दारू सौत : गढ़वाली का अचर्चित कथा संग्रह
डॉ. नंद किशोर हटवाल
पिछले दिनो सीमैट उत्तराखण्ड की सेवानिवृत्त अपर निदेशक शशि चौधरी जी ने मुझे गढ़वाली का एक कथा संग्रह ‘दारू सौत’ दिया। इसकी लेखिका हैं विद्या रावत। मेरे लिए गढ़वाली कथा लेखन में यह नाम नया था। संग्रह की कथाएं पढ़ने पर मुझे आश्चर्य हुआ कि बेहतरीन कथा शिल्प और गहन मानवीय संवेदनाओं की धनी इस लेखिका का यह पहला और अंतिम कहानी संग्रह है। संग्रह की कहानियों के विषय चयन, सुंदर शिल्प, गठन, उन्नत भाषा और गहन मानवीय संवेदनाओं से ये एहसास और भी गहराता रहा कि काश विद्या रावत कुछ और कहानियां लिखतीं। इस कथा संग्रह में सात कहानियां संग्रहीत हैं। पहली कहानी ‘बौडी की दिल्ली जात्रा’ गढ़वाल के गांवों की एक बौडी की अपने भतीजे धीरू के घर दिल्ली जाने और वहां मिली उपेक्षा की कहानी है।
‘साब पूफू’ कहानी में पहाड़ का एक नौजवान भरतू 26 साल बाद लखनऊ अपनी बुआ से मिलने जाता है। उसकी बुआ ‘बड़ी आदम्योंण’ है। कहानी में भरतू का अपने पूफू के प्रति सम्मान-स्नेह और पहाड़ी ग्रमीण मनोस्थ्तियों का बारीक चित्रण है। ‘अपणी पाथी पकोड़ी’ शहर में अपनी बहू के साथ रह रही एक सास की त्रासद कथा है जो बहू के दुर्व्यवहार से दुखी हो कर गांव जाना चाहती है पर नहीं जा पाती है। ‘लाटा चचा’ कथा लेखिका/नायिका द्वारा अपने सीधे-लाटे चाचा के प्रति गहन प्रेम और सम्मान की आत्मीय कथा है। लेखिका को अपने लाटा चाचा के स्वर्गवास की खबर मिली तो वह बहुत उदास हो गई।
लेखिका संग्रह की प्रस्तावना में लिखती हैं, ‘‘वह चाचा जो हमारी छोटी उम्र में दूर गढ़वाल से कुछ समय के लिए उनके साथ रहने के लिए आते थे पर वे अपनी नादानी में उनके आने से खुश होने के बजाय परेशान ज्यादा हो जाते थे क्योंकि अपनी सहेलियों के बीच एक कम सुनने और साफ न बोल पाने वाले आदमी को अपना चाचा बताने में उनको झिझक होती थी। बाद में लेखिका ने उस चाचा के साथ किए इस व्यवहार के प्रति पश्चाताप और श्रद्धांजलि के रूप में यह कथा लिखी। इस कहानी में रिश्तों की उष्मा और मानवीय संवेदनाओं की गहराइयां दिखती हैं। गढ़वाली के इस कथा संग्रह की शीर्षक कहानी ‘दारू सौत’ उत्तराखण्ड में महिलाओं द्वारा झेली जा रही शराब की त्रासदी की कथा है। पिरमा का पति महेन्दर शराबी है। उसके जुल्मों से जैसे-तैसे मुक्त होकर पिरमा गोपी दूध वाले से विवाह करती है लेकिन वो भी शराबी ही निकलता है।
