November 24, 2024



पहाड़ों में भूस्खलन

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डॉ. ऍम. पी.एस. बिष्ट


पहाड़ों में भूस्खलन एक सामान्य भूवैज्ञानिक प्राकृतिक प्रक्रिया है। पृथ्वी का वह भू भाग जो समुद्री सतह से ऊपर उठा हो प्रकृति उस उठे भाग को फिर से अपनी विभिन्न प्राकृतिक प्रक्रियाओं के माध्यम से सड़ा गला कर धीरे-धीरे गुरुत्वाकर्षण बल की सहायता से निचले व समतल सतह तक लाने की जद्दोजहद में रहती है। यहाँ महत्वपूर्ण बात यह है कि जब तक मिट्टी व चट्टान के कण एक दूसरे से बड़ी मज़बूती के साथ आपस में जुड़े रहते हैं, और कोई बाह्य बल उनके इस बन्धन को अपने अधिक बल से अलग नहीं कर लेता, तब तक किसी भी प्रकार से भूस्खलन या भू क्षरण नहीं होता।

परन्तु जैसे ही बाह्य ताक़तें जैसे , हवा, पानी, धूप, बर्फ़ या फिर मानवीय गतिविधियाँ, जैसे सड़क, पुल, डाम व भवन निर्माण के लिये भू कटाव, ब्लास्टिंग आदि क्रियाएँ, इस प्रक्रिया को बढ़ावा देतीं हैं। लेकिन शायद बहुत कम लोग इस बात से वाक़िफ़ होंगे कि प्रकृति के अन्दर अपने इन घावों को भरने की भी स्वत: क्षमता होती है, अगर इसके साथ कोई छेड़-छाड़ न की जाए तो। उदाहरण के लिये उपग्रह से लिए गए निम्न दो भूस्खलन क्षेत्रों के छायाचित्रों को देख कर समझा जा सकता है।


Photo Courtesy – Dr. M.P.S. Bisht

यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि, यह सामान्य रूप से होने वाली प्रक्रिया कभी अचानक हमारे लिये आपदा का कारण भी बन जाती है, तब कि जब हम इसके जद में आते हैं। यानी अगर हम इस प्राकृतिक प्रक्रिया से दूरी बना कर रखें तो हमें कोई ख़तरा नहीं है। परन्तु मानव अपने ज़िद्दी स्वभाव के अनुरूप प्रायः ऐसी भूल कर बैठते हैं। जिसका ख़ामियाज़ा हमें अक्सर भुगतना पड़ता है। जैसा कि आप उत्तराखण्ड या अन्य पहाड़ी राज्यों में इन घटनाओं को प्रायः देखते रहते हैं। वैसे इस प्राकृतिक प्रक्रिया से हमें फ़ायदे भी बहुत हैं। इनके कारण बनने वाली मृदा भारतीय उपमहाद्वीप के गंगा-जमुना के मैदानी भाग को नये नये खनिजों से संतृप्त करती है, जिससे हमें जीवन जीने के लिये प्रचुर मात्रा में अन्न प्राप्त होता है।