November 24, 2024



उर्गम, नीती और माणा घाटी की ओर-04

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अरुण कुकशाल


(10-17, दिसम्बर, 2021)‘आओ तो वैलकम, जाओ तो भीड़ कम’ जोशीमठ से नीती घाटी की ओर 62 किमी. पर स्थित मलारी गांव (समुद्रतल से ऊंचाई 3030 मीटर) के लिए निकले हैं। परसारी, मेरग, बड़ागांव के बाद ढ़ाक गांव की धार में पहुंचे हैं। सामने तपोवन का वह क्षेत्र दिख रहा है, जहां पिछले साल 7 फरवरी को भयंकर आपदा आयी थी। इस भीषण दुर्घटना के निशान जहां-तहां दिख रहे हैं। इन निशानों में अभी भी ताजगी और तड़फ है। हमारी नज़र जहां तक जा रही है, वहां तक के रास्ते, भवनों और जंगल का उधड़ा शरीर है। ऋषिगंगा जल विद्युत परियोजना जहां यह घटना घटी थी के पास से गुजरते हुए धौली नदी चुपचाप बह रही है। ऐसे जैसे कि उसे कुछ भी याद नहीं या फिर उसने सारे जख़्मों को अपने में छुपा लिया है।

विजय बताते हैं कि ‘7 फरवरी, 2021 की सुबह को धौली गंगा में आये अचानक उफान ने 12 मेगावाट के निर्माणाधीन ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट की मेन सुरंग को तहस-नहस कर दिया था। सुंरग के अंदर काम कर रहे कर्मचारियों को इस आफ़त को समझने और इससे संभलने का भी मौका नहीं मिल पाया था। अनुमानतयाः 200 से अधिक लोगों की मौत हुयी थी। संयोग से, उस दिन इतवार था इसलिए और दिनों की अपेक्षा बहुत कम कर्मचारी काम कर रहे थे। अन्यथा मौंतों का आंकड़ा और भी भयावह होता। ’तपोवन से 3 किमी. आगे सलधार के पास सड़क के दांयी ओर की पहाड़ी के शिखर से नीचे तक तेजी से बहते पानी में भंयकर भाप उठ रही है। कहीं खुले में तो कहीं पत्थरों के नीचे बहता यह पानी उबल भी रहा है। मिट्टी-पत्थरों के अंदर बनी तल्लैया में उबलते पानी के बुलबलों से गदभद-गदभद की निरंतर आवाज आ रही है।


चारों ओर चूना और गंधक युक्त पानी से इस जगह की हवा सुगंधित होकर महक रही है। सामने चेतावनी लिखी कि इस पानी में कोई भी चीज न डालें और न उबालें। साथ ही, इस पानी को तुरंत और ज्यादा न पियें। गंधक-युक्त यह पानी त्वचा रोग को ठीक करने में कारगर है। इसीलिए, आने-जाने वाले लोग अपनी सुविधानुसार सड़क किनारे के धारे से पानी भर कर ले जा रहे हैं।‘यहां एक स्पा सैंटर बनाया जाना चाहिए’ हिमाली का सुझाव है।सलधार के आगे दांयी ओर की लिंक रोड़ देवदार और सुराई के जंगलों से घिरे सुभांई गांव (समुद्रतल से ऊंचाई 2744 मीटर) की ओर है। सुभांई गांव में भविष्य बद्री का मंदिर है। सलधार से पैदल 5 किमी. और सड़क मार्ग से यह 8 किमी. है। किवदंती है कि जब विष्णु प्रयाग के नजदीकी जय-विजय पर्वत मिल जायेंगे तो बद्रीनाथ जाना संभव नहीं होगा। तब बद्रीनाथ जी की पूजा इसी सुभांई गांव में होगी। सलधार से 2 किमी. आगे ऋषि गंगा और धौली गंगा के संगम तट पर विख्यात रैणी गांव है। रैणी सत्तर के दशक में चिपको आन्दोलन की अग्रज गौरा देवी का गांव हैं।


