November 24, 2024



उर्गम, नीती और माणा घाटी की ओर-06

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अरुण कुकशाल


(10-17, दिसम्बर, 2021) सीमान्त क्षेत्र में स्थानीय आबादी का निरंतर कम होना चिन्तनीय-जोशीमठ से 62 किमी. का सफर तय करनेे के बाद मलारी गांव (समुद्रतल से ऊंचाई 3030 मीटर) पहुंचे हैं। बर्फ से लकदक ढ़का मलारी गांव जैसे शीतकालीन अवकाश पर चला गया है। क्योंकि, यहां के निवासी आजकल अपने ग्रीष्मकालीन दूसरे गांवों में निवास कर रहे हैं। वीरान घरों और दुकानों के बाहरी दरवाजों पर लगे ताले सीलबंद भी हैं। गांव का ऊपरी पहाड़ी हिस्सा नीचे की ओर समतल और चौड़ा होते हुए नदी की तरफ धीरे-धीरे नुकीला है। गांव के शुरुआती भाग में कोई भी आदमी दिखता नजर नहीं आ रहा है। गधेरे पार करते ही दो लोग सड़क के मुंडेर पर बैठे हैं। उन्हीं के पास हमने अपनी गाड़ी रोक दी है। ‘नमस्कार, आप लोग तो इसी गांव के होंगे।’ मैं बातचीत शुरू करता हूं। ‘हां जी, यहीं के हैं और आजकल गांव की चौकीदारी कर रहे हैं।’ उनमें से एक ने बताया है।उनसे बातचीत हो ही रही है कि एक नए सज्जन भी आ गये हैं।

हमारे यहां आने का कारण और जल्दी वापस जाने की सलाह वे आते ही दे देते हैं। वो ये भी बता रहे हैं कि यहां से आगे जाना मना है। उन्होने बताया तो नहीं है परन्तु उनकी बातचीत से लग गया कि वे गुप्तचर विभाग (आईबी) के अभिकर्मी हैं। इसलिए, आने-जाने वालों की जानकारी और उन पर निगरानी रखना उनका पहला काम है। मलारी में इस समय सेना, आईटीबीपी, केन्द्रीय एवं प्रदेश गुप्तचर विभाग और स्थानीय प्रशासन की उपस्थिति रहती है। चीन से लगी सीमा इस क्षेत्र को ज्यादा संवेदनशील बनाती है।‘बचपन में, (संभवतया सन् 1968) मैं जोशीमठ से मलारी पिताजी के साथ आया था। मुझे याद है कि किसी सयाने ने तब कहा था कि सामने की चोटी पर हमारे भारतीय सैनिक और उससे दूर की चोटी पर चीनी सैनिक हैं। उन्होने दूरबीन से चोटी में तैनात सैनिकों को दिखाया भी था।’ मैं उनसे कहता हूं।‘आपको बच्चा समझ कर बहकाया गया होगा।


चीन सीमा तो बहुत दूर होगी, यहां से।’ हिमाली अन्य के बोलने से पहले कहती है।इस समय की आपसी बातचीत में पता चला कि मलारी से आगे तिब्बत-चीन की सीमा लगभग 45 किमी. बाद प्रारम्भ होती है। मलारी से 18 किमी. गमसाली गांव और उससे आगे 3 किमी. पर इस ओर का अन्तिम गांव नीती है। उसके बाद नीती दर्रे से तिब्बत जाने का रास्ता है। नीती दर्रा गढ़वाल से तिब्बत जाने का सबसे आसान रास्ता था।गमसाली से बायें ओर का एक रास्ता तिब्बत-चीन के पास की सीमा बड़ाहोती की ओर है। गमसाली से 8 किमी. कालाजाबर उसके बाद 12 किमी. पर बड़ाहोती और 3 किमी. और चलकर तुनजेन ला से तिब्बत-चीन सीमा आरंभ होती है। गमसाली के बाद 60 किमी. पैदल मिलम ग्लेशियर जाने का रास्ता भी है। मलारी गांव की धार में हिमालय के शिखरों के बीच खूबसूरत परिकुण्ड है।


