नंदी कुंड लोकजात
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान
उत्तराखंड में हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा के लोकोत्सवों की अलग ही पहचान है। सीमांत जनपद चमोली में 12 वर्ष में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात यात्रा में सभी देव डोलीयां और छंतोली नंदा अष्टमी के दिन होमकुंड -शिला समुद्र में पहुंचती है और राजजात सम्पन्न होती है जबकि प्रत्येक वर्ष भादों के महीनें नंदा सप्तमी की यात्रा अर्थात नंदा की वार्षिक लोकजात आयोजित होती है। जनपद चमोली के 7 विकासखंडों के 800 से अधिक गांवों व अलकनंदा, बिरही, कल्प गंगा, नंदाकिनी, पिंडर घाटी की सीमा से लगे गांवों के लोग इस लोकोत्सव में शामिल होते हैं। नंदा की ये वार्षिक लोकजात 12 वर्ष में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात से कई मायनों में बेहद बृहद और भब्य होती है। वार्षिक लोकजात यात्रा के दौरान गांवो से लेकर डांडी-कांठी माँ नंदा के जागरों से गुंजयमान हो जाती है।
नंदा के मायके में अलकनंदा नदी के पश्चिमी छोर की सहायक जलधारा बालखिला से कल्प गंगा के बीच के हिस्से को मल्ला नागपुर क्षेत्र कहा गया है। इसी भू भाग में आयोजित होती है मां नंदा का अनूठा लोकोत्सव। इसी परिक्षेत्र में चमोली जिले के जोशीमठ ब्लाक के उर्गम थात, पंचगाई थात गांवों के लोग हर साल भादौ के महीने मां नंदा और स्वनूल की वार्षिक लोकजात यात्रा आयोजित करते हैं। यह जात नंदा को ससुराल कैलास से मायके लाने की यात्रा है। जिसमें माँ नंदा को मैनवाखाल में नंदीकुड से और स्वनूल को भनाई बुग्याल में सोना शिखर से जागरों के माध्यम से अपने मायके में अष्टमी के लिए बुलाया जाता है। नंदा सप्तमी के दिन यहां पूजा-अर्चना के बाद भगोती नंदा को मायके लाने की मनौती की जाती है। जिसके उपरांत दोनों ध्याण नंदा अष्टमी को अपने मायके ऊर्गम पहुंचती है। तत्पश्चात नवमी को भगवान फ्यूंलानारायण के कपाट बंद होने के बाद भर्की चोपता मंदिर में जागरों का गायन किया जाता है जिसमे सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है।
माँ नंदा और स्वनूल भी सुबह घंटा कर्ण भूमि क्षेत्रपाल उर्गम के साथ अपने छोटे भाई से मिलने भर्की गांव जाते है जहाँ देव मिलन होता है। इस दौरान जागर व दांकुडी गाये जाते है। अंत में दोनों भाई अपनी ध्याण नंदा और स्वनूल को जुगात (जागरों के माध्यम से नंदा को कैलास भेजने की मनौती) के माध्यम से नन्दीकुंण्ड और सोना शिखर के लिए विदा करते है। अपनी ध्याण को विदा करते समय वो वायदा करते हैं कि चैत बैशाख के महीने जब उर्गम में चोपता मेला का आयोजन होगा तो हम तुम्हे जरूर बुलायेंगे। इस दौरान ध्याणियों की आंखे छलछला जाती है और वे फफक कर रो पडते हैं। इस दिन घंटा कर्ण अपने छोटे भाई भर्की भूमियाल व अन्य देवी देवताओं को क्षेत्र की रक्षा और दुःख दूर करनें के लिए कहते है। अपने छोटे भाई से भेंट कर घंटाकर्ण वापस अपने स्थान लौट जाते है और इसी के साथ विराम लेता है नंदा का ये लोकोत्सव। इस अवसर पर होने वाले कौथिग को भर्की दशमी मेला कहा जाता है। आज दशमी का मेला बेहद सादगी के साथ सम्पन्न हुआ। ऊर्गम घाटी के इस नंदा के लोकोत्सव में सबसे बडा आकर्षण का केंद्र होती है तीन दर्जन से अधिक रिंगाल कि पारम्परिक छंतोली और देवपुष्प ब्रह्मकमल, जिन्हें प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को दिया जाता है। ये रिंगाल की छंतोली बरबस ही हर किसी को आकर्षित कर देती हैं।
नंदी कुंड लोकजात में ये गांव होते हैं सम्मिलित!
