कर्मयोगी श्री अवधेश कौशल
सुरेन्द्र कुमार
पद्मश्री से सम्मानित अपनी जीवटता व संघर्ष के प्रतीक, कर्मयोगी श्री अवधेश कौशल जी नही रहे, मेरा तो उनसे मेरे छात्र जीवन से लम्बा साथ रहा है, उनका मार्गदर्शन सदैव मिलता रहा। उन्होंने कल प्रातः मैक्स अस्पताल देहरादून से बैकुंठ प्रस्थान किया।परमपिता परमेश्वर उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान प्रदान करे। ओम् शांति ओम्।
उन्हें जन सरोकारों के लिए सत्ताप्रतिस्थानो व धारा के विरुद्ध संघर्ष के लिए सदैव याद किया जाएगा। अपनी 86वर्ष की आयु में भी डटे रहे अवदेश कौशल, उनके बारे में जब भी दबे-कुचलों के हितों की बात आती है या जहां भी नागरिक हितों की अनदेखी का सवाल खड़ा होता है, वहां 86 वर्ष के वयोवृद्ध समाजसेवी पद्मश्री अवधेश कौशल डटकर खड़े हो जाते थे। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों की मिलने वाली सुविधाओं को हाई कोर्ट में चुनौती दे बंद कराने में भी उनका योगदान रहा है। जन सरोकारों की जो लड़ाई उन्होंने बंधुआ मजदूरी के खात्मे के लिए वर्ष 1972 में शुरू की थी, अंतिम समय तक तमाम मुकाम हासिल कर अनवरत जारी रही।
आज अगर देश में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम-1976 लागू है तो उसका श्रेय पद्मश्री अवधेश कौशल को ही जाता है। वर्ष 1972 में तमाम गांवों का भ्रमण करने के बाद जब अवधेश कौशल ने पाया कि बड़े पैमाने पर चकराता क्षेत्र में लोगों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही है तो वह इसके खिलाफ खड़े हो गए। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और बंधुआ मजदूरी का सर्वे करवाया। सरकारी आंकड़ों में ही 19 हजार बंधुआ मजदूर पाए गए। इसके बाद वर्ष 1974 बैच के अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को बंधुआ मजदूरी से ग्रसित गांवों का भ्रमण कराया। जब सरकार को स्थिति का पता चला तो वर्ष 1976 में बंधुआ मजदूरी उन्मूलन एक्ट लागू किया गया।
इसके बाद भी जब बंधुआ मजदूरों को समुचित न्याय नहीं मिल पाया तो इस लड़ाई को अवधेश कौशल सुप्रीम कोर्ट तक लेकर गए और दबे-कुचले लोगों के लिए संरक्षण की राह खोलकर ही दम लिया। हालांकि, जनता के हितों के संरक्षण का उनका अभियान यहीं खत्म नहीं हुआ और पर्यावरण के लिहाज से अति संवेदनशील दूनघाटी में लाइम की माइनिंग के खिलाफ भी अस्सी के दशक में आवाज पी आइ एल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट बुलंद की। माइनिंग से मसूरी के नीचे के हरे-भरे पहाड़ सफेद हो चुके थे। इसके खिलाफ भी कौशल ने सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और संवेदनशील क्षेत्र में माइनिंग को पूरी तरह बंद कराने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
विकास से उपक्षित वन गूजरों के अधिकारों को संरक्षित करने का बीड़ा भी अवधेश कौशल ने उठाया था उसके लिए लंबी लड़ाई के बाद केंद्र सरकार वर्ष 2006 में शेड्यूल्ड ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेल्स एक्ट में वन गूजरों को संरक्षित किया गया। अलग-अलग आयाम से यह लड़ाई अंतिम समय तक जारी रही। गूजरों के परिवारों के लिए दूरस्थ क्षेत्रों में स्कूल संचालन, महिला अधिकारों और पंचायतीराज में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए अवधेश कौशल रूलक संस्था के माध्यम से अंतिम समय तक प्रयासरत रहें हैं। वे सदैव अपनी जीवटता के लिए जाने जाएँगे।
लेखक वरिष्ठ राजनयिक हैं.