कथा नरेन्द्रनगर
 
                सुरेन्द्र भट्ट
टिहरी रियासत के अंतिम नरेश महाराजा मानवेन्द्र शाह के पिता महाराजा नरेन्द्र शाह के द्वारा अपने नाम से स्थापित नरेन्द्र नगर का नाम पहले ओडाथली था। सन् १९२१ से लगभग दस वर्षों तक इस नगर और राजमहल का निर्माण होता रहा। कर्मचारियों के लिए आवास और बाजार के लिए दुकानें बनवा कर नगर विकास का काम चलता रहा।
मुझे आज नरेन्द्र नगर की वह दुकानें देखने का अवसर मिला जिसमें दुकान सं ७ स्वर्गीय दयाल सिंह पुंडीर को आबंटित हुई। दयाल सिंह ने सन् १९३५ में हलवाई की दुकान आरंभ की जिसका किराया ८ रुपए ७५ पैसे था जबकि अन्य ३४ दुकानदार केवल ७ रुपए किराया महाराजा को भुगतान करते थे। दयाल सिंह पुंडीर १ रुपए ७५ पैसे धुंआं कर के रूप में अतिरिक्त देते थे एक तरह का प्रदूषण कर। आज भी दयाल सिंह की चौथी पीढ़ी दुकान चलाती है और १८ रुपए पी डब्लू डी को किराया दे रही है। दुकानों की यह निर्माण शैली राजस्थान के राजा महाराजाओं की भवनकला की नकल है क्यों कि टिहरी नरेशों के रिस्ते राजस्थान के नरेशों से भी थे। १९४४ के आसपास हलवाई का काम बंद करके पुंडीर परिवार कपड़ा व्यवसाय में आ गया जब देशी घी की जगह डालडा प्रचलन में आने लगा था और राजपरिवार ने यहां से मिष्ठान लेना बंद कर दिया था।
अपने ढंग का यह पर्वतीय कस्बा गढ़वाल रियासत की याद दिलाता है। आज नरेन्द्र शाह का राजमहल होटल आनंदा ओबराय ग्रुप्स से संचालित है। ऋषिकेष से १० किमी दूर समुद्र तल से ५००० फिट की ऊंचाई पर स्थित यह सुंदर शहर आज बहुत सारे सरकारी विभागों के मुख्यालयों का भी केन्द्र है।

 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        