे औद्योगिक क्षेत्र होगा जहाँ अपने उद्योगपति और अपने श्रमिकों के चेहरे पर मुस्कान होगी, छोटी छोटी पनविजली परियोजनायें होंगी गाँव जनपद के युवा मिलकर विजली तैयार करेंगे, बेचेंगे और रोजगार के अवसर पैदा होंगे, जब अभाव का युग था तो भवनो पर तीस से पचास फीसदी लकड़ी का उपयोग होता था जो भूकम्प की दृष्टि से संवेदन शील जोन पाँच के क्षेत्र मे सुरक्षित और सर्दी गर्मी के मौसम मे अनुकूल थे वह युग फिर लौटेगा हमारी भवन शैली दुनियाँ को अचम्भित करेगी, गाड गदेरे खुशहाल होंगे और स्थानीय लोंगो की आजीविका के शसक्तीकरण मे सहायक होंगे। पहाड़ों पर कृषि उद्यान और औद्योगिक उत्पादों का उत्पादन बढेगा तो हर बार दो तरफ का अत्यअधिक पड़ने वाला माल भाड़ा भी घटेगा।सुदूर पहाड़ों मे खुले आस्ट्रेलियन भेड़ फार्म फिर से महकेंगे, स्थानीय ऊन को बड़ा बाजार मिलेगा, ऊर्जा श्रोतों के इकतरफा दोहन से बचने के लिये जलावन लकड़ी की भरमार होगी, भारत मे आयातित इमारती लकड़ी का भरपाई उत्तराखण्ड बड़ा उत्पादक होगा, स्थानीय बारहनाजा की समृद्धि की चमक होगी, थुनेर देवदार की महक बढेगी।
हल निर्माण की कौशलता से लेकर आई आई टी, और एन आई टी जैसे उच्च संस्थानो के युवाऔं तक के लिये अवसरो की भरमार होती। पर्यटक सर्किट की सृदृढता और सुविधा सम्मपन्नता होती, तीर्थस्थल आस्था और आजीविका के शसक्त श्रोत बनते, शिक्षा के सार्वजनिक और निगम स्तरीय बड़ी संरचना के लिये विश्व स्तरीय अवसर खिलते, सूचना और तकनीकी का इतना प्रसार होता यह निर्माण कार्य से लेकर जीवन रक्षक सिस्टम तक विकास के शसक्त अवसर होते। स्वच्छता और पावन जल श्रोतों का प्रबन्धन, जलागमीय क्षेत्रों का संवर्धन ऐतिहासिक स्तर पर रोजगार और पर्यटन की बाढ लाने की सामर्थ्य रखते हैं।राज्य मे उपभोग की जानी वाले नब्बे फीसदी जरूरी खाद्य सामग्री, भवन सामग्री, वनोउपज, तकनीकी संयत्र और भौतिक संसाधनो का निर्माण होता, नब्बे फीसदी युवाऔं को रोजगार मिलता तो लगता उत्तराखण्ड उदय की सार्थकता बढती
(ये लेखक के विचार हैं)