सेल्यूलर जेल – अंडमान निकोबार
आरती रावत पुण्डीर
साथियों सुनी हुई बातों के आधार पर कोई कल्पना करना और उसी कल्पना से साक्षात्कार होना कितना अलग अनुभव होता है ये समझ आया जब मैं सेल्यूलर जेल पहुँची। मेरा मानना है कि भारत के प्रत्येक राजनेता को एक बार यहाँ जरूर जाना चाहिए जो पद पाते ही जमीन छोड़ देते हैं, नेता ही क्यूँ आम इंसान को भी जाना चाहिए ताकि वो देख पायें, समझ पाएँ और महसूस कर पाएँ कि जिनकी बदौलत आज हम इतराते फिरते हैं, उन्होने कितना दुश्वारियों भरा जीवन जिया।
एक बार वहाँ का लाईट और साउंड कार्यक्रम जरूर देखना/सुनना चाहिए जो रोंगटे खड़े करने के साथ साथ आँखे नम और मन मनों भारी कर देता है। इसमें एक पीपल का पेड़ (जो साक्षी रहा है हर छोटी बड़ी घटना का) अंग्रेजों की गुलामी से लेकर जापानियों के आक्रमण और देश के स्वतंत्र होने तक का आँखों देखा हाल बड़े मार्मिक तरीके से सुनाता है।
साथियों यहाँ पर मेरी मुलाकात एक कर्मठ, जुझारू, बहुत साधारण लेकिन असाधारण व्यक्तित्व की महिला आदरणीया राशिदा इक़बाल जी से हुई। आप वर्तमान में सेल्यूलर जेल में प्रशासनिक अधिकारी हैं ।उनका कहना है कि बिना किसी क्राइम के भी उनके पिताजी को अंग्रेजों ने क्रिमिनल करार दिया था।उनके पिताजी जेल की उस वैन को चलाते थे जिसमें क्रान्तिकारियों को लाया ले जाया जाता था।
मैं उनकी इस बात पर कायल हो गई जब उन्होंने कहा “मेरा जन्म अंडमान में हुआ, मैं यहीं पली बढ़ी और आज उसी जेल में अधिकारी हूँ जहाँ मेरे पिताजी ने देशभक्त होने की सजा काटी। मैं गर्व के साथ कहती हूँ कि हाँ मैं एक क्रिमिनल की बेटी हूँ।” आप एक आला दर्जे़ की साहित्यकार भी हैं। वहाँ के समंदर ने आपको जो ऊँचाई और गहराई बख़्शी है वो अनुकरणीय है।
अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में बनी हुई है. इस जेल के निर्माण का ख्याल अंग्रेजों के दिमाग में 1857 के विद्रोह के बाद आया था अर्थात इस जेल का निर्माण अंग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए किया गया था. इसका निर्माण कार्य 1896 में शुरू हुआ था और 1906 में यह बनकर तैयार हो गई थी. जिस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को इस सेल्यूलर जेल में भेजा जाता था उसे साधारण बोल चाल की भाषा में कहा जाता थी कि उसे काला पानी की सजा हुई है. इसे काला पानी इसलिए कहा जाता था क्योंकि यह जेल भारत की मुख्य भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी. राजधानी पोर्ट ब्लेयर में जिस जगह पर यह जेल बनी हुई थी उसके चारों ओर पानी ही पानी भरा रहता था क्योंकि यह पूरा क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के अंतर्गत आता है।
सेल्यूलर जेल में तीन मंजिल वाली 7 शाखाएं बनाई गईं थी, इनमें 696 सेल तैयार की गई थीं हर सेल का साइज 4.5 मीटर x 2.7 मीटर था. तीन मीटर की उंचाई पर खिड़कियां लगी हुई थी अर्थात अगर कोई कोई कैदी जेल से बाहर निकलना चाहे तो आसानी से निकल सकता था लेकिन चारों ओर पानी भरा होने के कारण कहीं भाग नही सकता था.
इस सेल्यूलर जेल के निर्माण में करीब 5 लाख 17 हजार रुपये की लागत आई थी. इसका मुख्य भवन लाल इटों से बना है, ये ईंटे बर्मा से यहाँ लाई गई थीं जो कि आज म्यांमार के नाम से जाना जाता है. जेल की सात शाखाओं के बीच में एक टॉवर है. इस टॉवर से ही सभी कैदियों पर नजर रखी जाती थी. टॉवर के ऊपर एक बहुत बड़ा घंटा लगा था. जो किसी भी तरह का संभावित खतरा होने पर बजाया जाता था. सेल्यूलर जेल आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली थी जिसमे कुल 696 सेल तैयार की गई थीं. यहाँ एक कैदी को दूसरे कैदी से बिलकुल अलग रख जाता था. जेल में हर कैदी के लिए अलग सेल होती थी. यहाँ पर कैदियों को एक दूसरे से अलग रखने का एक मकसद यह हो सकता है कि कैदी आपस में स्वतंत्रता आन्दोलन से जुडी कोई योजना ना बना सकें और अकेलापन के जीवन जीते जीते अन्दर से ही टूट जाएँ ताकि वे लोग सरकार के प्रति किसी भी तरह की बगावत करने की हालत में ना रहें.
इस जेल में बंद क्रांतिकारियों पर बहुत जुल्म ढाया जाता था. क्रांतिकारियों से कोल्हू से तेल पेरने का काम करवाया जाता था. हर कैदी को 30 पाउंड नारियल और सरसों को पेरना होता था. यदि वह ऐसा नहीं कर पाता था तो उन्हें बुरी तरह से पीटा जाता था और बेडिय़ों से जकड़ दिया जाता था. कहा जाता है कि एक बार 250 क्रान्तिकारियों ने बगावत की और जेल से भाग गये किन्तु कुछ समंदर में डूब गये और जो बच गये या पकड़े गये उन्हें तोप से उड़ा दिया गया। सेल्यूलर जेल में सजा काटने वालों में कुछ बड़े नाम हैं- बटुकेश्वर दत्त,विनायक दामोदर सावरकर, बाबूराव सावरकर, सोहन सिंह, मौलाना अहमदउल्ला, मौवली अब्दुल रहीम सादिकपुरी, मौलाना फजल-ए-हक खैराबादी, ऍस. चंद्र चटर्जी, डॉ. दीवान सिंह, योगेंद्र शुक्ला, वमन राव जोशी और गोपाल भाई परमानंद आदि.
सेल्यूलर जेल की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं. यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सैनानियों पर अत्याचार किए जाते थे। भारत को आजादी मिलने के बाद इसकी दो और शाखाओं को ध्वस्त कर दिया गया था। शेष बची 3 शाखाओं और मुख्य टॉवर को 1969 में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया। 10 मार्च 2006 को सेल्युलर जेल का शताब्दी वर्ष समारोह मनाया गया था जिसमे यहाँ पर सजा काटने वाले क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी गयी थी। आज यहाँ के द्वीपों के नाम बदल दिए गये हैं. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वीप, सावरकर द्वीप व अन्य. यही से सुभाष चन्द्र बोस हवाई जहाज में बैठे तो थे पर आज तक पता नहीं चला कि उस जहाज का क्या हुआ।
आरती रावत पुण्डीर, कवियित्री व साहित्यकार हैं