‘रैबार’ कहानी बहुत खूबसूरती से बुनी गई है। ये कहानी मुम्बई प्रवासी खुशहाल सिंह का अपने भुला फतेसिंह के नाम एक लम्बी चिट्ठी है। अपने भाई को लिखे इस पत्र में गांवों में आये प्रतिकूल परिवर्तनों और सांस्कृतिक मूल्यों के ह्रास पर चिंता दिखती है। पत्र में खुशहाल सिंह पुरानी बेहतर चीजों को याद करते हुए उनमें आये बदलावों और विकृतियों पर सवाल भी पूछते हैं। ‘दारू सौत’ की सारी कहानियां पहाड़ की गहरी संवेदनाओं, यहां के ग्राम्य जीवन की गहन अनुभूतियों, स्त्रियों की मर्मांतक पीड़ा और दुश्वारियों, ग्रामीण मनोदशाओं, पारिवारिक रिश्तों और मानवीय संबंधों की कहानियां है। इन कहानियों में रिश्तों की उष्मा और उनके क्षरण भी चिंताएं भी हैं तो पहाड़ी समाज और पारिवारिक ताने-बाने की गहरी बुनावट भी। डबल इन्वर्टेड कॉमा का गैरजरूरी प्रयोग और प्रूफ की गलतियों को सुधार लिया जाय तो भाषागत सौंदर्य, शब्द सामर्थ्य और मुहावरों के सुंदर प्रयोग इन कथाओं को विशिष्ट बना देते हैं।
ध्यातव्य है कि इस कथा संग्रह के अलावा विद्या रावत की कोई दूसरी किताब नहीं छपी। न ही उनकी ये कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई। शायद यही कारण रहा हो कि गढ़वाली कहानी लेखकों में इस प्रतिभाशाली लेखिका और इस संग्रह का उल्लेख नहीं हो पाया। मदन मोहन डुकलान और गिरीश सुन्दरियाल के सम्पादन में गढ़वाली कथा लेखन की सौ साल की यात्रा की किताब ‘हुंगरा’ में विद्यावती डोभाल, वीणापाणि जोशी, नीता कुकरेती, डॉ. आशा रावत, बीना बेंजवाल, डॉ. कुसुम नौटियाल, कुसुम ध्यानी, अमिता ढौंढियाल और पुष्पा उपाध्याय के माध्यम से हमें गढ़वाली कथा लेखन में महिलाओं की शानदार भागीदारी दिखती है। ‘दारू सौत’ कथा संग्रह इस दृष्टि से भी महत्पवूर्ण हो जाता है कि यह हमारी गौरवशाली महिला लेखन की परम्परा में एक और नाम जोड़ता है विद्या रावत का। आगे जब भी गढ़वाली कथा लेखन की चर्चा होगी तो इस संग्रह का नामोल्लेख भी अवश्य होगा।
विद्या रावत का जन्म 11 सितम्बर 1938 को गांव भड़ेत, पट्टी वल्ला उदेपुर, पौड़ी गढ़वाल में हुआ। उनके पिता पुलिस विभाग में नौकरी करते थे इस कारण उनका बचपन उत्तर प्रदेश विभिन्न मैदानी इलाकों में बीता। इनके पति का नाम धर्म सिंह रावत था जो कि ईमानदार आई.ए.एस. अफसर के रूप में चर्चित शख्शियत थे। कथा लेखिका का अपने परिवार के साथ गर्मियों की छुट्टियों में गांव आना-जाना होता रहता। ये कहानियां गांव के इन्हीं एहसासों, अनुभावों और पहाड़ की यादों का़ कथात्मक रूपान्तरण है। विद्या रावत लेखन के साथ चित्रकला और समाज सेवा से भी जुड़ी रहीं। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण 2010 में गास्पेल प्रेस लखनऊ से छपा। उनके देहावसान के बाद उनकी ननद विमला भंडारी ने इसका दूसरा संस्करण 2021 में समय साक्ष्य देहरादून से छपवा कर अपने परिजनों की बौद्धिक सम्पदा को प्रकाश में लाने और संरक्षण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन किया। इस कथा संग्रह को गढ़वाली कथा लेखन की श्रीवृद्धि के रूप में भी देखा जा सकता है।
पुस्तक का नाम – दारू सौत (गढ़वाली कथा संग्रह)
लेखिका – विद्या रावत
पृ.सं. – 48
मूल्य -रू. 100.00
प्रकाशक/मुद्रक – समय साक्ष्य, 15 फालतू लाईन, देहरादून