November 23, 2024



उत्तराखण्ड के दर्द को उकेरती कवितायें

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जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’


उभरते गढ़वाली युवा कवि दीपक सिहं केन्तुरा कि गढ़वाली कविताओं की भले ही यह पहली कविता पुष्तक हो लेकिन जैसे-जैसे पाठक कविताओं को पढ़ता है गुनता है तो पर्वतीय संवेदनाऔं के आगोश में समाता चले जाता है।


उत्तराखण्ड का आंशू“ कविता पुष्तक उत्तराखण्ड राज्य के 13 वर्षो का लेखा जोखा है जो दीपक की कविताओं में झलकता है।


“कवि हवेन शहीद कत्योन बगाई ल्वे,
कोटि-कोटि प्रणाम उत्तराखण्ड त्वे,
तेरह साल मा कुछ विकास नी हवे,
ऊं तै क्वी नी पुछणु जोन बगाई ल्वे,
ये उत्तराखण्ड वणेकि कुछ नि हवे,

उत्तराखण्ड राज्य के विकास का खारा जितनी संवेदना के साथ इस कविता में दीपक ने खींचा है। इससे कवि की पहाड़ के प्रति गहरी भावना जुड़ने का ही परिणाम है। स्वयं कवि इसका भुक्त भोगी रहा है। रूद्रप्रयाग तनपद के अति पिछड़े चिरवटिया, लस्या वांगर पट्टी के लुठियाग गांव के रहने वाली कवि दीपक अभी 24 साल के है।गांव व आसपास के स्कूलों से मात्र इण्टरमीडियेट की पढ़ाई के वाद दीपक अपने गांव के रिस्तेदार के साथ बम्बई रोजगार की ढूढ में चले गये। वहां होटलो में काम किया लेकिन स्वास्थ्य खराब होने पर फिर घर आ गये। पुनः देहरादून में होटलों में काम करने के साथ-साथ स्थानीय पत्र पत्रिकाओं के साथ जुड़ते चले गये। स्रजन शीलता उफान मारती रही। कविताओं का लेखन चलता रहा, आकाशवाणी से जुड़े और अब नेटर्वकटेन चैनल में गढ़वाली कार्य क्रम रैबार का पंचालन कर रहे है। जहां चाह है वहां राह है। छोटी सी उम्र के इस सर्घष की परिणति के सुरवद परिणाम सामने है। 24 वर्ष की उम्र में कविता पुष्तक का आना भविष्य की दिशा भी प्रदर्शित कर देता है। कवि दीपक ने उत्तराखण्ड के आंशु पुष्तक में पहाड़ी राज्य ही नही पहाड़ी गांव, बहू, बेटी, खेती, पशु, जल, जंगल, जमीन, आपदा, नेताओं के हाल चाल, राज्य में पनपते भ्रष्टाचार पर तीखे व्यंग्य किये है जो पाठकों को अन्दर तक हिला देते है। दीपक की कविताओं में रोष है, जोश है, होश है,व कवितायें आन्दोलन के लिए तड़फती नजर आती हैं। “हे चुचौं इ छन उत्तराखण्ड का हाल” के साथ-साथ ”पांच साल बौड़िगैन“ चुनावों व नेताओं की पोल पट्टी खोल दी है वही पहाड़ी राज्य में आपदा की विभीषिका को दर्शाती कवितायें “आपदा की विपदा“ ”इनु कवि नि हवे सो साल मा”, ”उत्तराखण्ड मा हाहाकार“ कवितायें विमलित करने वाली है। दीपक की लेखनी पहाड़ के वाहर र्वतमान राजनीति की तरफ भी बढ़ जाती है। केजरीवाल भैजी का नौं पाती“ के माध्यम से कवि अरविन्द केजरीवाल के आन्दोलन को उत्तराखण्ड में फेलाना चाहता है। तो वही मोबाइल, इण्टरनेट के दुरूप्रयोग की बात उठाकर सदुप्रयोग का संदेश भी देती है। पहाड़ी समाज के बदलते सांस्कृतिक माहोल पर “ न पैलि जनु लाणु, न खंणु”, हम त पहाड़ी छां से कटाछ भी करते है। परिवार नियोजन का संदेश देती कविता ”हम भी दवी, हमारा भी दवी“ सुन्दर कविता है। दीपक की वह हे कविताओं के शीषर्क। लय वद्ध कविता शीषर्क स्वंय में पूरी कविता है जो कविता का मर्म तुरन्त बसा देती है। अब कवि हो और वह प्रेम पर न लिखे ऐसा संभव नहीं है। जैसी उम्र उस पर कवि मन का प्रेम भी वौछारे मारकर वाहर छलक पड़ता है। दीपक ने सुन्दर प्रेम कवितायें भी लिखी “कौज्याली माया प्रेम को समर्पित कविता है। “उत्तराखण्ड का आंशू“ कविता पुष्तक इस बीच आयी गढ़वाली लेखन की एक शसम्त पुष्तक है। जिस पर विष्त्रत चर्चा परिचर्चा की जरूरत है। समीक्षा जाननी है तो दीपक की “उत्तराखण्ड के आंशु“ पुष्तक पढ़ना एक आवश्यक कार्य जैसा लगता है। होनहार कवि दीपक केन्तुरा को साधुवाड व आगाह की यह तेवर बना रहे व लगातार कलम चलती रहे।


पुष्तक – उत्तराखण्ड का आंशु
(गढ़वाली कविता संकलन)
लेखक – दीपक सिहं केन्तुरा
पृष्ठ – 80
मूल्य – 150 रूपये
पंस्करण – प्रथम, मई 2014
प्रकाशक – बिनसर हिमालय