उर्गम थात से बांसा, गीरा, देवग्राम, बड़गिंडा, ल्यारी, थैंणा, सलना, भर्की, भेंटा, अरोसी, पंचगाई थात से पल्ला, किमाणा, जखोला, द्वींग, तपोण, लांजी, पोखनी, ह्यूंणा, कलगोठ, द्योखार थात से स्यूंण, बेमरू, मठ, झड़ेथा, सुरेंडा, जैंसाल, बौंला, कोंज, खंडरा, कांडा, कुजाऊं मैकोट, डुंग्री, छिनका, बिजरकोट, नैल कुड़ाव, देवर खडोरा, पाडली पपड़ियाणा, ग्वाड़, सगर, गंगोलगांव सहित मल्ला नागपुर के अन्य गांव।
ऊर्गम घाटी के लोकसंस्कृतिकर्मी और सामाजिक सरोकारों से जुड़े युवा रघुवीर नेगी कहते हैं कि ऊर्गम घाटी में नंदा लोकजात का उद्देश्य जहां परंपराओं एवं संस्कृति का संरक्षण करना है, वहीं ईको टूरिज्म को बढ़ावा देना भी है। इस लोकयात्रा के माध्यम से जहां श्रद्धालु व पर्यटक हिमालय के दुर्लभ एवं अभिभूत कर देने वाले सौंदर्य से रूबरू होते हैं, वहीं उन्हें प्रकृति का महत्व भी समझ में आता है। इसलिए सरकार को भी चाहिए कि वह जनपद के विभिन्न क्षेत्रों में आयोजित होने वाली नंदा की वार्षिक लोकजात का कैलेंडर तैयार करके इसको अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शामिल कर इसे राज्य के पर्यटन मानचित्र में स्थान दे।
ये है उर्गम घाटी लोक जात यात्रा का कार्यक्रम
8 सितम्बर भगवती गौरा की जात छतोली देवग्राम गौरा मंदिर से रात्रि विश्राम हेतु श्री फ्यूलानारायण मंदिर पहुंचेगी
9 सितम्बर सुबह 6 बजे फ्यूलानारायण से रोखनी बुग्याल में जात सम्पन होगी दोपहर 2 बजे फ्यूलानारायण मंदिर में नारायण से भेंट कर शाम 6 बजे गौरा मंदिर पहुंचेगी
11 सितम्बर श्री घंटाकर्ण भूमि क्षेत्र पाल मंदिर में भगवती नन्दा के ससुराल हेतु तैयारियां होगी
12 सितम्बर श्री घंटाकर्ण मंदिर से 19 छतोलियां श्री वंशीनारायण नारायण के पास रिखडारा उडियार में रात्रि विश्राम करेगी जहाँ पंचगै की छतोलियां से मिलन होगा
13 सितम्बर मैनवाखाल में उर्गम घाटी एवं पंचगै की जात सप्तमी तिथि को होगी पुन रात्रि विश्राम रिखडारा उडियार में
14 सितम्बर श्री घंटाकर्ण मंदिर में भक्तों को ब्रहम कमल वितरण होगा भगवती नन्दा स्वनूल मायके पहुंचेगी
भनाई बुग्याल लोकजात यात्रा
12 सितम्बर उर्गम पल्ला जखोला डुमक की एक एक छतोली भर्की भैटा की छतोलियां का भर्की चोपता मंदिर में मिलन होगा शाम को सभी छतोलियां श्री फ्यूलानारायण मंदिर पहुंचेगी
13 सितम्बर को भनाई बुग्याल में स्वनूल देवी की जात होगी रात्रि विश्राम पुन श्री फ्यूलानारायण
14 सभी छतोलियां भर्की चोपता मंदिर पहुचकर अपने अपने गांवो को लौट जायेगी
15 सितम्बर श्री फ्यूलानारायण मंदिर के कपाट बंद होंगे
16 सितम्बर भर्की दशमी मेंला आयोजित होगा और नन्दा स्वनूल की कैलाश विदाई होगी।