गौरा दीदी गांव की अन्य महिलाओं के साथ 26 मार्च, 1974 को रैणी के सितेल जंगल पहुंची थी। पेड़ों को काटने आये मजदूरों का विरोध करते हुए पेडों से चिपककर उन्हें चेतावनी दी थी कि ‘तुम हम पर बन्दूक की गोली चला दो, पर हम अपने मायके जैसे जंगल को कटने नहीं देंगे।’ तब लगता था जैसे गौरा देवी तथा उनके सहयोगियों के मार्फत सिर्फ़ रैणी नहीं, पूरा उत्तराखंड बोल रहा था बल्कि देश के सब वनवासी बोल रहे थे। आखिरकार, मातृशक्ति के आगे सरकारी मनमानी को झुकना पड़ा। और, सितेल-रैणी का जंगल और गांव की महिलाओं का मायका लुटने से बचा लिया गया था। रैणी गांव की महिलाओं की यही सामाजिक चेतना, बाद में, चिपको आन्दोलन के नाम से विश्व प्रसिद्ध हुआ था।) जोशीमठ से नीति घाटी की ओर 15 किमी. की दूरी पर स्थित इसी रैणी गांव के पास 7 फरवरी, 2021 को ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट से वह भयंकर तबाही शुरू हुई थी।

इस समय विश्वास नहीं होता कि यह वही क्षेत्र हैं जहां देश-दुनिया में प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन ने जन्म लिया था। विजय बताते हैं कि वर्ष- 2011 में भी ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट से इस क्षेत्र को काफी नुकसान हुआ था। परन्तु, इससे सबक सीखने के नाम पर देश और प्रदेश की सरकार पर्यावरण के नाम पर पुरस्कारों की घोषणा से आगे नहीं बढ़ पायी है। और, स्थानीय आम जनता वहीं की वहीं ठिठकी हुई है।ऋषिगंगा पर बने पुल को पार करते ही मोड़ पर वीरेन्द्र सिंह और उनकी धर्मपत्नी से मुलाकात होती है। ऋषि गंगा और धौली गंगा के संगम पार उनका गांव जुगजू है। आपदा में खत्म अपने मकान से बचे-खुचे मटीरियल को यहां सड़क में लाने के काम में वे जुटे हैं। वे बताते हैं कि उनका गांव नदी के कटाव से तेजी से ग्रस्त हो रहा है। प्रशासन की लिस्ट में उनके गांव जुगजू को विस्थापित किया जाना है, पर साल भर से हम उसी की बाट जोह रहे हैं।


रैणी के बाद लाता गांव तक सीधी सड़क पर है। लाता गांव में नंदा देवी का प्राचीन मंदिर है। मंदिर में देवी के निशाण और खड्गों के बारे मान्यता है कि वे आकाशीय बिजली से प्राकृतिक रूप में बन कर यहां अवतरित हुए हैं।धौली गंगा के बहने के विपरीत दिशा की ओर हमारी यात्रा है। अपने उदगम से आती हुई धौली गंगा से आमने-सामने की यह मुलाकात जोशीमठ से बराबर जारी है। अपने धवल आवरण याने स्वच्छ जल के कारण इसे धौली गंगा कहा गया है। पानी इतना साफ कि इसके अंदर समाये पत्थरों के आकार-प्रकार और रंग-रूप छिपाये भी नहीं छिपते हैं।धौली गंगा के बिल्कुल किनारे चाय-नाश्ते की दुकान के बाहर छोटी-छोटी प्लास्टिक की बोतलों में अलग-अलग रंगों का पानी डालकर उनको दूर तक डोरियों में लटकाया गया है। हल्की हवा से हिलती-ढुलती ये बोतलें खूबसूरत लग रही हैं। सामने भलागांव का बोर्ड लगा है। ग्राहकों के स्वागतार्थ लिखा है ‘आओ तो वैलकम, जाओ तो भीड़ कम’। इस समय यहां भीड़ के नाम पर हम ही हैं। सोचा, यहीं नाश्ता कर लिया जाय। पर बात नहीं बनी, इसलिए पूरी भीड लिए हम आगे की ओर चल दिए हैं।………..यात्रा जारी है

अरुण कुकसालयात्रा के साथी- विजय घिल्डियाल और हिमाली कुकसाल