November 21, 2024



युवाओं स्वावलंबी बनें

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महावीर सिंह जगवाण


हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों मे आजीविका की सबलता की सम्भावना पर एक सूक्ष्म चर्चा करते हैं। 


बहुत दिनों से फेसबुक इन्टरनैट प्रिन्ट मीडिया और इलैक्ट्रोनिक मीडिया मे पढे लिखे युवाऔं द्वारा नौकरियाँ छोड़कर वापस अपने हिमालयी ढलानों घाटियों मे रचे बसे सुरम्य गाँवों मे, बड़ी हिम्मत और हौंसले से स्वरोजगार की पहल कर रहे हैं जो स्वागत और प्रेरणा योग्य है इन सभी कर्मठ युवाऔं को सैल्यूट। अधिकतर युवा नये विषय को गढ रहे हैं जबकि कई रूटीन विषयों पर ही अपनी काबिलियत के परचम लहरा रहे हैं, अभी कुछ दिन पहले एक सुधी मित्र का मैसेज आया था स्वरोजगार के लिये कौन सा काम सही रहेगा। स्वरोजगार से तात्पर्य है स्वयं श्रम और तकनीकी के संयोजन से ऐसे अवसरों का निर्माण करना जिससे आजीविका चल सके। बड़ा सवाल है ऐसे कौन से अवसर हैं जो इस बात की गारण्टी देते हों, रोजगार निश्चित ही चलेगा। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जो गारण्टी देता हो। स्पष्ट है स्वरोजगार सकारात्मक सोच और रचनात्मक जोखिम से ही सम्भव है। प्रकृति ने हिमालय भू भाग को ऐसा तोहफा दिया है यदि हम कृषि क्षेत्र की बात करें तो जब पहिड़ों पर नगदी फसलों का उत्पादन होगा तब मैदान मे उस फसल की उपलब्धता और प्रचुरता घटेगी। स्पष्ट है बाजार भाव अच्छे होंगे। हम लोग जब भी आधुनिक ढंग से खेती करते हैं तो बाजार का रोना रोते हैं साथ ही बाजार मे मिलने वाले न्यूनतम भाव से भयभीत रहते हैं ।


उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों मे कृषि की सम्भावनायें प्रबल और शसक्त हैं, यहाँ फल सब्जी के साथ फूलों की खेती पर भी सम्भावनायें हैं। आज हम दो उत्पादों पर अपनी चर्चा को केन्द्रित करते हैं। नकदी फसलों का एक नियम है, आपको अपने उत्पादन को बारह महीने निरन्तर रखना होता है। यदि आपके पास उत्पादों की निरन्तरता होगी तो आपको बाज़ार समझने मे सहजता होगी और बाज़ार ही आपको खेती की लाभदायक फसलों की जानकारी देगा। जैसे बाजार मे इस साल अनार की पर्याप्त उपलब्धता (बम्पर पैदावार) ने अनार का भाव थोक मे दस रूपये किलो से तीस रूपये किलो कर दिया जरा सोंचे अनार के किसान को प्रति किलो क्या भाव मिला होगा आपको आश्चर्य होगा पाँच रूपये से तीस रूपये का ही भाव मिला। उसकी फसल की उत्पादन निरन्तरता के कारण उसे इसी अनार का पचास से सौ रूपये भी भाव मिलता है, एक किसान के पाँच सौ से पाँच हजार अनार के पेड़ हैं, जब बाजार न्यूनतम होता है तो वह डेढ से पाँच लाख कमाता है और जब बाजार उच्चतम होता है तो वह पाँच लाख से पच्चीस लाख रूपये कमाता है, ठीक यही स्थिति हिमांचल के सेब किसान के साथ भी है। इन किसानो की शंख्या अधिक है और ये समृद्ध शाली हैं निश्चित रूप से इनके किसान हित आधारित संघठटन है, अपनी किसी भी कठिनाई या परेशानी मे सरकार को इनकी बात माननी पड़ती है।

हम लोग इन बड़े बड़े बाग बगीचों को देखकर सोचते हैं वाह कितने बड़े बगीचे हैं और आश्चर्य करते हैं। यह बगीचे इतने बड़े कैसे बने इस पर भी चर्चा करते हैं। हिमांचल मे दसकों पहले यह सीढी नुमा खेत थे। जिन पर पारम्परिक खेती ही होती थी। यही स्थिति नाशिक के इन आधुनिक अनार के बागों की थी वहाँ भी मोटा अनाज ही बोया जाता था। नई खेती दो विन्दुऔं पर केन्द्रित होती है पहला विन्दु आर्थिकी का ठीक होना और दूसरा जो वह नया करना चाहता है उसकी बारीक से बारीक जानकारी। प्रयोग के तौर पर ही हिमांचल और नाशिक मे सेब और अनार की खेती की शुरूआत हुई। किसानों ने बीस पचास पौध लगाकर ही शुरूआत की और इनकी हेर देख खाद पानी चौकीदारी ऐसे की मानो जैसे छोटे बच्चे की करते हैं। साथ ही अपने रूटीन काम के साथ नई नई जानकारी जुटाते रहे, फिर सौ दो सौ अच्छी प्रजाति के पौधों का वृक्षारोपण किया इसका रिजल्ट मिलते ही इतने आकृषित हो गये मानो बहुत बड़ी लाॅटरी जीत ली हो फिर जो प्लाण्टेशन हुआ उसमे पाँच सौ से दो हजार से भी अधिक पौध एक किसान ने लगाई, आधुनिक वैज्ञानिक युग मे सेब हो या अनार ढाई से चार साल बाद अच्छी पैदावार देने लगते हैं, इसके साथ कुछ ही सालों की बम्पर पैदावार ने पूरे भारत मे अपने लिये बाजार और कोल्ड स्टोरेज मे जगह बना दी सृँखला निरन्तर शसक्त हो रही है जो किसानो के साथ श्रमिकों और अनुसंधान मे लगे वैज्ञानिकों, थोक और रिटेल ब्यवसाइयों के साथ बड़ी बड़ी फ्रुट प्रोसेसिंग युनिटो, उपभोक्ताऔं के चेहरे खिला रही है।


