घेस – मातृभूमि की कथा
अर्जुन बिष्ट
आखिर कहां से शुरू करूं अपनी मातृभूमि की कथा, मेरा सपना, शिखर तक पहुंचे मेरी मातृभूमि घेस. मैती आंदोलन के प्रणेता व बड़े भाई पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कल्याण सिंह रावत जी ने मातृभूमि दिवस मनाने की बात की तो समझ ही नहीं आ रहा था कि घेस पर कहां से शुरू किया जाए। बात उस घेस की करूं जिसके आगे कोई देस नहीं था या फिर उस घेस की, देस आज जिससे आगे निकल गया है।
बात तबकी करें जब यहां से महज 25 किलोमीटर दूर देवाल व आसपास के लोग कैलघाटी के इस इलाके को आदिवासी क्षेत्र जैसा समझते हुए हेय दृष्टि से देखते थे या फिर जब इस दूरस्थ क्षेत्र के महान सपूत स्व. शेर सिंह दानू जैसी सख्सियत ने जनसंघ के टिकट पर विधानसभा चुनाव में उस दौर के दिग्गज कांग्रेस नेता डा. शिवानंद नौटियाल को धराशाई कर दिया था। बात उन सुविधा रूपी अभावों की करें या खेती से भरपेट गुजर बसर हो जाने की आत्मसंतुष्टि की। बात इस गांव के लोगों के द्वारा किये सफल खेती के प्रयोगों की करें या फिर त्रिशूल हिमालय व मखमली बुग्यालों की छांव में असीमित पर्यटन की संभावनाओं की। ऐसे ही और अनेक बातें हैं, जिन्हें शब्दों में समेटना संभव नहीं है।
जो भी हो इस घेस घाटी ने बहुत अभाव देखे। 2009 से पहले हमें देवाल से 25 किलोमीटर पैदल चलकर घेस पहुंचना होता था। मगर रास्ते की थकान अपने गांव की मिट्टी को चूमते कही काफूर हो जाया करती थी। आजादी के समय पूरी घाटी में एक ही ग्राम पंचायत थी, घेस के नाम से। इस क्षेत्र के पहले एलएलबी स्व. शेरसिंह दानू जी थे, जो लखनऊ विश्वविद्यालय में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के सहपाठी रहे। कालान्तर में दो और उसके बाद यहां चार ग्राम पंचायतें हो गयी। उसके बाद हिमनी के बहादुर सिंह दानू यहां से दूसरे पोस्ट ग्रेजुएट अल्मोड़ा कालेज से निकले। आज की बलाण ग्राम पंचायत से राम सिंह दानू जी पहले एमए मेरठ विश्वविद्यालय से तथा वर्तमान घेस गांव से पहले पोस्ट ग्रेजुएट पुष्कर सिंह बिष्ट गढ़वाल विश्वविद्यालय से हुए। उन्होंने डा. हरक सिंह रावत के साथ एमए किया। ये बातें इसलिए कि यहां सबसे बड़ा अभाव शिक्षा का ही रहा। इस अभाव ने सैकड़ों प्रतिभावों को आगे नहीं दिया।
वर्तमान घेस से इंटरमीडिएट करने वाले पहले छात्र हुकम सिंह पटाकी जी थे तो डा. राम सिंह बिष्ट पहले पीएचडी, लेकिन आज गांव में इंटर कालेज खुल जाने से करीब—करीब सभी बच्चे गांव से ही इंटर कर ले रहे हैं। यहां हाईस्कूल 2004 व इंटर 2015 में हो पाया। बिजली 2018 व मोटर मार्ग 2009 में जा सका। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां के लोगों ने कितने अभावों का सामना किया।
मित्रों, आपके मन में यह बात भी आ सकती है कि जब स्व. शेर सिंह दानू जी 1967 में विधायक बन गये थे तो विकास क्यों नहीं हुआ। दानू जी ने इस पूरे क्षेत्र में पैदल मार्गों का जाल बिछा दिया था। घेस के लिए उन्होंने 10 किलोमीटर मोटर मार्ग की स्वीकृति भी करायी थी, लेकिन 1980 में वन एवं पर्यावरण अधिनियम आ जाने के बाद यह स्वीकृत सडक़ भी रद्दी की टोकरी में चली गयी। दानू जी ने तब घेस प्राइमरी स्कूल को जूनियर हाई स्कूल बनवाने में और घेस में चार बेड का आयुर्वेदिक अस्पताल खुलवाने में मेरे पिता जी को बहुत सहयोग किया। पिता जी 70 के दशक में दो कार्यकाल तक घेस-हिमनी के प्रधान रहे।
