माई री मैं का से कहूं पीर
श्याम सिंह रावत
नीचे दिये लिंक पर जाकर यह कर्णप्रिय गीत ‘माई री मैं का से कहूं पीर अपने जिया की’ सुनिये और बताइये कि इसे किसने गाया है? इसे आप फिल्मी गीत कह सकते हैं लेकिन इसे किसी फिल्म में शामिल नहीं किया गया। यह गीत साधारण घटनाक्रम को भी अपनी कहानियों में बेमिसाल बनाने में प्रवीण राजिन्दर सिंह बेदी साहब की फिल्म ‘दस्तक’ का है। जिसका दूसरा वर्जन लता मंगेश्कर की मधुर आवाज में स्वरों के जादूगर मदनमोहन ने अपने जादुई संगीत से संवारा था। फिल्म के गीत मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे थे। उर्दू कहानीकार बेदी की बतौर फिल्म निर्देशक यह पहली फिल्म थी। फिर भी उन्होंने एक कुशल निर्देशक की तरह अपने द्वारा लिखे गये एक जटिल विषय को बेहतरीन ढंग से संभाला और मानवीय मनोस्थितियों का विश्लेषण किया है।
समानांतर सिनेमा आंदोलन यानी कला फिल्मों के शुरुआती दौर में मील का पत्थर साबित हुई एक जोड़े (संजीव कुमार और रेहाना सुलतान) की दुश्वारियों को बड़े सलीके से पर्दे पर उतारती इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म को चार राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। दस्तक के नव दम्पत्ति हामिद और सलमा को गुमान भी नहीं है कि मुंम्बई जैसे महानगर में घर न मिल पाने की बहुत सारी परेशानियों को उठाने के बाद वे जिस मकान में रहने आये हैं उसमें सिर्फ एक माह पहले तक एक वेश्या का वास था और वहाँ उसकी महफिलें सजा करती थीं और वहाँ संगीत और नृत्य की आड़ में जिस्मफरोशी का धंधा भी चलता था। वहाँ वक्त-बेवक्त दरवाजे पर होने वाली दस्तक पति-पत्नी की निजता में खलल डालती रहती है।यह मदनमोहन का ही जादू है जो 1970 में बनी इस फिल्म के माई री मैं का से कहूँ पीर अपने जिया की, हम हैं मता-ए-कूचा-ओ बाजार (गली-बाजार में बिकने वाली चीजों) की तरह और बैयां न धरो ओ बलमा आज 52 वर्ष बाद भी श्रोता को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.