उत्तराखण्ड के पर्वतीय जनपदों मे यह सब नहीं दिखता हाँ जो थोड़ा दिखता है उनके पास पट्टे की चैक रूप मे बड़ी जमीने हैं वाकी तो सब राम भरोसे, आज तक माल्टे नारंगी और गलगल की धौंस थी तो वह भी आफत मे है, नारंगी की फसल नब्बे फीसदी खत्म हो गई है गलगल के पेड़ का आकर्षण खत्म हो गया और माल्टे की फसल को किन्नू धक्का मारने पर उत्तावला है, कई विभागीय योजनाऔं मे मैने किन्नू के पेड़ बँटते देखे हैं वैसे भी माल्टा अपनी पहिचान और गुणवत्ता खो रहा है। अनार या सेब विना प्रोसेसिंग के बाजार मे पहुँचता है तो उसका भाव अथिक मिलता है जबकि माल्टा बाजार मे अपना स्थान नही बना पाया, जो दु:खद है भले जूस के रूप मे इसे जगह मिली हो। लेकिन एक बड़ी सम्भावना है यदि इसे फ्रैस फ्रुट के तौर पर युवा बाजार मे स्थान दिलाने मे सफल हुये तो इसकी सम्भावनायें प्रबल हैं इस फल को आधुनिक पैकेजिंग की जरूरत है, फल और जूस के रूप मे बड़ी सम्भावना वाले बाजार का अग्रणी उत्पाद हो सकता है। इसके नियमित खरीददारी से इसके किसान आकर्षित हो सकते हैं और नये गुणवत्ता युक्त बागों का विस्तार हो सकता है। अन्यथा नीलाम होते माल्टे एक दिन नारंगी की तरह विलुप्त हो जायेंगे, आलू और राजमा के उत्पादन मे भी हम साठ से अस्सी फीसदी पिछड़े हैं।

जब से उत्तराखण्ड बना फूलों की खेती पर भी जोरदार बहस हुई है बहुत कम लोग खेती कर रहे हैं जिनकी शंख्या नगण्य है। उत्तराखण्ड मे तीर्थाटन और पर्यटन के साथ आतिथ्य की बड़ी परम्परा है। यदि शुरूआत गेंदे के फूलों से करें तो यहाँ भी सम्भावनायें हैं। फूलों की खेती मे दो बड़ी बाते हैं एक तो आपको त्योहारों और शादी विवाह के साथ तीर्थ स्थलों की भीड़ के हिसाब से निरन्तर उपलब्धता जरूरी है।पुष्पों की उपलब्धता और बाजार का प्रबन्धन इतनी कौशलता से करना होगा ताकि आमदनी बढे। हमारे तीर्थ स्थलों की नियमित आपूर्ति से ही सालाना तीस लाख रूपये तक का कारोबार संभव है और विवाह पर्व को जोड़ा जाय तो स्थानीय स्तर पर करोड़ रूपये के आस पास का बाजार मिल जायेगा। जब हम माल्टे और गेंदे के फूलों का सफलता उत्पादन और विपणन सीख जायेंगे तो निश्चित रूप से हम अधिक सम्मपन्न खेती के अवसरों की ओर बढ सकते हैं। पढे लिखे उन युवाऔं से अपील है जो बदलने का जज्बा रखते हैं इन पहाड़ों के खामोस होते गाँव, बंजर पड़ते खेतों को, पलायन करते युवाऔं को, बहती मिट्टी को, विलखते बहते पानी को। सरलतम प्रयोगों से आगे बढें, नये प्रयोगों के साथ रूटीन अवसरों मे भी संभावनायें ढूढें, यहाँ जनशंख्या का घनत्व कम है हो सके एक काम के साथ दूसरा भी काम करना पड़े। वैचारिक सोच का जमीनी स्वमूल्याँकन जरूरी है, जो आप सोचते हैं, जो आप कहते हैं, जो आपका सपना है उसे साबित भी आपको ही करना है। इसके लिये आपके पास जो बहुमूल्य समय, शक्ति, ज्ञान, हौसलों की उड़ान है उसका सूझबूझ से उपयोग करें। जीवन मे बहानों की कोई कीमत नहीं होती है आपको खुद ही खुद को साबित करने के लिये खपाना पड़ता है जब कोषों दूर आपकी मेहनत की मुस्कान महकेगी तब जाकर बगल पड़ोसी आपके जुनून और हुनर को स्वीकार करेंगे।