नरेन्द्रनगर का राजमहल
सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
ऋषिकेश से लौटते वक्त अचानक टिहरी राजशाही की विरासत महाराजा नरेंद्र शाह के राजमहल को देखने की मन में उत्कंठा उत्पन्न हुई। रुक कर के राजमहल को देखना चाहा लेकिन वहां नियुक्त सिक्योरिटी गार्ड ने महल में प्रवेश नहीं करने दिया। जीवन की इतने वर्षों में तभी उस वास्तुकला के जीवंत नमूने को गौर से देखने का संयोग नहीं मिला। फिर भी जहां चाह, वहां राह।
सन 2015 में वयोवृद्ध साहित्यकार श्री मणि राम बहुगुणा जी के सुझाव पर मैंने उनकी पुस्तक ” गढ़वाल एक परिचय” का प्रूफ रीडिंग किया तथा पुस्तक के संबंध में भी अपनी राय रखी। यूं तो श्री मनीराम बहुगुणा जी की अनेक पुस्तकों के आमुख मेरे गुरुजी प्रोफेसर राकेश चंद्र नौटियाल तथा मेरे द्वारा लिखे गए हैं। उसी प्रूफ्रेडिंग के दौरान मुझे गढ़वाल के समग्र इतिहास के बारे में जानने का भी शुभ अवसर प्राप्त हुआ। इससे पूर्व श्री मनीराम बहुगुणा जी की पुस्तक “टिहरी आद्दोपांत ” पुस्तक को मैंने पढ़ा तथा उस पर अपनी समीक्षा लिखी। “जिंदगी के चिर स्मरणीय पलों की श्रंखला” आदि पुस्तकों की भी मैंने प्रस्तावना लिखी , जिससे कि काफी कुछ सोचने और समझने को भी मिला।
” गढ़वाल एक परिचय “पुस्तक का जब मैं प्रूफ रीडिंग कर रहा था, तो अचानक महाराजा नरेंद्र शाह जी के राजमहल, जो कि नरेंद्र नगर में स्थित है; जानने का भी सौभाग्य मिला। श्री मणि राम बहुगुणा जी के अनुसार, ” महाराजा नरेंद्र शाह के पूर्वजों महाराजा प्रताप शाह तथा महाराजा कीर्ति शाह ने क्रमशः प्रताप नगर और कीर्ति नगर की स्थापना की। राजकोष में पर्याप्त धन होने के कारण महाराजा नरेंद्र शाह के मन में भी यह विचार आया कि क्यों न एक नई राजधानी बनाई जाए । जहां से की पूरी रियासत का सम्यक रूप से शासन चलाया जा सके”।