November 21, 2024



डा. शिवानंद नौटियाल – राजनीति के अजातशत्रु

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डॉ योगेश धस्माना / मनोहर बिष्ट


उत्तराखंड के एक ऐसे पुरोधा है, जिसने राजनीति में राष्ट्रीय फलक पर अलग छाप छोड़ी है। वह पत्रकारिता, साहित्य सृजन, लोक जीवन व शिक्षा के क्षेत्र में पहाड़ को विशिष्ट स्थान दिलाने वाला व्यक्तित्व है। ब्लाक पाबौ के कोठला गांव में ‌चित्रमनी नौटियाल व दर्शनी देवी के घर 26 जून 1936 को शिवानंद का जन्म हुआ। दो बहनों में अकेला भाई होने के नाते सभी का लाडला शिवानंद बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल रहा। प्राथमिक शिक्षा गांव में लेने के बाद उन्होंने मैसमोर इंटर कालेज से 10वीं व 12वीं उत्तीर्ण की। डीएवी कालेज देहरादून से स्नातक और स्नातकोत्तर किया। देहरादून में छात्र जीवन के दौरान शिवानंद ने सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी निभानी शुरू की। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति बेहतर न होने के कारण शिवानंद ने केंद्रीय विद्यालय संगठन में नौकरी करने का निर्णय लिया। शिक्षक के रूप में अनेक वर्षों तक नॉर्थ ईस्ट के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दी। इस दौरान उन्होंने देश के उत्तर पूर्वी राज्यों की जनजातियों और उनके सामाजिक सांस्कृतिक सरोकारों पर गहन अध्ययन किया।

साहित्य और राजनीति में रुचि रखने के कारण शिवानंद ने दिल्ली में रहकर भारत के अनेक हिस्सों में स्थापित गढ़वाल सभाओं का एकीकरण कर पहाड़ की समस्याओं के समाधान लिए समग्र रूप से अध्ययन किया। वर्ष 1967 में उन्होंने पहली बार पौड़ी विधान सभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1969 के मध्यावधि चुनाव में पौड़ी सीट से जीत हासिल कर पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा में प्रवेश किया। 1974 में कर्णप्रयाग विधान सभा से दूसरी बार विधायक चुने गए। तब तक उनकी पहचान एक प्रखर राजनेता की बन चुकी थी। इसके बाद डा. नौटियाल वर्ष 1977, 80, 85 व 89 में कर्णप्रयाग से यूपी विधान सभा पहुंचे ‌थे। वर्ष 1991 में कर्णप्रयाग सीट पर डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने उन्हें हराकर सबको चौंका दिया था। उत्तराखंड के पहले विधान सभा चुनाव 2002 में डा. नौटियाल ने थलीसैण सीट से हार मिलने के बाद राजनीति को भी अलविदा कह दिया। 2 अप्रैल 2004 को लखनऊ स्थित आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली।


ठुकराया था उपमंत्री पद


डा. शिवानंद नौटियाल को वर्ष 1977 में सीएम राम नरेश यादव मंत्रीमंडल में उपमंत्री पद दिया गया। लेकिन नौटियाल ने जूनियर विधायक को कैबिनेट मंत्री बनाए जाने पर उपमंत्री पद ठुकरा दिया।

उच्च शिक्षा व पर्वतीय विकास मंत्री के रुप में किए यादगार कार्य


डा. शिवानंद नौटियाल को वर्ष 1989 में सीएम बनारसी दास गुप्त मंत्रीमंडल में उच्च शिक्षा व पर्वतीय विकास मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान उनके किए कार्यों को आज भी याद किया जाता है।

राजनीति के अजातशत्रु हैं शिवानंद




वरिष्ठ पत्रकार डा. योगेश धस्माना बताते हैं कि डा. शिवानंद नौटियाल उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की राजनीति के अजातशत्रु हैं। कहा वे एकमात्र ऐसे राजनीतिज्ञ थे। जिन्होंने राजनीति में रहते हुए पत्रकारिता, साहित्य व लोक जीवन की आजीवन सेवा की है। कहा कि हमने एक साहित्य अन्वेशी ही नहीं एक कुशल राजनीतिज्ञ व समाज सेवी खोया है। कहा कि उन्होंने पहाड़ के 11 लोगों को यूपी के विभिन्न विवि में कुलपति भी बनाया।

अलौकिक है नौटियाल का साहित्य सृजन

डा. शिवानंद नौटियाल का राजनीति में दिए योगदान से इतर साहित्य सृजन भी बहुत ही अलौकिक है। निंबध व कहानी लेखन के मुखर हस्ताक्षर डा. नौटियाल ने लोक जीवन पर गहन अध्ययन किया है। गढ़वाली, कुमाऊंनी लोक जीवन पर अनेक संस्कृतिकपरक रचनाएं हमारी धरोहर हैं। कश्मीर, नेपाल, हिमाचल दर्शन, नेफा व अरुणाचल की लोक कथाएं, गढ़वाली भाषा में कहानी, नाटक सहित अनेक विधाओं में साहित्य सृजन किया है।

पैतृक गांव में बनेगा संग्रहालय

डा. शिवानंद नौटियाल के पैतृक गांव में उनकी स्मृतियों का संग्रहालय बनाया जाएगा। प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत संग्रहालय निर्माण को लेकर संवेदनशीलता दिखा रहे हैं। उनके नाम से मांडाखाला में प्रवेश द्वार का निर्माण कार्य चल रहा है। जबकि गांव में मूर्ति भी स्थापित की जा चुकी है। वहीं कोटद्वार रोड पौड़ी में भी डा. शिवानंद नौटियाल की मूूर्ति पहले से ही स्थापित है।

लेखकीय साभार सहित