November 24, 2024



लाखामंडल के अद्भुत रहस्य..!

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भारत चौहान


लाखामंडल जौनसार बावर के यमुना नदी के तट पर स्थित हैl मान्यता है कि अज्ञातवास में पांडव यहां पर कई दिनों तक रहे है पांडवों को मारने की योजनाएं दुर्योधन ने बनाई थी और लाक्षागृह में आग लगा दी थीl पांडव एक गुफा के माध्यम से बाहर निकल आए और वह सुरक्षित बच गए ! लाक्षागृह और भूमि के नीचे असंख्य शिवलिंग मिलने से अर्थात लाखों शिवलिंग मिलने से इस स्थान का नाम लाखामंडल पड़ा होगा ।

लाखामंडल मंदिर परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा लगाए गए पत्थर से ज्ञात होता है कि यहां के मंदिर का निर्माण 12वीं और 13वीं शताब्दी में हुआ मंदिर परिसर में ही प्राप्त छठी शताब्दी के एक अभिलेख के अनुसार मंदिर का निर्माण सिंह पूरा राजघराने की राजकुमारी ईश्वरा ने करवाया था यह मंदिर राजकुमारी ईश्वरया ने अपने पति जो जालंधर के राजा के पुत्र थे उनके निधन पर उनकी सद्गति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए करवाया था भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर नागर शैली में बना हुआ है।


क्या है अद्भुत रहस्य ?


यहां पर त्रेता युग का श्रीराम द्वारा पूजित शिवलिंग, द्वापर युग श्री कृष्ण लिंगन है ! इसके साथ ही यहां कलयुग का अद्भुत शिवलिंग है, जिस पर पानी चढ़ाते वक्त अपनी प्रति छाया को साफ देख सकते हैं। मंदिर में माता पार्वती के पैरों के निशान भी है और मंदिर में लगे हर पत्थर पर गौ माता के खूर (पैर) के निशान भी स्पष्ट देखे जा सकते हैं। लाखामंडल गांव में उत्खनन के पश्चात आज भी बड़ी संख्या में शिवलिंग, मूर्तियां और पुराने सिक्के भी मिलते हैं यह रहस्य अभी बरकरार हैl

स्थानी निवासियों का मानना है कि इस ग्राम पट्टी क्षेत्र की बड़ी-बड़ी हस्तियों के मरने पर उनके मृत शरीर को लाखामंडल मंदिर परिसर में बने स्थान पर लाकर देव – दानव की मूर्तियों के बीच रखा जाता था इसके बाद पंडित जी मंत्र जाप के बाद मृत शरीर पर जल चढ़ाते थे जिससे मृत शरीर में भी थोड़ी देर के लिए जान आ जाती थी फिर पंडित जी अपने हाथ से उन्हें दूध भात खिलाते थे जिसके बाद वह शरीर मोक्ष की प्राप्ति करता था। इस स्थान का नाम पहले धोडे – मडे भी कहते थेl


लाखामंडल के इतिहास के पीछे अनेक रोचक रहस्य जुड़े हुए है लाखों शिवलिंग और मूर्तियों का भूमि के नीचे मिलना स्वयं में एक रहस्य है। यहां पर धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा निर्मित एक शिवलिंग भी है इसे महामंडलेश्वर शिवलिंग कहा जाता है और इस शिवलिंग के बाहर चार मठ है जिनकी परिक्रमा करने से स्वता ही पाप नष्ट हो जाते हैं और ऐसी मान्यता है कि जिस स्थान पर यह पांच शिवलिंग स्थापित किए गए हैं। इसके नीचे अपार धन संपदा है। एक स्थानीय नागरिक के अनुसार संपूर्ण विश्व के मानव जाति के लिए एक दिन के भोजन के बराबर की धन संपदा इन पांचों शिवलिंग के नीचे बताई जाती है।

लाखामंडल मंदिर परिसर में 2 मूर्तियां है जिसके पीछे की पौराणिक कथाएं यह है कि जब राजा दक्ष द्वारा आयोजित विशाल हवन में मां सती का अपमान हुआ था तब मां सती ने हवन में अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। जिसके बाद क्रोधित महादेव शिव ने अपने शरीर को मला जिससे वीर और भद्र प्रकट हुए थे। सतयुग में भी वीर और भद्र माने गए त्रेतायुग में ये जय – विजय माने गए, द्वापर युग में यह द्वार – पाल नाम से जाने गये और कलयुग में यह देव – दानव का रूप है।




आश्चर्य का विषय है कि इन दोनों ही मूर्तियों को खंडित करने का प्रयास किया गया ? किसने और किस कालखंड में इन दोनों ही प्रतिमाओं को खंडित की गयी। साथ ही मंदिर परिसर में लगे नंदी को भी बुरी तरीके से खंडित किया हुआ है। इसके अलावा अन्य मूर्तियों को भी खंडित किया गया है किसी की नाक थोड़ी गई है किसी के हाथ वगैरह तोड़े गए हैंl लाखामंडल के और भी रहस्य है जो भूमि के नीचे दबे हुए हैं जिससे समय के साथ-साथ लोग अवगत होंगे।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार व गढ़ बैराठ के संपादक हैं.