मलारी-नीती के स्थानीय लोगों को मार्छा या तोलछा कहा जाता है। मलारी मल्ला पैनखण्डा पट्टी का प्रमुख गांव है। वैसे, वर्तमान में मलारी 150 परिवारों का तकरीबन 1 हजार की आबादी का गांव है। पचास साल पहले इस गांव में 500 से अधिक परिवार रहते थे। मलारी गांव से ग्रामीण 15 अक्टूबर को स्थानीय लस्पा पूजा करने के उपरान्त चमोली, गोपेश्वर और कर्णप्रयाग के आस-पास के अपने ग्रीष्मकालीन निवास के गांवों की ओर चले गये हैं। पूरे गांव की देख-रेख के लिए दो व्यक्ति यहीं हैं। उनकी जगह पर कुछ समय बाद दो अन्य व्यक्ति यहां आ जायेंगे। इस प्रकार बारी-बारी से ग्रामीण यहां आकर आगामी अप्रैल माह तक गांव की सुरक्षा से निश्चित रहते हैं। मई प्रथम सप्ताह से ग्रामीण अपने गांव वापस आना शुरू कर देते हैं।इस क्षेत्र से पलायन का मुख्य कारण तेजी से जीवकोपार्जन के संसाधनों और अवसरों का निरंतर होता ह्रास है।

सन् 1954 तक तिब्बत से व्यापार के लिए कोई पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती थी। उसके बाद नीती दर्रे के बंद होने के कारण संबंधित व्यापार शिथिल होने लगा। गांव के युवा पढ़ने-लिखने की ओर प्रेरित हुए। लेकिन, पढ़-लिखकर वे स्थानीय स्वःरोजगार की अपेक्षा नौकरियों की ओर ही आकृष्ट हुए। नतीजन, गांवों की ओर उनका आना धीरे-धीरे कम होने लगा। घर-परिवार मैदानी नगरों में बना देने से गांवों से उनका सीधा नाता छूटने लगा है। चीन से लगे इस सीमान्त क्षेत्र में स्थानीय आबादी का अपने गांवों से मोहभंग होना बेहद संवेदनशील और चिन्ताजनक पहलू है।मान्यता है कि मल्ल और हारी से मलारी गांव का नामकरण हुआ। इस गांव का महाभारत काल से सीधा संबंध बताया जाता है। किवदन्ती है कि, यहां पर भीम और कीचक का भंयकर युद्ध हुआ था। कीचक को मारकर भीम ने अपने सभी हथियार इसी गांव के पास गहरे गाड़ दिये थे। सत्तर के दशक में गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा मलारी गांव में हुई खुदाई में प्राचीनकालीन अवशेष प्राप्त हुए थे। तब, मलारी की महा-पाषाणीय शवागार संस्कृति के बारे में प्रामाणिक जानकारियां मिली थी। जिससे यह पता चला कि पुरातनकाल में यहां एक विकसित मानव सभ्यता निवास करती थी।


मुझे घ्यान आता है कि People and Legends of Himalaya and the Ganga (M.P Kuksal) किताब में इसके क्षेत्र के बारे में रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं।मलारी गांव से नीचे की ओर वह जगह दिख रही है, जहां बताया गया है कि भीम और कीचक का भंयकर युद्ध हुआ था। गांव के इस निचले हिस्से की ओर 1 फिट बर्फ तो है ही। कहीं-कहीं पर तो उससे भी ज्यादा है। चलना कम और फिसलना ज्यादा हो रहा है। अखरोट के पेड़ के नीचे ऊंचा और लम्बा-चौड़ा चबूतरा बना है। एक सज्जन गिरे हुए अखरोट उठा कर अपने झोले में भर रहे हैं। वह मलारी गांव के ही सोहन सिंह रावत हैं। उनका कहना है कि ये अखरोट पूजा के काम आते हैं। सोहन बताते हैं कि ये वही जगह है जहां भीम ने कीचक को मार कर अपने हथियारों को यहीं जमीन के नीचे गाड़ दिया था। यह स्थल मलारी गांव का प्रमुख पूजा स्थल है।हम फिर वापस सड़क पर पहुंचे हैं। पहले के सभी लोग हमारी प्रतीक्षा में वहीं हैं। सेना के एक जवान की देख-रेख में सड़क के आस-पास भेड-बकरियां चर रही हैं। सेना की डूयूटी में जवानों का यह भी एक काम है। जिसे बारी-बारी से सभी जवान करते हैं। ग्रामीण सज्जन ने चाय पिलानी की इच्छा व्यक्त की परन्तु चाय की व्यवस्था 2 किमी. दूर सेना के कैम्प के पास हो सकती है। आईबी वाले सज्जन नहीं चाहते कि हम यहां ज्यादा देर तक रुकें, इसलिए, वे बिगड़ते मौसम का हवाला देते हुए सलाह दे है कि आप लोग जोशीमठ की ओर तुरंत वापस चल दें। उनकी मंशा और नेक सलाह को समझते हुए हम अब वापस जोशीमठ की ओर चल दिये हैं।……..यात्रा जारी है

अरुण कुकसाल यात्रा के साथी- विजय घिल्डियाल और हिमाली कुकसाल