साथियो, अभाव तो इतने थे कि बस कह नहीं सकते। 1983-84 में जब हाईस्कूल की पढ़ाई करने हम देवाल पहुंचे तो वहां लोगों को यह बताने के लिए मना किया जाता था कि हम घेस के रहने वाले हैं। कारण साफ था, देवाल व आसपास के लोग इस क्षेत्र को आदिवासी क्षेत्र से भी बदत्तर समझते थे। बस तब से मन में एक पीड़ा थी कि कैसे हम लोगों को गर्व से यह बता सकें कि हम घेस के निवासी हैं। हम लोगों की धुंधली सी यादों में आज भी वो भेड़-बकरियों के ढाकर हैं, गांव में पालतू पशुओं के झुंड के झुंड। अब वो नहीं दिखते, मगर अब इनकी जगह टैक्सी, कारों व बाइकों ने ली है।
मुझे गर्व होता है कि जिस वर्तमान घेस गांव से हाईस्कूल पास करने वाला मैं छठा छात्र था आज वहां का एक-एक बच्चा कम से कम इंटरमीडिएट गांव से ही कर रहा है। दो शिक्षक साथी तो पीएचडी करके सम्मानित डाक्टर भी हैं। इतना पिछड़ा, दूरस्थ और सीमांत गांव होने के बावजूद आज मुझे यह बताते हुए खुशी होती है कि मेरे गांव की धरती से प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षा अधिकारी, डाक्टर-इंजीनियर (अमरीका में) के साथ ही करीब दो दर्जन से अधिक शिक्षक-शिक्षिकाओं ने इस सीमांत गांव का गौरव बढ़ाया है।
इससे बड़ी बात यह है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अंगरक्षक बटालियन के सीओ रहे मेजर देवसिंह दानू की इस कर्मभूमि के बच्चों ने सैन्य क्षेत्र में बड़ी सफलताएं अर्जित की। आज यहां से सैकड़ों की संख्या नवयुवक सेना के जरिये देश की सुरक्षा में तैनात हैं। यह गौरवान्वित होने का विषय है कि इस छोटे से क्षेत्र से 10 सैन्यकर्मी, सुबेदार मेजर के उच्च व प्रतिष्ठित रैंक तक पहुंचने में कामयाब हुए तो असंख्य सैनिक सूबेदार के प्रतिष्ठित पद तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सफलता अर्जित करने वाले साथियो, आप सबको मेरी ओर से हृदय से शुभकामनाएं।
इसी पिछड़े क्षेत्र से निकलकर मुझे भी अपनी मातृभूमि की सेवा करने का मौका मिला। पत्रकारिता की मुख्यधारा में काम करने का अवसर मिलने से सरकारें चलाने वाले हुक्मरानों, शासकीय व प्रशासनिक अधिकारियों के पास आने जाने के अवसरों को मैने क्षेत्र के विकास के लिए उपयोग करने का हर संभव प्रयास किया। आप से भी आग्रह है कि अपने गांव घेस के लिए जो भी संभव हो करें। कुछ भी न हो तो सोशल मीडिया के माध्यम से गांव के फोटो के साथ दो चार सुंदर लाइन लिखकर लोगों को गांव के बारे में बतायें। आपका यह प्रयास गांव को घुमक्कड़ी का शौक रखने वालों तक पहुंचाएगा।
आज मेरे गांव के लोगों ने जड़ी—बूटी की खेती को नया आयाम देकर स्वरोजगार की दिशा में बड़ी पहल की है। इसके साथ ही सेब के बागानों को बढ़ाने के लिए जो पहल की है वह आने वाले समय में घेस को विश्व मानचित्र पर लाएगी, ऐसा मेरा भरोसा है। मैं गांव के अपने भाई-बहनों से आग्रह भी करता हूं कि उन्होंने जिस तरह पिछले साल कुटकी के उत्पादन से 7 करोड़ की आय अर्जित की वह काबिले तारीफ है। हमें आने वाले समय में जड़ी बूटी की खेती के साथ ही सेब के उत्पादन पर ध्यान देना है और इस गांव को एग्रो—टूरिज्म विलेज बनाना है। मित्रों मैं जो देख पाया हूं, उसे देखकर कह सकता हूं कि अपनी मातृभूमि घेस घाटी को हम मिलकर फलों की टोकरी बना सकते हैं, लेकिन साथ में एक आग्रह भी है। हमें आलू, राजमा, मटर, चौलाई, भट्ट, झंगोरा, मडुआ की अपनी परंपरागत फसलों को भी बचाते रहना होगा। कल्याण सिंह रावत मैती जी का आभार, इस तरह का आईडिया देने के लिए। मातृभूमि दिवस के बहाने हमें भी घेस के बारे में बताने का अवसर मिला। ऐसी मातृभूमि को नमन, वंदन। मां भगवती नंदा यूं ही कृपा बनाए रखें।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.