November 25, 2024



इसलिए मनाई जाती है “इगास”

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महीपाल सिंह नेगी


गढ़वाल में इसलिए मनाई जाती है “इगास” दिवाली, माधो सिंह भंडारी की वीरता से है इसका संबंध, माधो सिंह भंडारी 17 वीं शताब्दी में गढ़वाल के प्रसिद्ध भड़ (योद्धा) हुए। माधो सिंह मलेथा गांव के थे। तब श्रीनगर गढ़वाल के राजाओं की राजधानी थी। माधो सिंह भड़ परंपरा से थे। उनके पिता कालो भंडारी की बहुत ख्याति हुई। माधो सिंह, पहले राजा महीपत शाह, फ़िर रानी कर्णावती और फिर पृथ्वीपति शाह के वजीर और वर्षों तक सेनानायक भी रहे। एक गढ़वाली लोकगाथा गीत (पंवाड़ा) देखिए –

सै़णा सिरीनगर रैंदू राजा महीपत शाही


महीपत शाह राजान भंडारी सिरीनगर बुलायो”


तब गढ़वाल और तिब्बत के बीच अक्सर युद्ध हुआ करते थे। दापा के सरदार गर्मियों में दर्रों से उतरकर गढ़वाल के ऊपरी भाग में लूटपाट करते थे। माधो सिंह भंडारी ने तिब्बत के सरदारों से दो या तीन युद्ध लड़े। सीमाओं का निर्धारण किया। सीमा पर भंडारी के बनवाए कुछ मुनारे (स्तंभ) आज भी चीन सीमा पर मौजूद हैं। माधो सिंह ने पश्चिमी सीमा पर हिमाचल प्रदेश की ओर भी एक बार युद्ध लड़ा।

एक बार तिब्बत युद्ध में वे इतने उलझ गए कि दिवाली के समय तक वापस श्रीनगर गढ़वाल नहीं पहुंच पाए। आशंका थी कि कहीं युद्ध में मारे न गए हों। तब दिवाली नहीं मनाई गई। दिवाली के कुछ दिन बाद माधो सिंह की युद्ध विजय और सुरक्षित होने की खबर श्रीनगर गढ़वाल पहुंची। तब राजा की सहमति पर एकादशी के दिन दिवाली मनाने की घोषणा हुई।


तब से इगास बग्वाल निरंतर मनाई जाती है। गढ़वाल में यह लोक पर्व बन गया। हालांकि कुछ गांवों में फिर से आमावस्या की दिवाली ही रह गई और कुछ में दोनों ही मनाई जाती रही। इगास बिल्कुल दीवाली की तरह ही मनाई जाती है। उड़द के पकोड़े, दियों की रोशनी, भैला और मंडाण, शायद यह 1630 के आसपास की बात है। इन्हीं माधो सिंह भंडारी ने 1634 के आसपास मलेथा की प्रसिद्ध भूमिगत सिंचाई नहर बनाई, जिसमें उनके पुत्र का बलिदान हुआ। जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने तिब्बत से ही एक और युद्ध लड़ा, जिसमें उन्हें वीरगति प्राप्त हुई। इतिहास के अलावा भी अनेक लोकगाथा गीतों में माधो सिंह की शौर्य गाथा गाई जाती है। इगास दिवाली पर उन्हें याद किया जाता है –

दाळ दळीं रैगे माधो सिंह




चौंऴ छड्यां रैगे माधो सिंह

बार ऐन बग्वाळी माधो सिंह

सोला ऐन शराद मधो सिंह

मेरो माधो निं आई माधो सिंह

तेरी राणी बोराणी माधो सिंह”

वीरगाथा गीतों में उनके पिता कालो भंडारी, पत्नियां रुक्मा और उदीना तथा पुत्र गजे सिंह और पौत्र अमर सिंह का भी उल्लेख आता है। मलेथा में नहर निर्माण, संभवत पहाड़ की पहली भूमिगत सिंचाई नहर पर भी लोक गाथा गीत हैं। रुक्मा का उलाहना –

योछ भंडारी क्या तेरू मलेथा

जख सैणा पुंगड़ा बिनपाणी रगड़ा”

और जब नहर बन जाती है तब भंडारी रुक्मा से कहता है –

ऐ जाणू रुक्मा मेरा मलेथा

गौं मुंड को सेरो मेरा मलेथा”

बहुत विस्तृत है माधो सिंह भंडारी की इतिहास शौर्य गाथा और लोकगाथा भी। उनकी मृत्यु शायद 1664 – 65 के बाद हुई। इंद्रमणि बडोनी जी के निर्देशन में माधो सिंह भंडारी से सम्बन्धित गाथा गीतों को 1970 के दशक में संकलित करके नृत्य नाटिका में ढाला गया था। एक डेढ़ दशक तक दर्जनों मंचन हुए। स्वर और ताल देने वाले लोक साधक 85 वर्षीय शिवजनी अब भी टिहरी के ढुंग बजियाल गांव में रहते हैं.

लोग इगास तो मनाते रहे लेकिन इसका इतिहास और इसकी गाथा भूलते चले गए। आधा गढ़वाल भूल गया, जबकि आधा गढ़वाल में अब भी बड़े उत्साह से इगास मनाई जाती है। खास बात यह भी समझें कि मध्य काल में उत्तर की सीमाएं माधो सिंह, रिखोला लोदी, भीम सिंह बर्त्वाल जैसे गढ़वाल के योद्धाओं के कारण सुरक्षित रही हैं।

चीन से भारत का युद्ध आजादी के बाद हुआ लेकिन तिब्बत से तो गढ़वाल के योद्धा शताब्दियों तक लड़ते रहे। पर्वत की घाटियों में ही तिब्बत के सरदारों को रोकते रहे। सिर्फ गढ़वाल ही नहीं भारत भूमि की रक्षा भी की। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार एक बार तो टिहरी के निकट भल्डियाणा तक चले आए थे तिब्बत के सरदार।

तो फिर गढ़वाल ही क्यों, पूरे भारत देश को इन योद्धाओं का ऋणी होना चाहिए। गाथा सुननी चाहिए, पढ़नी चाहिए.

(फोटो – माधो सिंह भंडारी की शौर्य गाथा पर बनी नृत्य नाटिका में करीब 40 वर्ष पूर्व माधो सिंह के पात्र के साथ गाथा का मंच निर्देशन करने वाले पहाड़ के गांधी इंद्रमणि बडोनी।)