November 24, 2024



किन्हीं के लिए घसियारियां होंगी

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रमेश पाण्डेय कृषक


किन्हीं के लिए घसियारियां होंगी

हमारी तो बहू बेटियां और माताएं होती हैं


हरियावक नौर्त बटि घ्यू त्यारक बीच में गोंन में बुआरिनोंक पैल्ली काम घा काटणक हूं। चैमासक घा मललब घा कि दनमन।


खेतों में या जंगल में जहां चले जाओ घास ही घास। बुआरियां सुबह के पाव में दूर जंगल जा कर घास काट लाती हैं तो साम के पाव में खेतों से घास काट लाती हैं। करीब तीस से चालीस किलो घास के ढेर को सिर में ढो कर ला रही बहु बेटियों के फोटो वह हर कोई जिसका गांव से अधिक सहरों से सम्बन्ध है घसियारी मान कर खीच लेना चाहता है। गांवों में बड़े बूड़े बहू बेटियों के सिर के बोझ को उसकी कार्य छमता से आंकते हैं। जब सिर का यह बोझ धास लाने वाली बहू बेटियां घर के आंगन में गिराती है तब आंगन से गोठ और गोठमाव तक बंधे गाय बैल भैंस बोहड़ बाछ ऐसे कुचाले मारने लगते हैं कि अभी गयों तोड़ कर घास के ढेर पर झपट जायेंगे।

मधुली आमा की बुआरी धास के ढेर में से बड़ा सा घास का पुआ निकाल कर दोंण में बंधे जानवरों को थोड़ा-थोड़ा परोस देती है फिर सिर का टाला खोल कर कहीं भी पसीना सुखाने बैठजाती है। कुछ ही समय में आमा गिलास भर कर चाय बुआरी को थमा देती है। दूसरी तरफ तालमो की गोपुली आमा की बुआरी को इजाजत है कि वह लाई हुई घास में बिलकुल हाथ नही लगायेगी। जो भी करेगी गोपुली करेगी। गोपुली की बुआरी थोड़ा सुस्ताने के बाद अपने लिये चपेंण खोजने चुल्हे वाले भितेर चली जाती है कुछ है तो ठीक नही तो मुट्ठी भर चावल की ख्ज्जी खाप में खित कर चबाते हूए दूसरे काम में लग जाती है।


चैमासे का काम बड़ा पीड़ाने वाला होता है पैरों और हाथों के पोरुओं से ले कर अगल बगल तक काधूं फैल जाती है। कच्ची हरी घास के किनारों की धार तीखे ब्लेड जैसी होती है जो शरीर के जिस हिस्से को रगड़ती है वहां जलन लायक जख्म कर देती है इन अदृश्य जैसे जख्मों पर जब पसीना फैलता है तो पसीने में मिलने वाला नमकीन तत्व जलन में नमक छिड़कने काम ही करता है।

मधुली आमा बर्षात लगते ही कटे फटे और काधों की दवाई मगवा कर रखवा लेती, अपनी बुआरी के जख्मों पर अपने हाथ से दवाई भी लगाती है उसके बालों में कंघी तेल करते हूए जूंए भी मारती है। दूसरी तरफ गोपुली की बुआरी है जो जंगल से आते हुए सिल फोड़ के पत्ते चुन लाती है। समय मिलते ही सिलफोड़ के पत्तों का रस निचोड़ कर काधों में टपका लेती है। उसके पास अन्तिम दवाई यही तो होती है।




लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं